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गुरुवार, 19 सितंबर 2013

कामवालियां

         उस दिन मैंने घर पर एक नई कामवाली को देखा; मैंने सोचा चलो अब श्रीमती जी की झल्लाहट मेरे ऊपर थोड़ी कम हो जाएगी। इधर कई दिनों से घर के छोटे-मोटे काम खासकर घर की साफ सफाई उन्हीं को करनी पड़ रही थी क्योंकि पहलेवाली कामवाली कुछ दिन पूर्व ही काम छोड़ कर चली गई थी और इसका खामियाजा मुझे रह-रह कर मेरे ऊपर उनकी झल्लाहट में मिल जाया करता था, जैसे ‘मैं तो घर की नौकरानी हूँ, मेरी चिंता किसको है’ उन्हीं के शब्दों में ‘मैं नौकरी कर परिवार पर अहसान कर रहा हूँ’ आदि-आदि। हालांकि मैं अपने तर्कों से उनकी झल्लाहट को अपने तरीके से कम करने का प्रयास भी करता था और कभी-कभी इसमें सफलता भी मिल जाया करती थी...मेरे इस तर्क से वह सहमत थी कि इस प्रकार घर का काम करने से शरीर स्वस्थ रहता है तथा शरीर की स्थूलता में भी कमी आती है। 
       मैंने कामवाली को देखते हुए, जो उस समय पोंछा लगा रही थी, श्रीमती जी से पूँछा, ‘अच्छा ये बताओ इसके बैकग्राउंड के बारे में कुछ पता-वता किया है कि नहीं...कौन है कहाँ से है...कि ऐसे ही काम पर रख लिया।’
       पत्नी जी ने उत्तर दिया, “अरे और कहाँ की है वही आसाम की है..वही जो बंगलादेशी लोग आसाम में बसे हैं उन्हीं में से है।”
       खैर पत्नी जी की अन्य बातों से मैं सहमत होऊँ न लेकिन इस बात से सहमत था कि वह भी घर में काम कर चुकी अब तक अन्य कामवालियों की तरह आसाम या बंगाल की ही होगी। तभी उस कामवाली की एक छोटी बच्ची दिखाई दी उसे देखते हुए मैं श्रीमती जी से पूंछ पड़ा, “इसका पति क्या करता है...। ” मेरे इस प्रश्न का उत्तर देने के पूर्व उन्होंने एक गहरी सांस ली, और फिर बोली, “यह तो बता रही थी....” फिर चुप हो गयीं।
        मैं उनकी इस गहरी सांस और चुप्पी के बाद आगे उसके बारे में और अधिक जानने की इच्छा को त्याग दिया। तब तक पोंछा लगाते हुए वह हम लोगों से थोड़ी दूर जा चुकी थी। 
       उसकी ओर देखते हुए वह बोली, ‘बेचारी..!’
       यह सुनकर कामवाली के बारे में जानने की जिज्ञासा मेरे मन में पुनः जागृत हो गई। 
       मैंने फिर पूँछा, “क्या बता रही थी...?”
       “बता रही थी...यह अपने पति की दूसरी पत्नी है...।” पत्नी ने कहा|
       “क्या इसके पति ने अपनी पहली पत्नी को छोड़ दिया है...!” मैंने अपनी जिज्ञासा बढ़ाई।
       श्रीमती जी ने उत्तर दिया, “नहीं, छोड़ा नहीं था...यह बता रही थी कि उसने पहली वाली पत्नी को मार डाला था...। 
       मैं आश्चर्य से बोला, “क्या...!”
       “यह बच्ची किसकी है...।” मैंने पूँछा|
       उन्होंने आगे बताना शुरू किया, “यह बच्ची तो इसी की है, हाँ पहली वाली को एक लड़का भी था...लेकिन वह बेचारा भी...!”
      “बेचारा...!” मेरी उसके बारे में जानने की उत्सुकता बढ़ चुकी थी। 
       अब श्रीमती जी मेरी ओर देखती हुई बोली, “हाँ...वह बेचारा ही तो था...यह कामवाली बता रही थी... जब उसका पति उसकी माँ को मार रहा था तो वह छोटा बच्चा अपनी माँ को खून से लथपथ मार खाते मरते हुए देख रहा था...यह दृश्य देखकर उसका दिल बैठ गया और बेचारा मर गया...! इसके बाद.. इससे शादी किया।”
       मैं मन ही मन उस क्षण की कल्पना करने लगा जब उस बच्चे ने अपनी माँ को उस स्थिति में देखा होगा...बच्चे की उस समय की मन:स्थिति क्या रही होगी...! सोचकर...मैं बरबस बोल उठा, “ओह...!” और एक गहरी सांस ली। 
      श्रीमती की ओर मुखातिब होते हुए बोला, “इन कामवालियों की जिन्दगी भी क्या होती है...! इस बात का ध्यान रखना...यहाँ ठीक से झाड़ू नहीं लगाया...कोने में पोंछा लगाना भूल गई...जैसी टोका-टाकी इससे अधिक मत करना नहीं तो अन्य कामवालियों की तरह यह भी काम छोड़ कर चली जाएगी।”
     श्रीमती जी ने आँखे तरेरा और बोली, “जैसे मैं ही सब की दोषी हूँ...।” 
      मैं उनके गुस्से से थोड़ा भयभीत हो बातचीत की धारा को दूसरी दिशा देते हुए बोला, "अच्छा इसका पति क्या करता है…?"
      श्रीमती जी ने आगे जानकारी देते हुए बताया, "यह तो बता रही थी…इसका पति इसके साथ नहीं रहता…वह आजकल मुंबई में रह रहा हैं…।" 
      "अच्छा…! वह इसकी खबर लेता है …?" मैंने फिर पूँछा।
      "नहीं इसके अनुसार तो इसका पति इससे भी कोई खास मतलब नहीं रखता लेकिन इस छोटी बच्ची से कभी-कभार फोन से बात करता है…।" श्रीमती जी ने उत्तर दिया।
       "हूँ…।" मैं कुछ सोचते हुए बोल उठा। 
       तभी पत्नी की आवाज पुनः सुनाई दी, "यह तो कह रही थी कि पति को बच्ची से भी बात नहीं करने देती।"
        इसका कारण पूँछने पर श्रीमती जी ने मेरी जानकारी  में वृद्धि किया और बोली, "पति के पहले वाले कृत्य को सोचकर… कि बच्ची पर कोई गलत प्रभाव न पड़े इसी कारण बच्ची से बात नहीं करने देती।"
        तभी उस कामवाली की बच्ची रोने लगी वह उसे एक कोने में ले जाकर दूध पिलाने लगी।
        एक दिन सुबह जब वह कामवाली नहीं आई थी तो मैंने उसके न आने का कारण श्रीमती जी से पूँछा तो वह बोली, "क्या करती उसकी लड़की तो घर में इधर-उधर कूदती और रोती रहती जब देखो तब काम छोड़कर वह उसे दूध पिलाने बैठ जाती…ऐसे थोड़ी न काम होता है…।"
         "तो…" मैं पत्नी को घरेलू कार्यों के संबंध में प्रोफेशनल अंदाज में सोचते हुए देखकर बोला।"
        "तो क्या.… मैंने कह दिया कि अब वह काम पर न आया करे।" श्रीमती जी मेरी ओर देखती हुई बोली। शायद उन्हें प्रफेशनल ढंग की कामवाली की आवश्यकता थी।  
       हालांकि मेरी पत्नी भी मानववादी हैं वह इस बात को समझती हैं कि मैं इसे समझता हूँ कामवाली को हटा देने से कहीं उनके मानवतावाद पर कोई चोट तो नहीं लगी सोचकर उन्होंने आगे कामवाली को हटाने के संबंध में सफाई सी देते हुए कहा, " एक तो यह बहुत गंदे से रहती थी और बच्ची को भी बहुत गंदे से रखती थी…. जानते हो, झुग्गी-झोपड़ी से कौन से रोग-व्याध लेकर वह यहाँ टहल रही हो…।"
        सुनकर मैं चुप रहा, मेरी चुप्पी उन्हें खलने सी लगी थी फिर आगे कहना शुरू किया, "एक तो उसके बारे में मुझे कोई सही जानकारी नहीं थी कि वह कहाँ की है और कैसी है दूसरे उसकी बातों पर भी मुझे विश्वास नहीं….जानते ही हो शहरों में तमाम तरह की उलटी सीधी बातें सुनाई देती रहती हैं यही सब सोचकर मैंने उसे हटा दिया।"
       मैं पता नहीं क्या सोचकर एक गहरी सांस लेते हुए कहा, "चलो फिर से दूसरी कामवाली ढूँढना।"
      हम-दोनों के बीच चुप्पी पसर चुकी थी।
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