संयोग से आज महाशिवरात्रि के दिन पृथ्वी का भ्रमण कर नारद जी स्वर्गलोक में भगवान् विष्णु से मिलने पहुँचे थे...मन में उठते कुछ अनसुलझे प्रश्नों से वे बेचैन थे..
“भगवन् ! आप वामपंथी हैं या दक्षिणपंथी? विष्णु से नारद ने यही प्रश्न किया था| नारद के इस प्रश्न से भगवान् विष्णु अचकचा उठे और उनकी ओर देखते हुए बोले-
“अरे नारद आप स्वर्गलोक में हो..! फिर भी यह प्रश्न..?”
“नहीं प्रभु मेरे जिज्ञासु मन को शांत करें..मैं जब से पृथ्वीलोक से वापस आया हूँ..इस प्रश्न ने मेरे दिमाग का मट्ठा कर दिया है..अब आप ही मेरा उलझन दूर कर सकते हैं..|” माथे पर परेशानी का भाव लिए नारद जी ने कहा|
इधर भगवान् विष्णु नारद के इस अनापेक्षित से प्रश्न से, यह सोचकर हैरान थे कि एक तो नारद के मुँह से आज “नारायण-नारायण” भी नहीं सुनाई दिया, दूसरे कहीं नारद जी उनकी भक्ति को छोड़ वामपंथ-दक्षिणपंथ जैसे सांसारिक प्रश्नों में ही न उलझ जाएं..! फिर भक्ति का प्रचार-प्रसार कौन करेगा..? हाँ अपनी भक्ति किसे अच्छी नहीं लगती...सो भगवान् विष्णु ने धीर-गंभीर वाणी में उनसे कहा-
“अरे नारद जी ! देवलोक के लिए यह प्रश्न प्रासंगिक नहीं है..आप कहाँ का बखेड़ा यहाँ ला रहे हैं”
“नहीं प्रभु यह प्रश्न देवलोक के लिए, आप के लिए और सभी देवताओं के लिए प्रासंगिक है..!” नारद के आत्मविश्वास से लबरेज इस वाक्य को सुन नारायण ने नारद के प्रश्न के प्रति थोड़ी संजीदगी बरतते हुए पूँछा-
“अच्छा..! ऐसे प्रश्न की प्रेरणा आप में कैसे जागृत हुई?”
“हे प्रभु..! भोले बाबा और उनके भक्तों को देखकर ही मेरे मन यह प्रश्न आया, भक्तों के प्रति वर्ताव में मुझे आप त्रिदेव भी अप्रत्यक्ष रूप से आज के इस मौंजू प्रश्न में बंटे दिखाई दे रहे हैं, इसीलिए आपसे यह प्रश्न पूँछना पड़ा” -नारद उवाच|
“तो नारद ! कैलाशपति शंकर जी से ही यह प्रश्न करते..” विष्णु ने थोड़ा मुस्कुराते हुए कहा|
“हे परम आदरणीय प्रभु..! भोले बाबा से ऐसे प्रश्न करने की आवश्यकता ही नहीं..! वे तो असली वामपंथ के पुरोधा हैं। अहा..! राख भभूत लपेटे साँप, विच्छू धारण किए एकदम आम-आदमी जैसे और ऐसे ही लोगों से घिरे हुए..वही कैलाशपति शंकर..आम आदमी के भगवान ! उन्हें देख कोई भी वामपंथी ही नहीं बल्कि वामपंथ का पुरोधा भी मान लेगा, और यही नहीं प्रभु! आज मैंने धरती पर भी महाशिवरात्रि के पर्व पर वैसे ही जटाजूट धारी भभूत लपेटे हुए शिव-रूप धारण कर घोड़े पर सवार मनुष्य और उस शिवबारात में अब तक आपकी कृपा से वंचित मनुष्यों को बाराती बने देखा जहाँ उन सबका उत्साह देखते ही बनता था!” जैसे नारद जी ने भगवान् शंकर की भक्ति में लीन होकर कहा हो।
“लेकिन नारद ! इस नश्वर से सांसारिक प्रश्न को हम देवों पर तो न लागू करो..!” नारद के अन्दर उपजते वामपंथी रुझान से अप्रभावित विष्णु ने कहा|
“नहीं प्रभु..! अब आप त्रिदेवों की इस विषय पर स्पष्ट स्थिति मैं जानना चाहता हूँ..हाँ,भोलेनाथ से तो पूँछने की आवश्यकता ही नहीं उन्हें समझना बहुत आसान है..! बस सीधे आपके पास चला आया हूँ |”
“अरे ! पहले इस विषय पर ब्रह्मा की भी तो राय ले लेते...फिर मेरे पास आते..!” विष्णु की इस बात पर नारद थोड़ा उत्तेजित हो कर बोले-
“देखिए परमेश्वर! जैसी रचना वैसा रचनाकार..!! उनकी पूरी रचना में ही हमें दक्षिणपंथ दिखाई पड़ता है...पृथ्वीलोक पर आते-जाते मुझे इसका स्पष्ट प्रमाण मिल गया है...”
“नारद ! यह कौन सी पहेली बुझा रहे हो..?” –विष्णु
“यह पहेली नहीं है प्रभु..देखी कह रहे हैं..! आखिर..वहीँ ब्रह्मा जी ने पृथ्वी पर जीवन रच दिया..उसे हरा-भरा कर दिया...! लेकिन..मंगल..बुध..समेत अन्य ग्रहों की स्थिति क्या है..? यही नहीं..चन्द्रमा तो पृथ्वी के पास ही था, उसको भी ब्रह्मा जी ने उजाड़ बना दिया है..! आखिर अपनी ही रचना में ऐसा भेदभाव क्यों..? यह दक्षिणपंथ नहीं तो और क्या है..? ब्रह्माजी के मन में जो था वैसा ही उन्होंने बना दिया..! एक को सजाओ-सँवारो और दूसरे को उजाड़ बनाए रखो..!! यह कहाँ का दैवीय सामाजिक न्याय है..? हाँ भगवन! मैं तो कहता हूँ..सृष्टि रचने का काम और किसी को सौंपिए..नहीं तो सब गुड़गोबर हो जाएगा..|” नारद के इस तल्खी भरे स्वर को सुन विष्णु समझ चुके थे कि नारद पर अभी पृथ्वीलोक का ही भूत छाया है, वह मौन ही रहे|
“नहीं भगवन्, आप मौन मत हों..कृपया मेरे प्रश्न का उत्तर दें कि आप वामपंथी हैं या दक्षिणपंथी..? वैसे प्रभु क्षमा करे मुझे आपका रुझान दक्षिणपंथ की ओर ही दिखाई देता है, नहीं तो ब्रह्मा जी के इस अन्यायपूर्ण कार्य में आप अवश्य हस्तक्षेप करते..?” नारद ने अपनी जिज्ञासा और तल्खी को पुनः विष्णु से प्रकट किया..|
इधर भगवान् विष्णु नारद से अपनी बातचीत की दिशा भी नहीं मोड़ पा रहे थे, और यह सोचते हुए “देवी लक्ष्मी भी न जाने कहाँ भ्रमण पर निकल गई हैं...? लक्ष्मी भी तो अक्सर देवताओं के ही यहाँ जाती हैं..सही में नारद के प्रश्न का उत्तर देना कठिन है!!” भगवान विष्णु के माथे पर बल पड़ गया और नारद के इस प्रश्न में उलझ अपना सिर खुजला रहे थे..! उनके कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि नारद के इस प्रश्न का क्या उत्तर दें, फिर अपने मुकुट को सीधा करते हुए (सिर खुजलाने से जो टेढ़ा हो गया था) नारद से अनमने ढंग से पूँछा-
“अच्छा कैलाशपति शंकर की सवारी क्या है..”
“नंदी बैल जी..!” – नारद
“लेकिन मनुष्यों ने तो शिवबारात वाले जुलूस में उन्हें घोड़े पर बैठा दिया था.., मैं कहता हूँ कि मनुष्यों के चक्कर में न पड़िए, ये कुछ का कुछ बना देते हैं!” विष्णु ने मुस्कुराते हुए कहा |
विष्णु से अपने अनुत्तरित प्रश्न को लेकर नारद असंतुष्ट थे और विष्णु भी उनके प्रश्नों का उत्तर नहीं देना चाहते थे। भगवान् विष्णु यह सोचकर भी थोड़े परेशान से हुए कि कहीं नारद के इस प्रश्न से देवलोक में भी दक्षिणपंथ-वामपंथ का झगड़ा न शुरू हो जाए...! इसी से चिंतित भगवान विष्णु ने फिर कहा-
“देखो नारद ! जो ‘गोल्डीलॉक जोन’ में होगा वही खुशहाल होगा...”
यहाँ भगवान् विष्णु का आशय किसी के संतुलित अवस्था में होने से था...लेकिन नारद उनके इस कथन से भी संतुष्ट नहीं हुए। तभी नारद को कृष्णावतार के समय का उनका गीतोपदेश, जिसमे भगवान् ने स्वयं अपना विराट स्वरुप वर्णित किया था, उस कथन से निकले इसी अर्थ “भगवान् स्वयं अपने को भी पूर्ण रूप से नहीं जान पाते तो मेरे प्रश्न का क्या उत्तर देंगे...?” को सोचते हुए और मन ही मन आज "नारायण-नारायण" की जगह “ॐ नमः शिवाय...ॐ नमः शिवाय” जपते नारद वहाँ से चल दिए..
महाशिवरात्रि के इस पर्व पर आप सबके जय की मंगलकामना के साथ...!
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