“आओ सेकुलरिज्म-सेक्युलरिज्म खेलें..!”
“ये सेक्युलरिज्म क्या है..?”
“इतने पॉपुलर खेल के बारे में तुम्हें नहीं पता...?
अच्छा...इसका मतलब भेड़िया आया-भेड़िया आया कहानी कभी नहीं पढ़े...!”
“अरे यार..मेरे भाई..! कहानी तो पढ़ा है...”
“लेकिन इसे समझ नहीं पाए...तभी इस खेल को भी नहीं समझ पा
रहे हो..!”
“अच्छा भई..! अब तुम्हीं समझाओ, इस खेल को लगे हाथ हम भी खेल लेंगे..!”
“हाँ...! उसी कहानी की तरह ‘सेक्युलरिज्म-सेक्युलरिज्म’ कह
कर यह खेल खेला जाता है...मानो कोई बड़ी आफत आनेवाली हो या आ गयी हो..!”
“देखो पहेली मत बुझाओ..खेल की विधि बताओ..!”
“यह तो जानते हो कि स्वतंत्रता हमारा मौलिक अधिकार भी है..और
इस स्वतंत्रता की सार्थकता हमारे खेलने की स्वतंत्रता पर निर्भर है..”
“मतलब...? मैं समझा नहीं...”
“मतलब यह कि यदि स्वतंत्रता हो तो हम सभी तरह के खेल खेल
सकते है...!”
“मतलब इस खेल के खिलाड़ियों के लिए स्वतंत्रता एक अनिवार्य
तत्व है..”
“सही समझे..! आगे और ध्यान से सुनो पूरा खेल समझ में आ
जाएगा...”
“नहीं...नहीं..एक बात और समझाओ..मान लो इस खेल के खिलाडियों
को स्वतंत्रता न हो तो...?”
“तब तो खेलई नहीं होगा..!”
“ऐसा क्यों..?”
“क्योंकि तब सेक्युलरिज्म-सेक्युलरिज्म कहने वाले भी नहीं रहेंगे..!
और न ही खिलाड़ी अलग-अलग रंगों की गोटी इस्तेमाल कर पाएंगे जो इस खेल का प्रमुख
तत्व है..”
“अच्छा अब खेल समझाओ...”
“कोई जमीन तैयार करो..फिर तमाम गोटियाँ ले लो...हाँ साथ में
कुछ अलग-अलग रंग भी लेना
जरुरी होगा...”
“हाँ..ये चीजें हमने ले ली..आगे..”
“अब गोटियों को अपने हिसाब से अलग-अलग रंगों में रंग लिया
जाए..”
“क्या प्रत्येक रंग के लिए गोटियों की संख्या बराबर-बराबर
होनी चाहिए..?”
“बराबर-बराबर तो कर सकते हो..लेकिन खेल का मज़ा तभी आएगा जब एकाध
रंग की गोटियों की संख्या अधिक या किसी रंग की कम हो..अलग-अलग रंगों वाली गोटियों
की संख्या भी इस खेल का तत्व है...! क्योंकि इस खेल का मूल तत्व भय है जो गोटियों
की एक-दूसरे से कम या ज्यादा संख्या पर विशेष रूप से निर्भर होती है...”
“ओ.के.-ओ.के...अब आगे..”
“अब तैयार जमीन पर गोटियों को बिछा दिया जाये..”
“नहीं..ये तो बताया ही नहीं कि गोटियों को मैदान में किस
प्रकार से बिछाया जाए..मेरा मतलब गोटियों को मिक्स बिछाएं या उनके रगों के समूह के
आधार पर..!”
“हाँ इस पर ध्यान देना आवश्यक है..तैयार जमीन पर गोटियाँ आप
दोनों तरीके से मसलन मिक्स या रंगों के समूह में, दोनों विधि से बिछा सकते
हो..लेकिन दोनों तरीकों के मजे अलग-अलग हैं..मान लो विभिन्न रंगों की गोटियों को
मिक्स तरीके से बिछाते हैं..तो खेल की अवधि थोड़ी लम्बी होगी..और यदि रंगों के समूह
के आधार पर इन्हें बिछाते हैं तो खेलने की अवधि छोटी हो सकती है..क्योंकि तब खेल
आधा ही बचता है...”
“वो कैसे...”
“वो ऐसे कि जब भिन्न रंगों की गोटियों को आपस में मिक्स
करके बिछाओगे तो उन्हें अपने-अपने रंगों वाली गोटियों के समूह में लाना होगा और
इसके लिए खेल के बाहर के लोगों को भी इस तरह प्रशिक्षित कर खेल का हिस्सा बनाना
पड़ेगा कि वो हूटिंग-शूटिंग कर सकें...! इसी प्रक्रिया में गोटियाँ अपने-अपने रंगों
वाले समूह की गोटियों में शामिल होने लगती है..यह तब-तक चलता रहे जब-तक कि पूरी
तरह गोटियाँ अपने-अपने रंगों के समूहों में न हो जाएं...ध्यान रहे यह गोटियों में
आपसी भय या डर पैदा करने का खेल है...और इसे बनाए रखना होगा...”
“अच्छा..! यह बताओ यदि गोटियाँ अपने-अपने रंगों के समूह में
हों तो...”
“तो...एक दूसरे को उनके रंगों का भय दिखाते रहो...हाँ अब
कुछ ‘सेक्युलरिज्म-सेक्युलरिज्म’ कहने वाले खिलाड़ियों को भी इसमें शामिल करना
पड़ेगा...! और...जब तक इस तरह का समूह बना रहेगा..तब तक खेल का आनंद चलता रहेगा...हाँ..भय
की मात्रा इस तरह निर्धारित करो कि गोटियाँ आपस में मिक्स न होने पाएं...”
“ये ‘सेक्युलरिज्म-सेक्युलरिज्म’ कहने वाले कैसे होते
हैं..और इसका मतलब क्या है...”
“इसका मतलब यह है ये संख्या को भय के रूप में बदलने में
माहिर होते हैं..और...यानी..कम संख्या वाले समूह को अधिक संख्या वाले समूह का भय दिखाओ...और..बीच-बीच
में उसके अस्तित्व पर संकट दिखाते जाओ... यही भेड़िया है...वैसे यह भेड़िया आता कभी
नहीं...! यही प्रक्रिया एक प्रकार की सेक्युलरिज्म है..”
“तो सेक्युलरिज्म का मतलब...”
“अरे मेरे भाई...अब जिन रगों के समूहों में गोटियों की
संख्या थोड़ी कम हो उन्हें अधिक संख्या वाले गोटियों के समूह का भय दिखाते रहो..यही
तो सेक्युलर-सेक्युलर का खेल है..और ये सेक्युलर-सेक्युलर कहने वाले गोटियों और
खिलाड़ियों पर बहुत बारीक नजर रखते हैं..ये एक प्रकार का माइंड-गेम खेलते हैं..”
“ये माइंड-गेम खेलने वाले क्या रेफरी की भूमिका में होते
हैं..जो गोटियों और खिलाड़ियों पर नजर रखते हैं..?”
“ये माइंड-गेम खेलने वाले कुछ-कुछ रेफरी जैसा आचरण करते
दिखाई देना पसंद करते हैं..लेकिन असल में होते हैं ये भी इस खेल के खिलाड़ी ही...!
इनका काम गोटियों के बीच खासकर कम रंगों की संख्या वाले गोटियों में इनसिक्योरिटी
का भाव जगाए रखना जिससे ये खेल और खिलाड़ियों के बीच भी बने रहें...”
“यार..तुम तो हमको शतरंज की जैसे चालें बताने लगे...गोटियों
को मिक्स ही रहने दो तो क्या फर्क पड़ता है...क्यों इन्हें हाथी, घोड़ा, शेर, बाघ
में बदल रहे हो..?”
“यही फर्क पड़ेगा कि तब सारा खेल ख़त्म...!”
“अच्छा एक चीज अन्त में और बता दो..यदि हम अलग-अलग रंगों के
समूहों की गोटियों को आपस में मिक्स करने का खेल खेलें तो...?”
“तो..तो..ओ..ओ.. हाँ, तब भेड़िये का डर नहीं रहेगा और खेल का
मजा भी ख़त्म...!”
“लेकिन... यह मुआ आपका खेल है बड़े दिमागदारों का खेल...!”
“तभी तो इतना दिमाग लगाने के बाद भी इस खेल को नहीं समझा पा
रहा हूँ..”
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