कार की ए सी खराब थी जिसकी वजह से इस गर्मी में कहीं आना-जाना नहीं हो पा रहा था। आखिरकार एक दिन समय निकाल इसे ठीक कराने की सोच ही लिया। कार को यह सोचकर गैरेज ले गया था कि इसे ठीक कराकर साथ में ही लेते आऊँगा। उस सर्विस सेंटर पर कारों की भीड़ लगी हुई थी। लेकिन थोड़ा अनुरोध करने पर बारी तोड़कर मेरे कार का नम्बर पहले लग गया। ए सी की जाँच करने पर पता चला इसकी किसी पाईप में लीकेज है जिसे बदलना होगा। इस बीच उस सर्विस सेंटर पर मेरे लगभग दो घंटे तो बीत ही चुके होंगे। मेरी मायूसी तब बढ़ गई जब पता चला कि वह पाईप इस सर्विस सेंटर के स्टोर पर नहीं है और नेट से पता चला कि शहर के किसी एक स्टोर पर एक ही पाईप बची है, जिसे मँगाना होगा जो आज सम्भव नहीं होगा, यह कल ही हो पाएगा। खैर...कल का आश्वासन पाकर मैं घर वापस आ गया।
दूसरे दिन गैराज से फोन आया कि आपकी कार ठीक हो चुकी है और आकर ले जाएँ या कहें तो घर पर ही डिलिवर कर दिया जाए, लेकिन मैंने गैरेज पर जाना ही उचित समझा। गैरेज पर पहुँचा तो पता चला कार रेडी है, और कार को देखा तो ऐसा लगा जैसे अपने मालिक से बिछुड़ी उन्हीं का इन्तजार कर रही हो। तब तक मैकेनिक की आवाज कानों में पड़ी, "सर, कार में बैठ कर ए सी चेक कर लें।" वैसे भी उस लम्बे-चौड़े गैरेज में तमाम कारों के बीच बेहद गर्मी तो थी ही, मैं झटपट कार की पिछली सीट पर बैठ गया क्योंकि आगे मैकेनिक थर्मामीटर लेकर बैठा था। कार की ए सी चालू कर दी गई। तब-तब कहीं से दो लड़के, जो उस गैरेज में ही काम करते थे आकर मेरी कार में बैठ गए। इनमें से एक लड़का बोला, "उफ बाहर कितनी गर्मी है!" मैं समझ गया ये गर्मी से परेशान होकर ही कार की ए सी टेस्टिंग में थोड़ी ठंडक पाने के लिए कार में बैठे थे।
हम सब कार में ही बैठे थे तभी मेरे बगल में बैठा एक लड़का बोला, जो शायद आगे की सीट पर बैठे अपने साथी से कहना चाह रहा था, "दिन भर बीत गया अब शाम को वेतन के मुद्दे पर चर्चा करेंगे? दिन में ही कर लेना चाहिए था, वैसे भी रोजे का समय है।" बातों-बातों में पता चला कि गैरेज में काम करने वाले लड़के अपना वेतन बढ़ाने की बात कर रहे थे और उसी के लिए गैरेज के मैनेजर के साथ इन लोगों की शाम को मीटिंग रखी गई थी। फिर कार में ही हमारे बीच बैठे एक अन्य लड़के ने कहा कि, "हमें तो पैसों की जरूरत है वेतन-सेतन बाद में तय करते रहें, पहले तो हमें कुछ पैसे का भुगतान कर दें..रोजा भी तो खोलना है।" "अरे यार जब इतनी देर हो चुकी है तो थोड़ी देर और सही, मीटिंग हो ही जाए।" दूसरे लड़के ने कहा था। तभी तीसरा लड़का जो उनमें वरिष्ठ और जिसके देखरेख में मेरे कार की सर्विस हुई थी, मुझसे बोला, "सर, यहाँ साठ प्रतिशत से अधिक मुस्लिम लड़के ही काम करते हैं और लगभग सभी रोजे से हैं।" हालाँकि वह लड़का स्वयं भी मुस्लिम था। उसकी बात सुन मैंने उससे कहा, "यार, तुम लोग दिनभर कुछ खाते-पीते नहीं हो कहीं डिहाइड्रेशन वगैरह न हो जाए!" इस पर उस लड़के ने कहा, "नहीं सर, ऐसा कुछ नहीं, ऊपरवाला सब ध्यान रखता है।" मैंने भी हामी भरी क्योंकि किसी की आस्था का मुझे भी सम्मान करना था! तभी कार के ए सी का तापमान माप रहे लड़के ने कहा, "सर ए सी इस समय अाठ डिग्री तक ठंडी हो चुकी है यह साढ़े सात तक पहुँच जाएगी...यह बहुत बढ़िया काम कर रही है।" उसी समय मुझे कट जैसी इंजन की आवाज सुनाई पड़ी, वह लड़का फिर बोला, "अभी तो आठ डिग्री पर रूक गया है लेकिन कार के रनिंग के समय यह साढ़े सात तक तो पहुँच ही जाएगा।" इसके बाद हम लोग कार से बाहर आ गए। लड़के ने कहा, "सर बिलिंग करा लीजिए।" और मैं काउन्टर पर पहुँच गया।
बिलिंग काउन्टर पर वही वरिष्ठ लड़का मेरे पास आया और एक तरफ करते हुए मुझसे धीरे से बोला, "सर, आपका बिल इतने का आ रहा है, अगर आप सहमत हों तो इतने का करा देंगे, कुल इतने की बचत हो जाएगी, जिसमें से आप मुझे इतना दे दीजिएगा..तब भी आपका इतना तो बच ही जाएगा।" मतलब बचत के आधे-आधे का सौदा वह कर रहा था। हालांकि वह बचत मेरे लिए कोई मायने नहीं रखती थी और मेरे लिए नैतिकता का तकाजा भी इस सौदेबाजी के विरुद्ध था, फिर भी उस लड़के के चेहरे पर एक निगाह डालते हुए मन ही मन मुस्कुराते हुए इस सौदे पर मैंने सहमति दे दी।
कार लेकर मैं उस गैराज के गेट से बाहर निकलते हुए गेट पास दिखा रहा था कि तभी एक दस-बारह साल का लड़का आया और कपड़े से मेरे कार के शीशों को पोंछने लगा, मैंने कार के शीशे चढ़ा लिए तथा उस लड़के की ओर देखते हुए गैराज से बाहर आकर रोड पर कार दौड़ाने लगा। इसी बीच कार के शीशे को साफ करने वाले उस लड़के की ओर मेरा ध्यान चला गया तथा यह सोचकर मन पश्चाताप कर उठा कि उस लड़के को दस रूपया तो दे देना ही चाहिए था, उसका भी मन खुश हो जाता...शायद इसीलिए वह शीशे साफ कर रहा था, नही तो इसकी क्या जरूरत थी? खैर....
दूसरे दिन मुझे कार से ही लगभग डेढ़ सौ किमी की दूरी तय कर एक जगह जाना था। इस यात्रा के दौरान अकसर मेरी निगाहें सड़क के दोनों ओर कभी-कभी दिखने वाले, छोटे-छोटे आटो-सेंन्टरों के बोर्ड पर ठहर जाती और मैं उनका नाम पढ़ता रहता... जैसे "अली आटो गैरेज" "इस्माईल मोटर वर्कशॉप" आदि आदि नामों वाले। अब आप इसे संयोग कहिए या मेरे आँखों का दोष उस दिन मुझे जो भी आटो गैरेज या मिस्त्री-मैकेनिक का बोर्ड दिखता वे सभी मुस्लिम नाम वाले ही होते थे! हद तो तब हो गई जब मैं अपने गंतव्य पर पहुँच कर किसी काम से एक बैंक शाखा में ब्रांच-मैनेजर से मिलने गया। वहाँ भी एक व्यक्ति मैनेजर से किसी के लोन की चर्चा कर रहा था, जो एक उच्चजाति का हिन्दू प्रतीत हुआ, उसकी बातों पर ध्यान दिया तो पाया कि वह भी किसी "मोहम्मद अली आटो-गैरेज" के लिए लोन के बारे में ही बैंक शाखा प्रबन्धक से चर्चा कर रहा था।
अपने काम से निवृत्त होकर मैं मुस्लिम समाज और युवकों की शिक्षा के बारे में सोचने लगा। मुझे लगा जो मुस्लिम युवक काम करना चाहते हैं वे सब ऐसे ही कामों में लगे हैं। मैंने देखा ऐसे मुस्लिम युवक ज्यादा पढ़े-लिखे नहीं हैं, बल्कि इनमें से अधिकांश अनपढ़ ही होते हैं। मैं सोचने लगा, क्या ये मुस्लिम परिवार अपने बच्चों को गरीबी की वजह से नहीं पढ़ा पाते होंगे या फिर अन्य किसी वजह से? निश्चित रूप से मदरसा-शिक्षित मुस्लिम बच्चे आर्थिक दौड़ की प्रतिस्पर्धा में तो पीछे ही रह जाते होंगे। और, क्या जो मुस्लिम बच्चे मदरसों में शिक्षा ग्रहण नहीं कर पाते उनमें से अधिकांश बच्चे अशिक्षित ही रह जाते होंगे ? क्या ये बच्चे ऐसे ही छोटे-बड़े आटो-गैरेजों में काम कर अपनी रोजी-रोटी चलाते होंगे या फिर गुमराह होकर अन्य कामों में भी संलिप्त हो जाते होंगे? मेरे मन में यह सोचकर थोड़ी सी सिहरन हुई कि कहीं ये बेचारे अधिकांश मुस्लिम बच्चे आधुनिक शिक्षा में इसलिए पिछड़ रहे हों कि इनके परिवारों के बीच आधुनिक शिक्षा को भी साम्प्रदायिक नजरिए से देखे जाने की प्रवृत्ति हो? खैर..इन बातों पर तो मुस्लिम समाज को ही ध्यान देना होगा।
वैसे गैरेज या किसी ऐसी ही अन्य जगहों पर काम करना कोई खराब बात नहीं, लेकिन केवल इस प्रवृत्ति से ही भारतीय समाज की नीति नियामक मुख्यधारा में मुस्लिमों के सम्मिलित होने की क्षमता पर प्रश्नचिह्न तो खड़ा होता ही है। मुस्लिम समाज को अपने बच्चों को आधुनिक शैक्षणिक धारा से गुजारते हुए उनमें देश के विभिन्न महत्वपूर्ण पदों-स्थानों पर पहुँचने की क्षमता विकसित करनी चाहिए। और जो ऐसा कर लेते हैं वह ऐसे स्थानों पर पहुँचते भी हैं। एक समृद्ध और शक्तिशाली भारत के निर्माण के लिए यह बेहद अहम है।