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सोमवार, 24 अक्तूबर 2022

हवाई सभ्यता

मेरे बगल में बैठे व्यक्ति ने जब "एक्सक्यूज मी" कहा तो उसे देखते हुए मैं सोचने लगा कि यह व्यक्ति किससे क्षमा प्रार्थी है! उसकी यह क्षमा प्रार्थना ब्रेकफास्ट की ट्राली ले जाती विमान परिचारिकाओं को लक्षित था। सुबह का समय था। लखनऊ से अहमदाबाद की उड़ान थी यह। जहाज ऊपर आसमान में बत्तीस हजार फीट की ऊंचाई पर पहुंचकर स्थिर हो चुका था। सोचा, इस उड़ान को पकड़ने के लिए लोग भोर में हीं घर से निकले होंगे बेचारों को चाय-वाय पीने का भी समय नहीं मिला होगा! एयर होस्टेस ने उस व्यक्ति को कोई पेय पदार्थ दिया। अभी उसने ट्राली खिसकाया ही था कि मेरे पीछे वाली सीट से भी वैसू ही "एक्सक्यूज मी" वाली आवाज आई। खैर इसी टोन की मैंने कुछ अन्य आवाजें सुनी। वाकई में, नफासत से कहा जा रहा 'एक्सक्यूज मी' सुनकर मुझे तत्काल अहसास हुआ, नहीं, हम जमीन पर नहीं हैं बल्कि सभ्यता की बुलंदियों पर ऊपर आसमान में 11 किलोमीटर की ऊँचाई पर हैं। 

      

        मुझे देश में पैर पसारती इस सलीके वाली सभ्यता पर नाज हुआ, जो जहाज में बैठे लोगों में मूर्तिमान होती दिखाई पड़ी। इसी के साथ एक पुरानी बात याद आई, वह मेरी पहली हवाई यात्रा थी और वह भी आधे घंटे की। ऐसी ही ट्राली खींचती विमान परिचारिका से चाय और कुछ स्नेक्स लिए थे और ऐसे ही सभ्य अंदाज में इसकी कीमत ढाई सौ रुपए चुकाया था। इसके बाद की दो-दो घंटे की यात्राओं में भी मुझे कभी वैसी चाय की तलब नहीं लगी। दरअसल ऐसी सभ्यता बहुत कीमती होती है। खैर, इस उड़ान में कुछ लोगों को 'एक्सक्यूज मी' के साथ इन चीजों को लेते हुए देखा तो नुक्कड़ की चाय वाले की दूकान याद आ‌‌ई जहां 'अबे छोटू' या 'ऐ लड़के' सुनते हुए एक लड़का कभी इस टेबल पर तो कभी उस टेबल पर कुल्हड़ में चाय देने दौड़ पड़ता। 


        इस पर तो सोचा ही जा सकता है कि प्योर दूध की चाय और वह भी पाँच रूपए में देने वाले लड़के को "अबे छोटू" सुनना पड़ता है और वहीं आसमान में ढाई सौ रूपए में मिलने वाली पनघोघ्घो टाइप की चाय के लिए एयर होस्टेस "एक्सक्यूज मी" जैसी मधुर आवाज सुनती है। आजकल हवाई कल्चर परवान चढ़ रहा है आम आदमी भी हवा में रहने लगा है। हवा में रहने पर यह बेचारा सभ्य होने लगा है। वैसे जमाना कारपोरेट कल्चर का भी है, यह सलीके से आम आदमी की जेब खाली करा लेता है!! यही नहीं, इसके लिए वातावरण भी सृजित करता है। एक बात और, इस कल्चर में ऊँची दूकान का पकवान महत्वपूर्ण नहीं, महत्वपूर्ण हो जाता है ऐसी ऊँची दूकान में होना, जो खामखां आदमी को सभ्य बना देती है। मेरे समझ से यह दिखावे की सभ्यता है।