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शनिवार, 10 मार्च 2018

महोबा: जल-समस्या और समाधान

         अकसर बुंदेलखण्ड की चर्चा सूखे की समस्या के संदर्भ में ही होती है और इसमें महोबा जनपद इस समस्या से विशेष प्रभावित दिखाई देता है। महोबा जनपद एक तरह से पठारी क्षेत्र है, फिर भी उपजाऊ भूमि और प्रकृतिक विविधता की दृष्टि से यह एक समृद्ध जनपद है। लेकिन यहाँ की कृषि वर्षा पर आधारित है और वार्षिक औसत वर्षा 700 से 900 मिमी के मध्य होती है। विगत पांच वर्ष के वर्षा के आंकड़े बताते हैं कि जनपद महोबा में वर्ष 2013 और 2016 जिसमें क्रमशः 1047.25 और 1112.59 मिमी वर्षा हुई और वर्ष 2014, 2015 एवं 2017 में औसत वर्षा से कम, क्रमशः 389.44, 400.89 और 768.70 मिमी ही वर्षा हुई जिससे सूखे जैसी स्थिति बनी।
          पठारी क्षेत्र होने के कारण महोबा जनपद के भूगर्भीय संरचनाओं में दरारें हैं, जिनसे होकर भूगर्भीय-जल केन, बेतवा और यमुना नदियों में चला जाता है, और भूगर्भीय-जल दीर्घावधि के लिए संचित नहीं हो पाता। इसीलिए यहाँ के कृषक खेतों की सिंचाई के लिए सतही जल पर निर्भर होते हैं। इसे देखते हुए महोबा में पाँच बड़े जलाशय यथा कबरई, अर्जुन, मझगवां, चन्द्रावल एवं उर्मिल में वर्षा जल के संग्रहण की व्यवस्था है। इसीप्रकार 18 अन्य छोटे-बड़े अन्य तालाबों के साथ कुल 939 तालाब हैं। इस जनपद में इन्हीं जलाशयों और तालाबों से सिंचाई के लिए छोटी-छोटी 533.242 किमी लम्बी नहरें भी निकाली गई हैं। इसके अतिरिक्त जनपद में अब तक 159 बंधियों का भी निर्माण किया गया है। 
             प्रायः देखा गया है, किसी वर्षा-ॠतु में पर्याप्त वर्षा (900-1000 मिमी) हो जाने पर यहाँ के जलाशयों और तालाबों में पर्याप्त मात्रा में जल-संग्रहण हो जाता है, जिससे आगामी रवी आदि की फसलों की सिंचाई हो जाती है और कृषि-उत्पादन अच्छा होता है। लेकिन, किसी एक साल की ऐसी पर्याप्त वर्षा से भंडारित जल भी दिसंबर-जनवरी माह तक ही सिंचाई के लिए उपलब्ध होता है। इसके बाद इन जलाशयों और तालाबों में जलस्तर घट जाने से नहरों आदि का संचालन संभव नहीं होता और आगामी वर्षा-ॠतु में अववर्षण की स्थिति में इस जनपद में कृषकों को फिर से सूखे जैसे हालात का सामना करना पड़ता है। इस स्थिति में जनपद के कबरई, चरखारी और जैतपुर विकास खंड विशेष रूप से प्रभावित होते हैं। 
         
              महोबा जनपद को, इन स्थितियों के बरक्स पेयजल की समस्याओं से भी दो-चार होना पड़ता है। वैसे, जनपद में इण्डिया मार्क-2 हैंडपंपों का प्रतिस्थापन प्रति हैंडपंप 150 की आबादी के मानक की तुलना में वर्तमान में प्रति हैंडपंप 50 व्यक्ति से भी कम हो चुका है। तात्पर्य यह कि आबादी के मानक की तुलना में इस जनपद में स्थापित हैंडपंपों की संख्या अब अधिक हो चुकी है। इसीप्रकार जनपद में 74 पाइप पेयजल योजनाएँ भी संचालित हैं। जिनसे लगभग 90 से अधिक ग्रामों को पेयजल उपलब्ध कराया जाता है। इसके अतिरिक्त 5 नगरीय क्षेत्रों के लिए भी पाइप पेयजल परियोजनाएं संचालित की जा रही है। 
           जहाँ तक हैंडपंपों का प्रश्न है, सूखे या अववर्षण की स्थिति में, भूगर्भीय जल-स्तर घट जाने के कारण कुल स्थापित हैंडपंपों में से 25 से 30 प्रतिशत हैंडपंप फेल होने लगते हैं, जिनमें 8-10% रिबोर और शेष लगभग 15 से 20 प्रतिशत हैंडपंपों में पाइप बढ़ाने की आवश्यकता पड़ती हैं। सूखे के कारण जलस्तर घटने से पाइप-पेयजल योजनाओं की क्षमता में भी कमी आ जाती है, और इनके अनुरक्षण के प्रति भी ग्रामीणों में उत्तरदायित्व की भावना अभी नहीं आ पायी है। अकसर टोंटियों का खुला रहना, पाइप लीकेज और नलकूपों के संचालन जैसी समस्याओं से इन परियोजनाओं को जूझना होता है तथा ये अपनी पूर्ण क्षमता के साथ काम भी नहीं कर पाती। फिर भी सूखे की स्थिति में, जनपद में स्थापित हैण्डपंपों और पाइप-पेयजल योजनाओं के कारण पेयजल का संकट उत्पन्न नहीं होने पाता। इधर वर्तमान में भूगर्भीय-जल के दोहन की सीमा को देखते हुए सरकार की मंशा सतही जलस्रोतों पर आधारित पाइप-पेयजल योजनाओं के संचालन की है।
             भौगोलिक स्थिति और उक्त समस्याओं के परिपेक्ष्य में सतही-जल का संरक्षण ही यहाँ के सूखे जैसे समस्या का एकमात्र स्थायी समाधान है। हलांकि चंदेल काल से ही बड़े-बड़े जलाशयों और तालाबों के माध्यम से इस क्षेत्र में वर्षा-जल के संरक्षण का कार्य किया जाता रहा है। वर्तमान में भी चेकडैम, खेत-तालाब और बंधियों के निर्माण के माध्यम से इसमें और तेजी लाई गई है। इसतरह जनपद में छोटे-बड़े कुल तालाबों की संख्या 1000 के आसपास पहुँच जाती है। लेकिन अभी भी जल-संरक्षण हेतु योजनाओं के स्थलीय चयन में गुणवत्तापरक-सावधानी बरते जाने की आवश्यकता है, जिनसे जल-संग्रहण में ऐसी परियोजनाएँ कारगर हो सकें। 
            
             लेकिन, महोबा जनपद में वर्षा-जल पर निर्भर जल-संग्रहण परियोजनाएं, तालाब आदि सूखे और अववर्षण की स्थिति में बेमानी सिद्ध होते हैं क्योंकि इस क्षेत्र में वर्षा आधारित सतही-जल के संरक्षण की भी एक सीमा है। आज इक्कीसवीं सदी में भी हम यहाँ के जलाशयों और तालाबों में जल-भरण के लिए वर्षा-जल पर ही निर्भर हैं, जबकि इस क्षेत्र में अब अकसर अनिश्चित और असमान वर्षा भी होने लगी है। इस तरह आज तक आजादी के इतने वर्षों बाद भी हम इस समस्या पर स्थायी समाधान नहीं दे पाए हैं और इस दिशा में कई वर्षों से निर्माणाधीन एक कारगर अर्जुन सहायक परियोजना को भी अभी तक पूरा नहीं कर सके हैं।
         अर्जुन सहायक परियोजना बुंदेलखण्ड क्षेत्र की मुख्य धसान नदी के वर्षा काल में व्यर्थ प्रवाहित हो जाने वाले जल को लहचूरा बाँध का आधुनिकीकरण कर भण्डारित करने और भंडारित जल से अर्जुन तथा चन्द्रावल बाँध को प्रति वर्ष पूर्ण क्षमता से भरे जाने की योजना है। इस अर्जुन सहायक परियोजना के अन्तर्गत लहचूरा बांध से अर्जुन बांध को पोषित करने वाली अर्जुन पोषक नहर लंबाई 41.60 किमी, अर्जुन बांध से कबरई बांध को पोषित करने वाली कबरई नहर लंबाई 31.80 किमी, कबरई बाँध का उच्चीकरण तथा कबरई मुख्य नहर लंबाई 53.40 किमी निर्माणाधीन है। इस परियोजना के अपूर्ण रहने के पीछे धनाभाव और मुआवजे को लेकर कृषकों से संबंधित विवाद बाधक-कारण रहे हैं। बताया जा रहा है कि, परियोजना को पूर्ण करने में आ रही इन कठिनाइयों को अभी भी पूरी तरह से दूर नहीं किया गया है। वास्तव में बुंदेलखण्ड के सूखे से प्रभावित महोबा जिले के लिए इस महत्वपूर्ण परियोजना में बिलंब होने की यह स्थिति काफी चिंताजनक है, इससे बुंदेलखंड को लेकर हमारी संवेदनशीलता पर भी प्रश्नचिह्न खड़ा होता है।
         हलांकि यहाँ के सूखे जैसी विकराल समस्या के लिए यह परियोजना भी पूर्ण समाधान नहीं है। असल में, अर्जुन सहायक परियोजना धसान नदी आधारित परियोजना है, जिसका जलग्रहण-क्षेत्र मध्यप्रदेश का बुंदेलखंड जैसा क्षेत्र है जो सूखे से प्रभावित या कम वर्षा वाला क्षेत्र है। इस स्थिति के कारण लहचूरा बांध में जल-भण्डारण की क्षमता प्रभावित हो सकती है, जिसका प्रभाव इस परियोजना से प्रस्तावित जलाशयों के पूर्ण क्षमता से भरने पर पड़ सकता है। अतः विशेषज्ञों को महोबा जनपद को सूखे से मुक्ति दिलाने के लिए किसी अन्य समाधान की दिशा में भी सोचना होगा। 
           महोबा जनपद के आसपास से 50 से 80 किमी की दूरी पर तीन महत्वपूर्ण नदियाँ केन, बेतवा और यमुना प्रवाहित होती हैं। वर्तमान में तो अर्जुन सहायक परियोजना को केन नदी से भी लिंक करने की योजना है। लेकिन, बुंदेलखण्ड में सूखे की स्थिति में जहाँ केन और बेतवा वर्षा-ॠतु में भी सूखी नदी जैसी स्थिति में रहती हैं, वहीं यमुना नदी वर्षाकाल में पंद्रह से तीस दिन तक बाढ़ जैसी स्थितियों के साथ प्रवाहित होती है। इस स्थिति में यहाँ सूखे की समस्या के स्थायी समाधान हेतु यमुना नदी आधारित लिफ्ट कैनाल जैसी परियोजना पर काम करना होगा और इसे महोबा के बांध परियोजनाओं, जलाशयों और तालाबों आदि से जोड़ना होगा। जिससे बारिश के दिनों में यमुना नदी में व्यर्थ प्रवाहित हो रहे अतिरिक्त जल को यहाँ पहुँचाते हुए इन बाँध परियोजनाओं, झीलों, तालाबों आदि को भरा जा सके और सिंचाई तथा पेयजल जैसी समस्याओं का स्थायी समाधान हो सके। यदि आजादी के बाद की सरकारों ने इस विषय पर गंभीरता से विचार किया होता, तो अब तक महोबा जिला जल-संकट से उबर चुका होता, लेकिन बुंदेलखंड की ऐसी समस्याओं के समाधान के लिए हम मात्र लोकलुभावन तरीकों पर ही उलझे रहे हैं। 
                      -  जिला विकास आधिकारी 
                                     महोबा