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शनिवार, 9 जुलाई 2022

आपका ईनाम निकला है

          प्रिया के सामने सर्वे सूची थी और उसका कम्प्यूटर भी ऑन था। उसने अनमने ढंग से एक सरसरी दृष्टि सूची पर डाली। एक नाम पर उसकी नज़र ठिठक ग‌ई। उसे प्रार्थनेय कुमार नाम कुछ अजीब लगा लेकिन यही नाम लिखा था और उम्र के कालम में पचपन साल भरा था। इसके बाद उसने सर्वे फार्म में भरे ग‌ए इस व्यक्ति से संबंधित अन्य जानकारियां भी पढ़ी। 'तो ये गवर्नमेंट जाब में है और यदि इनने कंपनी के कूपन में रूचि दिखाई है तो फोन काल पर टर्न‌अप भी हो सकते हैं..वैसे भी नाम प्रार्थनेय कुमार है, शायद प्रार्थना सुन ही लें..कूपन पर ईनाम निकलने की बात जानेंगे तो लेने यहां आएंगे ही' सर्वे फार्म में जॉब वाले कालम को पढ़कर प्रिया ने सोचा था। दरअसल वह एक लिमिटेड कंपनी में कस्टमर केयर ऑफीसर के पद पर काम करती है, और अभी तीन महीने की प्रोबेशन अवधि में है। जिसे पूरा करने पर उसकी नौकरी पक्की होगी। दो माह पहले कंपनी ज्वाइन करते समय वह काफी उत्साहित थी। लेकिन अब कंपनी का टास्क पूरा कर पाना असंभव सा जान पड़ रहा है। 

       पहले वह सर्वे सूची के ग्राहकों के नाम, उम्र और व्यवसाय पर ध्यान नहीं देती थी। सूची के क्रमानुसार ही उन्हें फोन करती और कूपन पर ईनाम निकलना बताकर इसे लेने एरिया आफिस आने के लिए कहती। इस चक्कर में उसे लोगों से डिफरेंट टाइप के प्रश्नों का सामना भी करना होता है। कुछ तो द्विअर्थी अश्लील बातें करने लगते हैं और कुछ हिसाबी प्रश्नों में उलझाते हैं।जैसे कि ईनाम में क्या निकला है, कितने का है, या जितने का ईनाम नहीं होगा, उससे ज्यादा इसे लेने में खर्च हो जाएगा, इसे घर भी तो भेजा जा सकता है, वहां आने की क्या जरूरत। ऐसे लोगों को ईनाम लेने के लिए मोटीवेट करना असंभव होता है। वह अभी तक भावी ग्राहकों को बुलाने के अपने लक्ष्य का मात्र बीस-पच्चीस प्रतिशत ही कर पाई है। जबकि दो महीने का समय निकल चुका है। पता नहीं शेष एक महीने के प्रोबेशन पीरियड में लक्ष्य पूरा कर पाएगी या नहीं। उसके लिए यह चिंता की बात है। इन दिनों उसे नौकरी जाने का भय भी सता रहा है। एरिया मैनेजर से भी दो बार उसे चेतावनी मिल चुकी है और उसके कम्युनिकेशन स्किल पर प्रश्न उठाया गया। इसीलिए अब फोन करने से पहले वह अपने ऑडियंस के मनोविज्ञान का अनुमान लगाती है। अब उनके नाम, उम्र और व्यवसाय पर गौर करती है तभी उन्हें फोन मिलाती है।  

       दरअसल कूपन वाली इस गतिविधि से कंपनी अपनी एक बीमा पॉलिसी का प्रचार कर रही है और ईनाम लेने के बहाने भावी ग्राहकों को अपने ब्रांच आफिसों में बुलाकर इसके लिए परसुएट करती है। प्रार्थनेय कुमार के नाम, उम्र और व्यवसाय से प्रिया का अनुमान था कि "इस उम्र में आकर लोग परिवार और अपने स्वास्थ्य के प्रति फिक्रमंद हो उठते हैं। ये या तो रिस्पांसिबिलिटी निभाते-निभाते इकोनॉमिकली वीक हुए रहते हैं या इसे पूरा कर लेने के बाद इनकी सेविंग बढ़ी हुई होती है, इन्हें इस प्लान के लिए आसानी से मोटीवेट किया जा सकता है। और यदि ये महाशय सरकारी नौकरी में हैं, तो हो सकता है ऊपरी कमाई भी है, इन्हें ही क्यों न फोन किया जाए" सोचकर प्रिया ने प्रार्थनेय कुमार का नंबर डायल कर दिया था। पूरी रिंगटोन जाने के बाद भी उनका फोन नहीं उठा। वह दुबारा नंबर डायल करने जा रही थी कि एरिया मैनेजर रिचा का बुलावा आ गया। वह अचानक कुर्सी से उठी और बगल के कमरे की ओर चल पड़ी। एरिया मैनेजर ने उसे सामने कुर्सी पर बैठने के लिए इशारा किया। वह थोड़ी नर्वस थी लेकिन ऊपर से शांत दिखाई पड़ रही थी। 
       
       "प्रिया इट इज माई लास्ट वार्निंग, योर सक्सेज रेट इज बिलो दैन फोर्टी परशेंट.. नाउ यू हैव टू इम्प्रूव वेरी फास्ट..डु यू अन्डरस्टैंड? इट्स वेरी इम्पोर्टेंट दैट यू शुड थिंक.. व्हाइ योर टारगेटेड आडियंस डज नॉट टर्न‌अप!"
     
        "ज..जी मैम..ब..बट…" प्रिया हकलाई। ब्रांच मैनेजर रिचा की आयु बत्तीस-पैंतीस वर्ष के बीच होगी। उनके पसीनाए चेहरे पर जबर्दस्ती का मेकअप झलक रहा था और आंखों में लगाया हलका धारीदार काजल पसीने के कारण कुछ फैल सा गया था। कमरे में एसी चल रहा था। लेकिन बगल के बड़े रूम में, जिसमें एसी नहीं था, वहां ग्राहकों से कंपनी के बंदों का कन्वर्सेशन चल रहा था, जो ग्राहकों को कंपनी के प्लान के बारे में समझाइश दे रहे थे। मैडम को बार-बार वहां आना-जाना पड़ रहा था, शायद इसीलिए उनके चेहरे पर पसीना था। इस ब्रांच में अधिकतर बंदे चौबीस-पचीस से लेकर चालीस साल की आयु के बीच के थे। स्वयं प्रिया पच्चीस वर्ष की थी। वह साधारण नैन-नक्श वाली और हलके सांवले रंग की थी। आफिस वह बिना मेकअप के ही आती है। जबकि कार्पोरेट कल्चर में व्यक्तित्व को आकर्षक बनाए रखने का भी चलन होता है।
     
       "तुम कुछ बोल रही थी प्रिया..?" प्रिया के अचानक चुप हो जाने पर रिचा मैडम ने पूंछा। 
     
    "मैडम मैं पूरा एफर्ट कर रही हूं..लेकिन मैम…" बोलते-बोलते प्रिया रुक गई।

       "लेकिन क्या.." प्रिया को बात पूरी न करते देख रिचा बोली। 

      "मैम.. मैं कहना चाह रही थी..कूपन बांटने वाले बंदे ग्राहकों को समझे बिना इसे उन्हें देते चले जाते हैं..इसीलिए अधिकांश ऑडियंस टर्न‌अप नहीं होते… इस पर भी सोचना चाहिए.." प्रिया ने कहा। 

      "ओके..बट यार..तुम इस पर नहीं…अच्छा जाओ..अपने काम पर फोकस करो.. अदरवाइज.." रिचा की बोली थोड़ी तल्ख़ थी। 

      "ओ के मैडम.." प्रिया ने कहा। 

    अपने टेबल पर आते ही प्रार्थनेय कुमार का मोबाइल नंबर डायल कर दिया। 
       
                           
       ‌ * * *

        प्रार्थनेय कुमार के पैंट की जेब में रखा फोन बजा। उन्होंने फोन निकाला। मोबाइल में नंबर फीड न होने से इस नंबर की काल को पहले उन्होंने रिसीव नहीं किया था। लेकिन किसी जरूरी बात सोचकर फोन उठा लिया। लेकिन बिजनेस काॅल समझते ही स्वयं को व्यस्त बताकर फोन काट दिया। प्रिया ने इस अनुमान से फोन किया था कि यह व्यक्ति समझाने बुझाने से कंपनी का उपभोक्ता बन सकता है। एम बी ए में पर्सुएशन और अनुनयन का महत्त्व उसे पता था। इसलिए डेढ़ घंटे बीतते ही उसने फिर प्रार्थनेय कुमार को फोन किया। उन्होंने फोन उठाया तो उसने अपना परिचय दिया "जी सर.. मैं प्रिया बोल रही हूं..कंपनी से।" 'कंपनी' की बात पर प्रार्थनेय कुमार ने रूखेपन से बोला, "हां कहिए.." लेकिन प्रिया को इसकी परवाह नहीं हुई। उसे विश्वास था कि वह जो कहने जा रही है, उसे सुनकर वे उसकी बातों में रुचि लेंगे, उसने कहा,
    
     "सर आपका ईनाम निकला है।" 

      लेकिन प्रार्थनेय कुमार की "हूं..तो.?" जैसी उपेक्षात्मक प्रतिक्रिया से उसे विस्मय हुआ। उसने पूंछा, "अरे सर..! ईनाम निकलने पर आप खुश नहीं हुए क्या!" लेकिन उनकी आवाज वैसी ही रही, "भला मेरा ईनाम क्यों निकलने लगा.."‌। प्रिया ने उन्हें बताया कि लखनऊ के एक पेट्रोल पंप पर उसकी कंपनी का कूपन लिया था और ईनाम उसी कूपन पर निकला है। एक लड़के ने कूपन देते समय किसी सर्वे की बात कहकर उनसे नाम, मोबाइल नंबर और पेशा भी पूंछा था। इसे याद करते हुए प्रार्थनेय कुमार ने कहा, "कंपनियों का कूपन-सूपन पर ईनाम-फिनाम निकालना उनके विज्ञापन का तरीका है, और इस बहाने ये पैसा भी वसूलती हैं।" यह सुनकर प्रिया को चिंता हुई कि कहीं यह भावी उपभोक्ता हाथ से न निकल जा‌ए। उसने मनाने के स्वर में प्रतिवाद किया, "नहीं सर..आप आइए केवल अपना ईनाम लेकर जाइ‌ए..आपको कुछ भी नहीं देना है।" उसने उनकी रुचि ईनाम में मिलने वाली चीज के बारे में बताया और इसे लेने के लिए अगले दिन लखन‌ऊ में हजरतगंज स्थित आफिस आने के लिए कहा। इसमें किचेन में डेली यूज होने वाले कुछ सामान थे।

        प्रार्थनेय कुमार की ईनाम लेने में रुचि नहीं थी। सोचा, नाहक ही इस लड़की से बात की, उसे टालने के अंदाज में कहा कि वे लखन‌ऊ में नहीं हैं। लेकिन प्रिया भी उनके जैसे ऑडियंस को छोड़ने वाली नहीं थी और उसने पूंछ लिया कि वे लखनऊ कब आएंगे। उनके यह कहने पर कि "कोई निश्चित नहीं है..हो सकता है संडे-वंडे को आना हो.." उसने भी कह दिया था "ओके सर, हम आपको काल करेंगे..।" प्रिया का मन कह रहा था कि यह व्यक्ति फोन करने पर टर्न‌अप हो सकता है इसलिए नेक्स्ट संडे को फिर फोन करने का निश्चय कर फोन काट दिया।
                               ****
      
        रविवार का दिन था। आज हजरतगंज स्थित कंपनी के आफिस में भावी ग्राहकों के साथ मोटीवेशल कांफ्रेंस होना था। इसके लिए ग्राहकों को बुलाने की जिम्मेदारी प्रिया की थी। उसने सर्वे सूची से क‌ई नाम छांटे और उन सब को फोन कर उनके कूपन पर ईनाम निकलना बताया तथा इसे लेने कंपनी के ऑफिस में आने के लिए कहा। लेकिन उसके बहुत प्रयास करने पर भी बमुश्किल तीन लोग ही ब्रांच ऑफिस में आने के लिए तैयार हुए थे। इधर अब तक इग्यारह बज चुका था और मीटिंग भी एक बजे से शुरू होनी थी। अब उसे चौथे टेबल के खाली रहने की चिंता सता रही थी। इसके लिए एरिया मैनेजर ने उसे अल्टीमेटम भी दिया था। अचानक उसे प्रार्थनेय कुमार से हुई पिछली बातचीत ध्यान में आया! शायद वे लखनऊ आ ग‌ए हों, सोचते हुए उन्हें फोन कर दिया। 

       मोबाईल की रिंग टोन बजी तो प्रार्थनेय कुमार ने फ़्लैश हो रहा नंबर देखा। यह नंबर उन्हें कुछ जाना पहचाना लगा। शायद इस पर किसी से उनकी बातचीत हो चुकी है, सोचकर फोन उठा लिया। उनका अनुमान सही था। यह एक लड़की का फोन था। जिसने चार पांच दिन पहले हुई बातचीत याद कराया और उन्हें ईनाम लेने के लिए कंपनी के आफिस हजरतगंज आने के लिए कहा। 

      लेकिन वे इस बात से परिचित थे कि कंपनियों की कूपन पर ईनाम निकालने की गतिविधि उनके प्रोडक्ट या सेवा के विज्ञापन का तरीका है। इसलिए आधा घंटा बाद लखनऊ पहुंचने और फिर लखनऊ से बाहर जाने की बात कहा तथा ईनाम लेने आने में असमर्थता जताई। यह सुनते ही प्रिया नर्वस हो गई थी। उसे अपने एम बी ए की डिग्री पर खीझ भी हु‌ई। क्योंकि उसे जैसे अब सम‌झ में आया हो कि 'अनुनयन' या 'परसुएशन' जैसी किताबी बातों से बेवकूफ या अज्ञानी लोग ही प्रभावित होते हैं। फिर भी, क्यों न प्रार्थनेय कुमार से थोड़ी प्रार्थना ही कर ली जाए, सोचकर उसने उनका मोबाइल नंबर डायल कर दिया।
       
       इधर मोबाईल फोन की रिंगटोन सुनते ही प्रार्थनेय कुमार समझ ग‌ए कि यह उसी लड़की का फोन है। उन्होंने खीझते हुए कहा 

       "मैंने कह दिया है न…मेरा आना संभव नहीं है, आज लखनऊ से बाहर जाना है मुझे।" 

        लेकिन प्रिया ने घिघियाकर बोला, 

     "अरे सर…मैं आपकी बेटी समान हूं..प्लीज सर…बस आपको आना है, एक घंटे में हम आपको फ्री कर देंगे..यहां कांफ्रेंस हॉल में कुछ लोगों के साथ केवल एक छोटा सा प्रोग्राम है..आप से रिक्वेस्ट है सर..पत्नी को भी साथ में ले आएं..हम आपका ईनाम भी पैक करा दे रहे हैं सर।" 

        जैसे प्रार्थनेय कुमार धर्मसंकट में पड़ ग‌ए हों और जब उनसे कुछ कहते नहीं बना तो केवल यह बोलकर चुप हो ग‌ए कि "अच्छा..लखनऊ पहुंचकर देखते हैं..।" इसपर प्रिया भी चहकी, 

      "ठीक सर, थोड़ी देर बाद मैं फिर फोन करती हूं" उसे जैसे संजीवनी मिली।            
      
       अभी आधा घंटा भी नहीं बीता कि प्रिया का फिर फोन आया और उनसे लखनऊ पहुंचने के बारे में पूछा। लेकिन उनके कुछ बोलने के पहले ही उसने कहा, 

      "प्लीज सर मुझे अपनी बेटी समान ही समझना, ब्रांच आफिस जरूर आइए, आपका ईनाम भी पैक हो गया है अब मना मत करिएगा।" 

       वैसे प्रिया के बोलने का यह अंदाज और उसके शब्द उसके प्रोफेशनल उद्देश्य के लिए थे, लेकिन प्रार्थनेय कुमार ने इसे भावनात्मक रूप से ग्रहण कर लिया। वह कह बैठे,

        "अच्छा ठीक है आते हैं।" 

      इस बातचीत के बाद किसी ने कॉल करके उन्हें ईनाम का कोड नोट कराया गया। उन्हें कोड देने की यह ऐक्टिविटी कंपनी का ग्राहकों के हित की चिंता किए जाने का दिखावा लगा।
                          *****

         दोपहर के पौने एक बजा था। कांफ्रेंस हाल की चार में से तीन मेज पर 'टारगेट ऑडियंस' विराजमान थे। वे लोग अपनी पत्नी के साथ आए थे। उनके साथ कंपनी के सेल्स रिप्रेजेंटेटिव इंट्रैक्ट थे। प्रार्थनेय कुमार घर से चले या नहीं, यह जानने के लिए प्रिया ने उन्हें फोन किया। पता चला कि वे यहां आने के लिए घर से निकल चुके हैं और पत्नी भी उनके साथ हैं। प्रिया के लिए यह एक बड़ी सफलता थी, उसका खुश होना लाजिमी था, इस खुशी में उसने फोन पर ही उनसे कहा कि वह उनकी प्रतीक्षा करती मिलेगी।  
         
          प्रार्थनेय कुमार गाड़ी पार्क कर कंपनी का आफिस खोजते हुए गली में आ गए थे। इसी बीच प्रिया की कॉल आई। कान के पास फोन ले जाते ही प्रिया ने उन्हें देख लिया था। उसने पीछे मुड़ने के लिए कहा। उन्होंने मुड़कर देखा। सामने की बिल्डिंग की पहली मंजिल पर एक लड़की रेलिंग के पास खड़ी थी। वह कान पर मोबाईल लगा‌ए हुए थी। उनके देखते ही उसने हाथ के इशारे से उन्हें वहां आने के लिए कहा। उस बिल्डिंग में ही कंपनी का आफिस था। वे पहली मंजिल पर पहुंचे। लड़की उन्हें अपने सहायक मैनेजर के पास ले ग‌ई और उनसे यह कहकर कि अब ये आपको अटेंड करेंगी, चली गई। उनको जैसे किसी की सुपुर्दगी में दे दिया गया हो। ईनाम का कोड नंबर भी उनसे नहीं पूंछा गया। सामने पानी का गिलास रखा गया, लेकिन उसे पीकर कंपनी का ऋणी नहीं होना चहते थे, इसलिए प्यास न लगने का बहाना बनाया। वैसे भी कार्पोरेट कल्चर में कुछ भी मुफ्त नहीं होता और यह ईनाम भी नहीं। यहां सब चीजों के लिए कीमत चुकानी होती है। मस्तिष्क में चल रहे इन विचारों के बीच वे यह भी निश्चय कर चुके थे कि यहां आ ही ग‌ए हैं तो देखा जा‌एगा और इनके झांसे में नहीं आना है। खैर, उन्हें कांफ्रेंस हाल में ले जाया गया। जहां एक बड़े कमरे में चार अलग-अलग टेबल के साथ स्टूलनुमा ऊँची कुर्सियां रखी थी। जहां तीन पर बैठे लोगों से कंपनी के कर्मचारी वार्ता करने में मशगूल थे। उन्हें चौथे टेबल पर बैठाया गया।

      कुछ क्षण बाद छब्बीस-सत्ताईस साल का एक लड़का उन्हें अटेंड करने आया। गर्मी के मौसम में टाई पहने हुए वह स्वयं को कार्पोरेट आफिशियल्स दिखाने की भावभंगिमा में था। उसने उन पति-पत्नी को मुआयना करने के अंदाज में देखा! उनके साधारणपन से उसने सोचा पता नहीं ये कंपनी का प्लान ले पाएंगे भी या नहीं! उसके चेहरे पर हलका सा तनाव झलका उठा। दरअसल वह इस कंपनी में सेल्स रिप्रेजेंटेटिव है पिछले बीस दिनों से वह भावी उपभोक्ताओं के साथ अपने "परसुएशन" कला का प्रयोग कर इस 'प्लान' के लिए उन्हें रिझाने और मनाने का काम कर रहा है, लेकिन अभी तक किसी को भी इसका ग्राहक नहीं बना पाया है। जबकि महीने में एक ग्राहक तैयार करने का उसका लक्ष्य है। कुर्सी पर बैठते ही स्वयं को सँभालते हुए उनकी ओर देखकर वह अपने तरीके से मुस्कुराया और कहा, 

        "देखिए मैं आपके बारे में कुछ पूंछता हूं और आप भी मेरे बारे में जो मन में आए वह पूंछिए।' 
                    
                       *****
          
        लड़के ने प्रश्न पूंछने की बात मुस्कुराते हुए कही थी, इस पर प्रार्थनेय कुमार ने सोचा कि जो दूसरे का मनोभाव न ताड़ पाए, वह मासूम होता है। वे कहना चाहते थे "बेटा, मुस्कुराते हुए तुम बहुत मासूम लगते हो और हाँ, तुम्हारे बारे में क्या पूंछना, तुम नौकरी कर रहे हो वही करो, तुमसे मै कुछ नहीं पूछुंगा..अन्यथा यही होगा कि तुम्हारी बात मैं गंभीरता से ले रहा हूं जबकि ऐसा है नहीं..हां तुम जो भी मेरे बारे में जानना चाहोगे, मैं बताऊंगा.." लेकिन संकोचवश बोले नहीं मौन ही रहे।
       
        उनकी चुप्पी देख लड़के ने अपनी एम बी ए की डिग्री खंगाला। सेल्स रिप्रेजेंटेटिव को उपभोक्ताओं का ध्यान आकर्षित करने के लिए उनसे अंतरंग लगाव स्थापित करना चाहिए। इससे ग्राहक पर मनोवैज्ञानिक असर होता है, इससे वह वह उन्हें आसानी से समझा और मना लेता है। इसे याद कर लड़के ने कहा , 

        "अच्छा चलिए अंकल.. मैं ही आपके बारे में पूंछता हूं.."
    
       उसने पहले जॉब के बारे में पूँछा। उत्तर मिला तो वह चमका उठा। सोचा, इनकी नौकरी ऊपर की कमाई वाली है, तब तो ये आसानी से कंपनी का यह प्लान ले सकते हैं। और इस खुशी में चहकते हुए प्रार्थनेय कुमार के बगल में बैठी उनकी पत्नी से नाम पूँछ लिया, 

        "मूर्ति देवी.." सुनकर लड़के की हँसी छूट गई। उसने कहा "आप दोनों को नहीं लगता कि आपका नाम यूनीक और मैचिंग टाइप का है?" प्रार्थनेय कुमार भी थोड़ा हँसे और कहा, "नाम ही नहीं, पर्सनली भी हम दोनों मैच करते हैं।" इसे सुनते ही लड़का सहज हो गया। उसने खुलकर प्रार्थनेय कुमार से पूँछताछ शुरू कर दी। साथ में उनका आइडेंटीफिकेशन फार्म भी फिल‌अप करता रहा। इस बातचीत से उत्साहित हुआ उसने कहा, 

       "इतनी देर से हम आपके बारे में पूँछे जा रहे हैं, आपने तो हमारे बारे में कुछ पूंछा ही नहीं, अब आप भी पूंछि‌ए..अच्छा चलिए मैं ही अपने बारे में बताए देता हूं।"  

       लड़के ने भी अपनी पारिवारिक पृष्ठभूमि के बारे में बताया। वह इससे प्रसन्न था कि प्रार्थनेय कुमार उसकी बातों में खूब रुचि ले रहे थे। उसने कहा, 

      "देखिए इस फार्म पर मैंने आपकी कुछ जानकारियां ली है, यदि हमारी एरिया मैनेजर मैम इसे अप्रूव कर देती हैं तो हम कंपनी के प्लान के बारे में आपसे बात करेंगे, अब आगे यह सेशन बहुत महत्वपूर्ण होगा।" 
     
        लड़के ने 'अप्रूव' शब्द ऐसे बोला जैसे उसकी एरिया मैनेजर किसी महत्वपूर्ण एक्जाम का रिजल्ट डिक्लेयर कराने जा रहीं हों। दर‌असल 'अप्रूव' कराने का दिखावा उपभोक्ता को उसके विशेष होने की अनुभूति कराने की कवायद थी। जिसके प्रभाव में सामने बैठा व्यक्ति कंपनी का उपभोक्ता बनने के लिए तैयार हो जा‌ए। दूसरी बात यह कि इस तरह कंपनियां अपने उत्पाद को प्रामाणिक और महत्वपूर्ण दिखाती हैं। उस फार्म पर एरिया मैनेजर द्वारा बिना कुछ जाने समझे और लापरवाही से कलम चलाते देख प्रार्थनेय कुमार ने यही अनुमान लगाया। 

        एरिया मैनेजर के जाने के बाद सेल्स रिप्रेजेंटेटिव बना वह लड़का उनसे बोला, "सर, मैडम ने अप्रूव कर दिया, अब आप कंपनी के प्लान के लिए एलिजिबल हैं, आइए हम आपको पूरा प्लान समझाते हैं, इसे ध्यान से सुनिएगा.." 

                  ******

            लड़के ने ध्यान से सुनने के लिए कहा तो प्रार्थनेय कुमार का ध्यान टाइम पर गया। प्रिया ने एक घंटे का समय मांगा था। लेकिन अभी तो आधा घंटा ही हुआ है। उन्हें स्वयं से चिढ़ सी हुई कि नाहक ही यहां आकर फंसे। अब बीच में उठना भी अच्छा नहीं। उन्होंने लड़के की ओर देखा। सेल्समैन की भूमिका में मुस्तैद उन्हें वह आशा भरी निगाह से देख रहा था। वे उसे निराश नहीं करना चाहते थे, उनके मुंह से निकला, अच्छा समझाओ।  

       "तो फिर हम शुरू करते हैं.." कहकर लड़के ने इंश्योरेंस पॉलिसी की किश्तें और मेच्योरिटी की धनराशि समझाने लगा। इसी बीच एक स्वर सुनाई पड़ा। हाथ में गुलदस्ता लिए एरिया मैनेजर बोल रहीं थी। वे उस उपभोक्ता जोड़े का ताली बजाकर स्वागत करने के लिए कह रहीं थीं जिसने अभी-अभी कंपनी का इंश्योरेंस प्लान लिया था। सब की तरह प्रार्थनेय कुमार ने भी खड़े होकर ताली बजाया। युवा जोड़ा स्वागत से अभिभूत स्वयं को स्पेशल समझते हुए गर्वित भाव से गुलदस्ता ग्रहण करता दिखाई पड़ा। शायद कंपनी के एडवर्टाइजिंग का यह भी एक तरीका हो, अन्यथा मँहगे प्रीमियम वाली यह पॉलिसी कौन लेता है या फिर कंपनी के सेल्स मैनेजर की बातों में आकर ही ये मुर्गा बने हों! वेलकम सेरेमनी के बाद प्रार्थनेय कुमार अपने इस निष्कर्ष के साथ बैठ ग‌ए। वे सेल्स रिप्रेजेंटेटिव उस लड़के से एक बार फिर मुखातिब हुए।

         लड़के ने उनके उपभोक्ता मन को टटोला। 'प्रॉमिस' वाली मार्केटिंग स्किल की थीम पर कि लोग साबुन नहीं खरीदते हैं, वे सुन्दरता की उम्मीद खरीदते हैं, उसने प्रार्थनेय कुमार से 'प्रॉमिस' किया कि इस इंश्योरेंस पॉलिसी को लेने का अर्थ है कि आप अपनी और परिवार के सुरक्षा की गारंटी खरीद रहे हैं। लेकिन सुरक्षा गारंटी वाली बात पर न जाने क्यों प्रार्थनेए कुमार गंभीर होने का दिखावा कर ग‌ए। इससे उत्साहित हुआ लड़का उनकी पत्नी मूर्ति देवी की ओर देखते हुए अपनी सेल्समैनी वाली स्किल का छक्का जड़ दिया,

       "यदि पॉलिसी लेने के बाद आप मर जाते हैं तो कंपनी सारी किश्तें स्वयं जमा करेगी और अवधि पूर्ण होने पर आपके परिवार को पैंतीस लाख रूपए मिल जाएगा।" 

                 ******

      बीमाधारक के मरने पर परिवार को पैंतीस लाख रुपए मिलने की बात लड़के ने ऐसे कहा था जैसे कंपनी अपने इंश्योरेंस पॉलिसी में मरने का भी ऑफर दे रही हो! मतलब पॉलिसी लेने के बाद बीमाधारक का मरना ही उसके लिए बेहतर लाभ है। प्रार्थनेय कुमार ने अभी 'हां..हूं' ही किया था कि मूर्ति देवी की कड़क आवाज सुनाई पड़ी, वे जैसे लड़के को झिड़कते हुए कह रहीं थी,
      
         "अच्छा तुम ये बताओ! तुमने हमें बुलाया क्यों है? इतनी देर से मैं देख रहीं हूं तुम फालतू की बात किए जा रहे हो। क्या इसीलिए बुलाए हो?"
     
      "मैडम मैं पालिसी के बारे में ही तो बता रहा हूं, और ईनाम भी तो लेना था आपको…" मूर्ति देवी की बात से भौंचक्का हुआ लड़के ने कहा।

        "सुनो! भाड़ में जाए तुम्हारी पॉलिसी और ईनाम.. हमारे पास समय नहीं है यह सब सुनने के लिए.." 
      
       मूर्ति देवी शांत नहीं हुई, पति की ओर मुखातिब हुई, 
     
        "और तुम! वैसे तो तुम्हारे पास समय नहीं रहता लेकिन यहां बैठने के लिए समय ही समय है! तुम्हें दोपहर बाद कहीं जाना भी तो था..चलो उठो यहां से.."
        
         पत्नी के इस रुख से लड़के के सामने प्रार्थनेय कुमार असहज हो गए। उन्होंने लड़के की ओर देखा। उसके चेहरे पर पसीने की बूंदें चुहचुहा आई थी।

     "अरे सर! प्लान मत लीजिए..पंद्रह मिनट और बैठ लीजिए, कम से कम मेरी बात तो पूरी हो जाए..आप से एक घंटे का समय देने के लिए कहा गया था.." लड़के ने मायूसी से कहा जैसे छक्का मारने के चक्कर में उसे बाउंड्री पर लपक लिया गया हो। 

      मूर्ति देवी के चेहरे पर गुस्से का भाव था! फिर भी प्रार्थनेय कुमार ने हिम्मत बटोर कर उनसे कहा,
      
        "हां अभी पंद्रह मिनट बाकी है, बस ये अपनी बात पूरी कर लें तो चल देते हैं.."
    
       "सुनो! तुमको सुनना है तो सुनो..मुझे अब नहीं बैठना.. मैं चलती हूं" कहते हुए मूर्तिदेवी उठने को हुई। तभी स्थिति भांपकर एरिया मैनेजर वहां आई। सेल्समैन लड़के से उसने कहा, "ये नहीं सुनना चाहते तो जाने दो इन्हें।" मूर्ति देवी को उठते देख प्रार्थनेय कुमार भी खड़े हो गए और दोनों बाहर की ओर चल दिए।

      इधर लड़के को समझ में नहीं आया कि ऐसी क्या बात हो गई कि मूर्ति देवी अचानक भड़क उठी और ईनाम लिए बिना ही दोनों जा रहे हैं! उसे अपने मार्केटिंग स्किल पर भी झल्लाहट हुई। उसके आत्मविश्वास को चोट पहुंची थी। अब वह किंकर्तव्यविमूढ़ था। इसी समय एरिया मैनेजर उसके पास आई और बोली, "देखो! वे लोग जा रहे हैं..उनका ईनाम तो उन्हें दे दो।"

      लड़का एक पैकेट उठाकर उनके पीछे भागा, वे अभी आफिस के कोरीडोर से गुजर रहे थे। न चाहते हुए भी उन्हें वह पैकट लेना पड़ा।
     
       दोनों नीचे आ गए थे। प्रार्थनेय कुमार से उनकी पत्नी ने कहा "वैसे तो तुम बहुत समझदार बनते हो, लेकिन यहां बेवकूफ बनने चले आए!"

      देखो तुम भी तो हज़रत गंज चलने की बात पर पहले से ही तैयार होकर बैठ गई थी..और बात बेवकूफ बनने की नहीं, उस लड़की प्रिया ने यहां आने के लिए इस तरह रिक्वेस्ट किया कि टाल नहीं पाया..आना पड़ा..हो सकता है.. मेरे आने से उसे जाब में कुछ सहायता हुई हो..

       "लेकिन तुमने लड़के की आँखों में नहीं देखा! उसकी आँखों में बेबसी झलक रही थी, जैसे अपने अंदर कोई पीड़ा छिपाए हो! आज के दौर में प्राइवेट कंपनियों में भी नौकरी करना आसान नहीं है..और हां कितनी बार मैं बाहर निकलती हूं..?" मूर्ति देवी ने शांत भाव से लेकिन पति की ओर आँखे तरेरते हुए कहा। शायद हजरतगंज आने के लिए तैयार होकर बैठने की बात उन्हें बुरी लगी थी।
       
        देखो वह बच्चा है फिर भी कुछ करने की उसके अंदर इच्छा शक्ति भी है। लेकिन तुमने तो उस बेचारे को झिड़क दिया.. प्रार्थनेय कुमार ने मुस्कुरा कर पत्नी से कहा।
   
        "यह तो दूसरी बात है, उसने कुछ ऐसा कह दिया था, और देखो! मैं कोई बात बनाकर नहीं कह पाती" मूर्ति देवी ने कहा।

          दोनों पैदल चलते हुए हजरतगंज के मुख्य स्ट्रीट पर आ ग‌ए थे। अचानक प्रार्थनेय कुमार ने कहा, "आओ मोतीमहल में चलकर कुछ खाते हैं।" दोनों रेस्टोरेंट में चले ग‌ए थे। 

        रेस्टोरेंट से निकलने पर मूर्ति देवी ने पति से कहा "देखो तुम्हारे पास कोई ढंग का कुर्ता नहीं है, चलकर ले लेते हैं। रविवार का दिन था ज्यादातर दुकानें बंद थी। वे दोनों दुकान खोजते हुए आगे बढ़ ग‌ए। 

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