इस साम्यवाद में बहुत धोखेदारी है, जब साम्यवाद विस्तारवादी राष्ट्रवाद में परिणत हो जाता है तो दुनियाँ को कोरोनामय कर देता है! हाँ साम्यवादी बुद्धि बहुत विचित्र तरीके से काम करती है| किसी जमाने में पूँजीवाद का विरोध इसका हथियार था और आज पूँजीवाद में छिपे लालच को इसने अपना हथियार बनाया हुआ है| इसके बल पर ही अब यह दुनिया पर कब्जे के लिए रणभेरी बजा रहा है, और दुनियां है कि सहमी हुई इसे देख रही है| इसे देखने के सिवा शेष विश्व के पास और कोई चारा भी तो नही! आज चीन की इसी साम्यवादी-विस्तारवादी प्रवृत्तियों ने दुनियाँ को डस लिया है|
अमेरिका हो या यूरोप, साम्यवादी-बुद्धि के खेल को समझ नहीं पाए! दरअसल इसमें अमेरिका, युरोप या भारत जैसे देशों का दोष नहीं है, लोकतंत्र में निहित उस खामी का दोष है, जिसे अभी तक पूँजीवाद को साधना नहीं आ पाया| लोकतंत्र ने इसे (पूँजीवाद) ही लक्ष्य मान लिया और इसी लक्ष्य ने साम्राज्यवादी-साम्यवाद को अवसर प्रदान किया| परिणामस्वरूप आज दुनियाँ कोरोना के डंक से कराह रही है, तथा लोकतंत्र किंकर्तव्यविमूढ़ है, आखिर ऐसा क्यों हुआ?
दरअसल पूँजीवाद में लोकतंत्रात्मक नहीं बल्कि अधिनायकवादी प्रवृत्तियाँ होती हैं और जो अपनी श्रेष्ठता के अहंकार में लोकतंत्र की आत्मा का शिकार करती है| इस पूँजीवादी व्यवस्था के लिए समाज का वर्ग-चरित्र एक आवश्यक बुराई की तरह है, और जिस तरह से साम्यवाद वर्ग-चरित्र को नष्ट करने का ढोंग करता है उसी तरह से लोकतंत्र में भी यह ढोंग होता है| विशुद्ध पूँजीवादी देश अपने संसाधनों और अपनी बौद्धिक पूँजी के बल पर इस आवश्यक बुराई पर विजय पाने में कुछ हद तक सफल हुए हैं लेकिन इसके सफल होने की भी एक सीमा है और यहीं पर चीन जैसे देश को अवसर मिलता है| यदि विकसित यूरोप और अमरीका अपने नागरिकों के आर्थिक-जीवन में उपभोग के स्तर को कमतर नहीं देखना चाहते, तो चीन भी पूँजीवाद की चकाचौंध से अपने नागरिकों के बीच साम्यवाद की सफलता की कहानी लिखना चाहता है, यह बिना साम्राज्यवादी हुए संभव नहीं| इसीलिए चीन दुनियां भर में बाजार खोजकर इनपर कब्जा जमाना चाहता है और फिर उसकी साम्यवादी सत्ता-व्यवस्थाएँ क्रूर से क्रूरतम होकर कोरोना जैसे वायरस को जन्म दे देती हैं| सच तो यह है कि यह चीन की साम्यवादी-साम्राज्यवादी कोरोना-मिशन है, क्योंकि समय रहते उसने शेष विश्व को इसके बारे में आगाह नहीं किया|
वाकई! लोकतांत्रिक व्यवस्थाएँ जहाँ पूँजीवाद के मकड़जाल में उलझकर, अर्थव्यवस्था, जीडीपी और आर्थिक-प्रगति की चिंता में इस 'कोरोना-मिशन' के सामने किंकर्त्तव्यविमूढ़ खड़ी असहाय हैं वहीं स्वयं चीन के साम्यवाद के लिए भी एक घातक परिस्थिति बन रही है, क्योंकि शेष विश्व को कोरोना से यह भी सीख मिल रही है कि पूँजीवाद से आया शहरीकरण और उपभोक्तावाद तथा विभिन्न विचारों-मतों और धर्म की साम्राज्यवादी मनोवृत्तियाँ समग्र मानवता के लिए ख़तरनाक है; परिणामस्वरूप एक दिन सारा विश्व एकजुट होकर मानवता-विरोधी' कोरोना-मिशन' जैसी इन प्रवृत्तियों से लड़ रहा होगा और इस चीनी साम्राज्यवाद को खाद-पानी मिलना बंद हो जाएगा| इस नए विश्व में भारत की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण होने जा रही है|