मेरा वह मित्र किसी संस्था में डाइरेक्टर था एक दिन जब वह मेरे पास आया तो कुछ परेशान सा था और जब वह किसी मानसिक परेशानी या अंतर्द्वन्द्व का शिकार होता है तो वह ऐसे ही आकर मुझसे गप्पबाजी करने लगता है...इसे भांपते हुए मैंने उससे पूँछा,
''क्यों भाई क्या हालचाल है|''
''कुछ नहीं यार...कोई ऐसी बात नहीं...|'' वह बोला|
मैंने उससे कहा,
''नहीं कुछ बात अवश्य है...परेशान से क्यों हो,,?''
''नहीं कोई वैसी परेशानी तो नहीं है...बस सोच रहा हूँ कि मैं कैसा हूँ..|'' कुछ छिपाते हुए सा वह बोला|
''पहेली मत बुझाओ ...बताओ क्या बात है|'' मैंने अपनी जिज्ञासा को प्रकट किया|
मेरे मनोभाव को अनसुना करते हुए उसने मुझसे कहा,
''अच्छा बताओ..क्या मैं नीरस व्यक्ति हूँ...|''
''अरे, मेरे भाई आप तो जैसे पहेली बुझा रहे हो...किसने आप को नीरस व्यक्ति कह दिया...|'' मैंने कहा|
''नहीं-नहीं बताइए...क्या मेरे व्यक्तित्व में नीरसपन झलकता है|'' वह थोड़ा मायूस होते हुए सा बोला|
उसकी मायूसी और उसके बात करने के भोलेपन को देख मैं उसके बारे में सोचने लगा...हाँ वह एक सीधा-साधा सा अपने काम को ठीक तरीके से या कहें कि निष्ठापूर्वक करने वाला व्यक्ति था...उसे अपने स्वार्थ में किसी की लल्लो-चप्पो करना भी पसंद नहीं था...अर्थात वह अपने काम से काम का मतलब रखता था...और जहाँ तक पारिवारिक जीवन का प्रश्न है वहाँ भी वह अपने दायित्वों को ठीक ही निर्वहन करता आया है...मैं उसके बारे में यह सब सोच ही रहा था कि उसकी आवाज मुझे फिर सुनाई दी,
''क्या सोचने लगे मेरे प्रश्न का उत्तर नहीं दिए..|''
मैंने अचानक अपनी तन्द्रा को भंग करते हुए कहा,
''नहीं यार कौन कह दिया आपको नीरस व्यक्ति..तुम ऐसे नहीं हो|''
''तो उन्होंने ऐसा फिर क्यों कहा...|'' उसने कहा|
मैंने फिर पूँछा -
''किसने कहा..|''
मेरी इस जिज्ञासा को शांत करते हुए वह बोला,
''मेरे बॉस ने मुझे नीरस व्यक्ति कहा.."
मुझे यह सुनकर हँसी आ गई और मैं हँसने लगा, मुझे हँसता देख उसने झल्लाहट के साथ कहा,
''आपको मेरी बात मजाक सूझ रही है|'' ''आपके लिए यह मजाक जैसी बात हो सकती है,,लेकिन मेरे लिए नहीं...आखिर उन्होंने मेरे अन्दर कौन सी कमी देखी जिससे मुझे नीरस व्यक्ति कह दिया...|'' उसने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए एक ही साँस में कह दिया|
तब तक मैं अपनी हंसी रोक संयत हो चुका था और उसकी संवेदनशीलता को भांप चुका था| उसे थोड़े समझाने के भाव से बोला,
''इसमें परेशान होने की क्या बात है...बॉस के अलावा किसी और ने तो तुम्हे नीरस नहीं कहा..|''
''क्या मतलब...?'' वह थोडा जिज्ञासु सा बोला|
''मतलब इसका यही है भाई कि आपके बॉस को आपसे कोई रस नहीं मिलता होगा..इसीलिए उन्होंने आपको 'नीरस' का विशेषण दे दिया होगा..|'' मैंने उसे समझाते हुए से कहा|
''रस..! कैसा रस..! और यह रस कहाँ से लाऊं..| ''मेरी बात को समझने के अंदाज में वह बोला...फिर हम दोनों एक साथ हँसने लगे| अचानक उसने अपनी हंसी रोक थोड़े चिंतित स्वर में बोला,
''मेरे कार्यों का मूल्यांकन भी कही इस रस के अभाव में....|''
मै उसकी इस चिंता से प्रभावित लेकिन इसे प्रकट न करते हुए उससे कहा,
''नहीं यार अपने पर विश्वास रखो..|'' फिर हम दोनों चुप हो गए|
तभी एक आदमी तेज कदमों से चलते हुए हम दोनों के पास आया और मेरे परिचित उस डाइरेक्टर से मुखातिब हो उनका अभिवादन करते हुए बोला,
''अरे साहब अपने गजब का निर्णय लिया आपके उस निर्णय से हम लोगों की समस्याएँ हल हुई... नहीं तो हम गरीब लोगों की बात कौन सुनता...|''
यह कहते हुए उसने मेरी ओर भी देखा और फिर दो लोगों के बीच की वार्ता में अपने को असहज मानते हुए हम दोनों से नमस्कार का भाव प्रकट करते हुए चला गया| फिर मेरे मित्र ने अपनी चुप्पी तोड़ते हुए कहा,
''जानते हो उसने मेरे किस निर्णय के बारे में कहा...|''
मैं केवल उसके चेहरे को देख रहा था...और चुप रहा, उसने फिर आगे कहा,
''...उस निर्णय को न लेने के लिए मुझ पर बहुत दबाव था...धमकी के साथ लालच भी दिया गया...लेकिन मैं नहीं...''
तभी मैं बीच में ही उसे लगभग टोकते हुए बोला,
''मैं जनता हूँ...तुम्हें...! तुम्हारा रस तो सब के लिए है...! तभी तो तुम्हारे निर्णय के रस से उस गरीब आदमी की भी समस्याएं हल हुई...!'' आगे मैंने उसे समझाने के अंदाज में और जोड़ा,
''यदि तुम्हारे पास ऐसा रस है तो तुम नीरस कैसे हो सकते हो...!''
हमारी वार्ता अब समाप्त हो चुकी थी...|
तभी एक आदमी तेज कदमों से चलते हुए हम दोनों के पास आया और मेरे परिचित उस डाइरेक्टर से मुखातिब हो उनका अभिवादन करते हुए बोला,
''अरे साहब अपने गजब का निर्णय लिया आपके उस निर्णय से हम लोगों की समस्याएँ हल हुई... नहीं तो हम गरीब लोगों की बात कौन सुनता...|''
यह कहते हुए उसने मेरी ओर भी देखा और फिर दो लोगों के बीच की वार्ता में अपने को असहज मानते हुए हम दोनों से नमस्कार का भाव प्रकट करते हुए चला गया| फिर मेरे मित्र ने अपनी चुप्पी तोड़ते हुए कहा,
''जानते हो उसने मेरे किस निर्णय के बारे में कहा...|''
मैं केवल उसके चेहरे को देख रहा था...और चुप रहा, उसने फिर आगे कहा,
''...उस निर्णय को न लेने के लिए मुझ पर बहुत दबाव था...धमकी के साथ लालच भी दिया गया...लेकिन मैं नहीं...''
तभी मैं बीच में ही उसे लगभग टोकते हुए बोला,
''मैं जनता हूँ...तुम्हें...! तुम्हारा रस तो सब के लिए है...! तभी तो तुम्हारे निर्णय के रस से उस गरीब आदमी की भी समस्याएं हल हुई...!'' आगे मैंने उसे समझाने के अंदाज में और जोड़ा,
''यदि तुम्हारे पास ऐसा रस है तो तुम नीरस कैसे हो सकते हो...!''
हमारी वार्ता अब समाप्त हो चुकी थी...|