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मंगलवार, 26 सितंबर 2017

अकथ-मन

"वह खिलखिलाकर हँस रहा है...उसकी खिलखिलाहट के बावजूद उसकी माँ की आँखों में आँसू है...वह उठ कर बैठना चाहता है, पर बैठ नहीं पा रहा..माँ को देखता है...माँ के पास जाना चाहता है...कैसे जाए..उसे समझ नहीं...जब उसे उठना होता है, तो माँ ही उसे उठाती हैं...अब माँ के पास आने का मतलब समझने लगा है... माँ जब भी उसके पास आती है वह खिलखिलाने लगता है...उसे अच्छा लगता है.. उसकी आँखों में चमक आ जाती है.... माँ की गोंदी में वह वह कितना कुछ देख पाता है...! उसे नयी-नयी चीजें दिखाई देने लगती हैं...उसका मन करता है.. वह इन सब को ऐसे ही देखता रहे...लेकिन बिना माँ के यह सब संभव नहीं...आखिर ऐसा क्यों है...

            अब वह कुछ-कुछ समझने लगा था..अरे! वह मेरी तरह ही है...लेकिन यह क्या! मैं उसके जैसा क्यों नहीं..ये मुँह में कुछ डाल रहा है..बिना अपनी माँ के..!! ये हाथ क्या होता है..?  पैर किसे कहते हैं..? यह उसे नहीं बताया गया... माँ ने बताया था...मेरे मुँह है..आँखें हैं...कान है...सब मुझे ध्यान से देखते हैं... कुछ हँसते हैं... माँ मुझे देखती है... तो रोती है.... मैं माँ से बोलुंगा..."माँ मुझे देखकर तुम रोती क्यों हो..?" माँ ने कहा था, मेरे हाथ नहीं है...पैर नहीं है...मैं बिना हाथ पैर के पैदा हुआ था...वह इसीलिए रोती है...माँ का रोना कैसे बंद हो..!!

            माँ उसे उसे बच्चों के बीच ले जाती है...उसे भी खड़ा कर देती हैं... लेकिन....उसे नहीं पता वह खड़ा है या बैठा है...

          धीरे-धीरे अब वह समझने लगा है... माँ से कहता है "माँ मैं भी खेलना चाहता हूँ..." माँ उसे बच्चों के बीच छोड़ देती हैं...यूँ ही वह खुश हो लेता है...यही उसका खेलना हो जाता है...उसकी आँखों में चमक आ जाती है।"