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सोमवार, 17 सितंबर 2012

सहज प्रेम

             एक दिन मैंने देखा...मेरे घर के आगे वाले कमरे में जिसकी खिड़कियाँ अक्सर खुली रहती हैं...उसके रास्ते से...गौरैया का एक जोड़ा आकर कमरे में इधर उधर चक्कर काटने लगा...जैसे कुछ तलाश सा रहा हो... मैं कई दिनों तक जोड़े को कमरे में इसी तरह चक्कर काटते हुए देखता रहा...कभी कभी मुझे ऐसा लगता जैसे गौरैया का वह जोड़ा कुछ खोज सा रहा हो...एक दिन सुबह ही मैंने देखा...आलमारी में फ्रेम में रखी तस्वीर के पीछे की खाली जगह पर पक्षियों का वह जोड़ा बार बार आ जा रहा था...उस स्थान पर वह जोड़ा बारी-बारी से तिनके ला कर रख रहा था...कुछ दिनों तक चिड़ियों की यह क्रिया चलती रही...कुछ दिनों बाद में मैने देखा... एक खूबसूरत घोसला आलमारी में तस्वीर के पीछे बन कर तैयार हो चुका था...एक दिन एक चिड़िया उस घोसले में बैठी हुई दिखाई दी...मैंने देखा...वह इसी तरह से कई दिनों तक वहाँ बैठी रही...फिर मुझे वहाँ दो अंडे दिखे...इसके बाद वह चिड़िया वहाँ अकसर मुझे बैठी हुई दिखाई देती रही...
               कुछ दिनों बाद मैंने उस घोसले वाले स्थान पर पुनः ध्यान दिया... वहां नन्हें - नन्हें दो छोटे चिड़ियों के बच्चे नज़र आये...मैं घोसले के एकदम नज़दीक जाकर...उन चिड़ियों के बच्चों को देखने लगा...वे अपनी नन्ही-नन्हीं चोचों को मेरी ओर खोलकर चीं-चीं करने लगे...इतने में मैंने देखा...गौरैया कमरे में आकर चक्कर काटने लगी...मुझे अहसास हुआ...वह बच्चों को कुछ चुगाना चाहती थी...यह सोचकर मैं वहाँ से चला गया...मैंने ध्यान दिया...कुछ दिनों तक चिड़िया बच्चों को कभी-कभार आ कर ही चुगाती थी...और अकसर उनके पास बैठी रहती...इस तरह कुछ दिन बीत जाने पर...एक दिन मैंने देखा...चिड़िया बार-बार घोसले की तरफ आ-जा रही थी...बच्चों को चुगाती जाती...यही नहीं जोड़े के दोनों पक्षी इस काम में बराबर लगे हुए थे ...और लगातार बारी-बारी से दोनों बच्चों को बाहर मैदान से कुछ ला-ला कर चुगाते जा रहे थे...मैंने विशेष रूप से इस बात पर गौर किया कि जब चिड़िया के बच्चे बहुत छोटे एवं नवजात थे तो उन्हें भोजन की कम आवश्यकता थी और चिड़िया कभी कभार ही बच्चों को चुगाती थी ,लेकिन जैसे-जैसे बड़े होते गए वैसे-वैसे बच्चों को चुगाने की आवृत्ति बढ़ती गई...


              चिड़ियों की अपने बच्चों के प्रति प्रेम एवं सजगता आश्चर्य करने वाली थी...निःस्वार्थ भाव से चिड़ियों द्वारा अपने बच्चों की देखभाल करना प्रकृति के सहज प्रेम की अभिव्यक्ति थी....मैं मनुष्यों में इस सहज प्रवृत्ति को जैसे तलाशने लगा...!