बचपन में कभी किसी के मुँह से जब मैंने सुना "अरे उसके यहाँ क्या जाना...क्या खाना?" इस बात पर मैंने अपने दादाजी से पूँछा था कि "उसके" यहाँ जाना और खाना क्यों मना है, तो उन्होंने बताया था कि "विधर्मियों" के यहाँ नहीं जाते-खाते। चूँकि दादाजी से प्रश्न करने की आदत थी, इस पर मैं "विधर्मी" का मतलब पूँछ बैठा,तो दादाजी ने "उसके" ऊपर किसी का "कतल" करने का आरोप बताया था। उस समय यह बात मेरे लिए आई गई हो गई थी और इस पर मैंने बहुत कान भी नही धरा, लेकिन यहीं से मैंने "किसी गलत काम करने" को "विधर्म" समझने लगा था।
हालाँकि बाद में जब मैं धीरे-धीरे बड़ा हो रहा था तो किसी का कहा एक अन्य वाक्य भी कानों में पड़ा था, "वे विधर्मी लोग हैं.." हाँ, यहाँ पर इसका मतलब पूँछने की आवश्यकता नहीं पड़ी क्योंकि जिन लोगों के लिए इस वाक्य का प्रयोग किया गया था उससे "विधर्म" का एक दूसरा ही अर्थ मेरे सामने आया, मतलब वे "हिन्दू" के इतर हैं। इस प्रकार इस शब्द के दो अर्थ मेरे सामने आए, पहला यह कि "कोई गलत कार्य जिसे नहीं करना चाहिए" और दूसरा, "यदि मैं हिन्दू हूँ तो मेरे लिए दूसरे धर्मावलंबी"। लेकिन इस दूसरे अर्थ में मैं भी दूसरे धर्मावलंबियों की दृष्टि में "विधर्मी" हुआ। "विधर्मी" शब्द के इस दूसरे अर्थ से मैं विचलित हो गया था और इस दूसरे अर्थ को मैंने ग्रहण ही नहीं किया। फलतः दूसरे अर्थ के विनाशकारी प्रभाव से मैं बचा रहा और दादाजी द्वारा बताए "कतल" यानी "गलत काम" से ही "विधर्म" शब्द का मतलब निकालता रहा।
इधर, दादाजी की उंगली पकड़ कर प्रयाग के माघमेले में घूमते हुए मेरा कुछ और शब्दों से तब परिचय हुआ था जब उन्होंने मुझे बताया था कि "यहाँ प्रवचन हो रहा है" या "कथा कह रहे हैं" या "प्रवचन उपदेश होते हैं" और "उपदेश करणीय-अकरणीय कामों के बारे में चर्चा है"। फिर कभी-कभी दादाजी मुझे लेकर "प्रवचन" या "कथा" के पण्डालों में बैठ जाया करते तो यहाँ पर सुनी बातों का मतलब "अच्छे काम करना चाहिए" या "जो अच्छा काम नहीं करता" वह दादाजी के कथनानुसार "वही आदमी विधर्मी हो सकता है" से निकालता। यहाँ भी मेरे जेहन में इसी बात की पैठ बनी कि अच्छे काम ही धार्मिक-काम होते हैं।
आज इन बातों या शब्दों की मुझे क्यों याद आई? वह इसलिए कि इधर आकर कुछ वर्षों से "काफिर" और "जिहाद" जैसे शब्द भी कानों में गूँजने लगे हैं। मेरा मन बरबस ही ऐसे ही कुछ शब्दों की आपस में तुलना करने बैठ गया जैसे, "विधर्मी और कफिर" तथा "प्रवचन-जिहाद" या "उपदेश-जिहाद" या "कथा-जिहाद" आदि की तुलना। यहीं पर मैं "काफिर" और "जिहाद" का भी मतलब समझने की कोशिश कर रहा हूँ। मेरे दादाजी के जमाने का मेरी अपनी जाति के उस परिवार को "विधर्मी" इसलिए कहा गया क्योंकि वह परिवार "कतल" जैसे गलत काम करने का आरोपी था और माघ-मेले में सुने "प्रवचन" का उद्देश्य ऐसे ही गलत कामों से बचने के लिए होते थे। लेकिन क्या "काफिर" और "जिहाद" से भी यही अर्थ निकलते हैं? या फिर ऐसे शब्दों के क्या परिणाम होते हैं? इस पर भी हमें सोचना चाहिए।
हाँ...! मैंने तो बचपन में ही "विधर्मी" शब्द के "दूसरे धर्मावलंबी" वाले अर्थ को ग्रहण नहीं किया था क्योंकि दादाजी जी का दिया अर्थ ही मेरे लिए मौंजू था। तो भाई! मैं यहाँ यही कहना चाहता था कि जिन शब्दों या उसके जिन अर्थों से समाज को या सामाजिक ताने-बाने को नुकसान पहुँचे ऐसे शब्दों या उसके ऐसे अर्थ को शब्दकोश से ही निकाल देने चाहिए। ऐसे शब्दों वाले शब्दकोश हमारे धर्मग्रंथ नहीं हो सकते। सोचिए......
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