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गुरुवार, 2 मई 2024

बढ़िया सी धूप

         इस वक्त बढ़िया सी धूप खिली हुई है। मैं इस धूप में बैठा शरीर सेंक रहा हूं, हलाकि मेरे शरीर पर कुर्ता पायजामा है,सूरज के धूप की गर्मी इन कपड़ों से छनकर शरीर को गर्मी पहुंचा रही है। शायद बहुत दिनों बाद इत्मीनान से आज धूप में बैठा था।  वैसे महीने के इस द्वितीय शनिवार को अन्य दिनों की अपेक्षा कुछ जल्दी नहाया, जबकि प्रतिदिन की तरह आज कहीं जाना भी नहीं था। दरअसल सुबह मुझे नाश्ते के रूप में पराठा खाने की इच्छा हो आई थी। वैसे नाश्ता लेने की मेरी आदत नही है लेकिन आज दिन का भोजन देर से लेने का मन था इसलिए सुबह कुछ खाने की सोच लिया। इसी चक्कर में नहाने की जल्दी भी किया। क्योंकि बिना नहाए अन्न खाने की मेरी इच्छा नहीं होती। इसके पीछे कोई धार्मिक मान्यता नहीं बस ऐसे ही मैं इस नियम को अपने लिए बनाया हूं। नहा कर आया तो धूप में बैठने की इच्छा हुई थी। अभी मैं धूप में बैठा ही था कि मेरी रसोई बनाने वाले ने मुझसे पराठा खाने के बारे में पूंछा तो समय देखकर मैंने पंद्रह मिनट बाद लेने के लिए कहा और इस धूप में बैठे हुए यू ट्यूब पर पाकिस्तान के चुनाव परिणाम की चर्चा सुनने लगा। तभी गाँव से पिता जी का फोन आया। वे गाँव के घर का बिजली का बिल भरने के लिए कह रहे थे। मुझे याद आया लगभग दो साल पहले मैं गांव वाले घर के बिजली के बिल का भुगतान अपने आटोमेटिक भुगतान मोड में सेट कर दिया था। तब मैं गांव आया था। पिता जी बिजली का बिल भरने के लिए घर के पास स्थित “पावर हाउस” जाने की बात कह रहे थे। हम गाँव वाले उस 33 के वी के विद्युत सब स्टेशन को “पावर हाउस” ही कहते आए हैं। मैंने पिता जी को पावर हाउस जाने से मना किया था और अपने मोबाइल से उसी समय बिजली का बिल आनलाईन भुगतान कर दिया था। और भविष्य के बिल के आनलाईन भुगतान हेतु उस कनेक्शन को  अपने मोबाइल में आटोमेटिक मोड में सेट कर लिया था तथा निश्चित हो गया था कि अब गाँव का बिल भुगतान होता रहेगा और पिता जी को पावर हाउस जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी।

        लेकिन पिता जी ने आज जब बिल का भुगतान करने की बात कहते हुए यह कहा कि मुझे अब “पावर हाउस” जाने की इच्छा नहीं होती तो मैंने सोचा उनकी यह ‘इच्छा’ निश्चित ही उनकी उम्र से जुड़ी हुई है। और इस उम्र में पावर हाउस का चक्कर लगाना उनके लिए उचित भी नहीं। यहां मुझे दादा जी की याद आई। वे इस बिल को जमा करने पावर हाउस जाने की चर्चा एक दिन पहले करते थे कि कल बिजली का बिल भरने ‘पावर हाउस’ जाना है। वे भी उस समय अस्सी की उम्र के रहे होंगे। खैर आज पिता जी की बात से मैं थोड़ा हैरान हुआ कि आनलाईन पेमेंट का आटोमेटिक मोड फेल हो गया और मुझे इसकी जानकारी नहीं हुई! ऐप खोला तो पता चला कि कनेक्शन नंबर बदल गया है तथा विद्युत वितरण खंड यूपीपीसीएल की जगह अब पूर्वांचल विद्युत वितरण खंड हो गया है क्योंकि मेरा कस्बा मुंगराबादशाहपुर जौनपुर जनपद में है। खैर पिता जी को फोनकर मैंने संशोधित हुए कनेक्शन नंबर की जानकारी लिया और बिल का पेमेंट कर दिया तथा आटोमेटिक भुगतान मोड में इस कनेक्शन को सेट भी कर लिया। इसी बीच पराठा आ गया था। मैंने इसके साथ गुड़ भी मंगवाया। पराठे के साथ मुझे गुड़ अच्छा लगता है। वैसे पश्चिम में भोजन के साथ गुड़ खाने का खूब चलन है।

        मैं अभी भी धूप में बैठा हुआ हूँ। कौव्वों की काँव-कांव भी खूब सुनाई पड़ रहा है। मेरे अगल-बगल कुछ बड़े पेड़ हैं। इनमें एक बरगद और कुछ अशोक के पेड़ हैं। शेष पेड़ों का नाम मुझे याद नहीं आ रहा। शायद इसके पीछे पेड़ों से संगत छूटना या फिर किसी चीज का नाम जानने में मेरी रूचि कम होना भी हो सकता है। जबकि नाम जानना और इसे याद रखना एक अच्छा गुण है। लेकिन अपनी ही लापरवाही से मैं इस अच्छे गुण से वंचित रहता आया हूं। इस धूप में बैठे हुए यूँ ही मेरी निगाह  दूर स्थित हैंडपंप पर ग‌ई जिसमें समरसेबल लगा हुआ है, अभी कुछ देर पहले यह समरसेबल चालू था। अब इसे बंद कर दिया गया है। लेकिन इसकी टोंटी से पानी की बूँदें रह-रहकर टपक पड़ती हैं एक कौव्वा इस हैंडपंप पर बैठ इस टोंटी में बार-बार अपना चोंच डाल रहा है। मैं इसी कौव्वे को ध्यान से देखने लगा। इधर कौव्वों के कांव-कांव का शोर कुछ ज्यादा ही बढ़ गया है। इसे सुनते हुए बचपन याद आने लगा है तब गाँव में ऐसे ही कौव्वों के काँव-काँव का शोर सुनाई पड़ता था। लेकिन वहाँ तो अब इक्का-दुक्का कौव्वे ही दिखाई पड़ते। गाँव में बहुत सी चीजें बदल चुकी है। ये कौव्वै भी लगता है गाँव छोड़कर शहरों की ओर चले ग‌ए हैं। ऐसा हो भी क्यों न, गाँवों में जीव-जन्तु, पालव-पल्लव के प्रति पहले वाली वह उदारता अब नहीं बची। खैर आज इस काँव-काँव को सुनकर मैं किसी अनजाने सुखद अहसास में खो गया। 

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