आजकल मित्र महोदय का
व्यवहार कुछ-कुछ बदला सा है...कर्मकांड जैसी धार्मिकता की झलक उनमें दिखाई देने
लगी है...कभी-कभी गुरु और ज्ञान की बातें भी करने लगते हैं...बातों ही बातों में
उनके मुख से निकल पड़ता है कि गुरु ज्ञान देने के साथ ही साथ लोगों को दुःख और
संकटों से भी मुक्ति देते हैं... खैर...ज्ञान देने की उनकी बात से तो मैं सहमत
था...लेकिन गुरू दुःख और सकटों को दूर करता है या कर सकता है मेरे गले के नीचे
नहीं उतरता है...हाल ही में वे घर से
लौट कर आए थे...मैं उनसे मिलने पहुँच गया...बातों ही बातों में मेरी निगाह उनके
दाहिने हाथ की कलाई में बंधी सतरंगे धागों पर पड़ी... यह क्या...उन्होंने नीले रंग
का पत्थर जड़ित अंगूठी भी पहन रखी थी...! फिर मेरी दृष्टि आलमारी में रखी सफेद
दाढ़ियों वाले बाबा जैसे लगने वाले किसी व्यक्ति की तस्वीर पर पड़ी...मैंने छूटते ही
पूँछा कि यार तुम कबसे एक तार्किक से अतार्किक बन गए...! मतलब पूँछने पर मैंने इन
चीजों की ओर इशारा करते हुए उनके अन्दर आए इस परिवर्तन का कारण जानना चाहा...
मित्र महोदय के कथनानुसार...विगत दिनों जब
वे गाँव गए थे तो उनके घर यही बाबा जी आ गए थे...उनके भूत और वर्तमान के बारे में
कुछ ऐसी बातें बतायी कि वे आश्चर्य में पड़ गए कि बाबा जी के पास कौन सी दिव्य
दृष्टि है…! इतना कुछ उनके बारे में जान गए..! फिर भविष्य में उनके
परिवार पर आने वाले कष्टों की भविष्यवाणी भी की..उनके चिंतित होने पर उन्होंने कुछ
धार्मिक अनुष्ठान करवाए तथा यही नीले रंग के रत्न जड़ित अंगूठी और हाथ में कलेवा
धारण करने के लिए कहा और अपना यह फोटो देते हुए कहा कि दिन में एक बार इस फोटो की
ओर जरूर निहार लिया करें क्योंकि बाबा जी उनके आगामी कष्टों के लिए एक जाप कर रहे
होंगे..और फोटो देखने से बाबा जी की पराशक्ति उनमें परावर्तित होकर उनका कल्याण
करेगी...फिर उन्होंने मुझसे कहा कि यार वाकई बाबा जी बहुत पहुँचे हुए लगे....
मैंने कुछ सोचते
हुए अनुष्ठान के बारे में पूँछा तो उन्होंने बताया कि बाबा जी स्वयं अनुष्ठान नहीं
करना चाहते थे..उन्होंने यह कहते हुए विधि और सामग्री बता दी थी कि किसी पुरोहित
को बुलाकर अनुष्ठान करा लेना...लेकिन बाबा जी की बताई सामग्री प्राप्त करने की
दुरुहता को सोचकर उन्होंने बाबा जी से स्वयं अनुष्ठान कार्य संपन्न कराने का
अनुरोध किया था तब बाबा जी सहर्ष तैयार हो गए थे.. फिर मित्र ने आगे बताया कि
दो-चार हजार तो खर्च होना ही था...लेकिन उन्हें इस खर्च की परवाह नहीं...बाबा से
अनुष्ठान करवा दिए|
मित्र महोदय की ‘इन्नोसेंट टाइप’ बातें सुन
मेरे चेहरे पर मुस्कराहट तिर आई..इसे देख वे मेरे मुस्कुराहट का कारण पूँछने लगे
तो मैं अन्यथा न लेने की शर्त पर मुस्कुराहट का कारण बताने लगा जो इस प्रकार है...
मैंने मित्र महोदय से कहानी कहने के
अंदाज में बताना शुरू किया...देखो यार मैं भी हाल ही में घर यानी गाँव गया था वहाँ
मेरे चचा जी मिल गए उन्होंने एक घटना सुनायी जो उनके किसी रिश्तेदार के साथ घटी थी..बात
यह थी कि चचा के रिश्तेदार का नौजवान लड़का बाल-बाल किसी तरह जेल जाने से बचा था...!
कारण... ऐसे ही आपके बाबा जी की तरह एक बाबा थे...! मेरे इतना कहने पर जब मित्र
महोदय ने मुझे घूरना शुरू किया तो अपने शर्त की याद दिलाते हुए उन्हें पूरी कहानी
सुनने का अनुरोध किया...मैंने आगे कहना प्रारंभ किया..ऐसा था कि उस नौजवान लड़के का
एक ग्रुप था..जो दूर इलाकों का भ्रमण करते थे और किसी को भनक न लगे किसी तरह उस
क्षेत्र के परिवारों के मुखिया और उसके सदस्यों की स्थिति पता कर लेते थे तथा उसे
एक कागज में नोट कर अपने गैग के सरगना को दे दिया करते थे जो बाबा वेशधारी होता
था... बाद में वही बाबा उन परिवारों में जाता और उनके भूत तथा वर्तमान की बात कर उनमें
भविष्य का डर पैदा करता था...लोग उसके प्रभाव में आकर उससे तरह-तरह के अनुष्ठान
करवाते और यदा-कदा दक्षिणा भी दे दिया करते थे..फिर वह बाबा अपने गैंग के सदस्यों
में भी इस कमाई का हिस्सा बांटा करता था...अरे वह तो उस दिन की घटना थी जब उसकी
पोल खुल गयी थी...!
हाँ सवेरे ही बाबा उस परिवार में पहुंचा
था.... “जय हो..जय हो..अरे भाई श्यामलाल का घर यही है...” बाबा की बात सुन घर वाले
अचकचा गए कि इस बाबा को कैसे नाम का पता चला...कारण पूँछने पर बाबा ने कहा कि यह
प्रभु की माया है बच्चा लोग...! तुम नहीं समझ पाओगे...! फिर श्यामलाल की घरवाली..घर
से यह कहते हुए निकली कि बाबा जी वो घर पर नहीं हैं तो बाबा जी श्यामलाल की घरवाली
पर अपना प्रभाव ज़माने के अंदाज में यह कहते हुए बोले कि देवी कोई बात नहीं..आप बड़ी
भाग्यशाली हैं, आपके पति इतने साल पहले बीमार हुए लेकिन प्रभु की कृपा से ठीक हो
गए...अरे हाँ आपका बड़ा बच्चा बहुत नाम कमाएगा उसे तो बहुत बड़ा आफिसर होना
चाहिए...बोलो बेटी सत्य है या नहीं..श्यामलाल की पत्नी ने जैसे ही स्वीकारोक्ति
में सिर हिलाया तो बाबा आगे बोल पड़े...लेकिन पुत्री तुम्हारा दूसरा बेटा थोड़ा कष्ट
पायेगा उसका ग्रह उसे चैन से जीने नहीं देगा...एक कष्ट निवारण अनुष्ठान करना
होगा...!
मित्र की निगाहें मेरे ऊपर जमीं हुई
थी...आगे मैं अपनी बात पूरी करने लगा.. इसके बाद श्यामलाल की पत्नी बाबा जी से
प्रभावित होकर अनुष्ठान के बारे में पूँछ-ताछ करने लगी.. मैंने मित्र की देखते हुए
कहा कि उस बाबा ने पूजा के लिए ऐसी सामग्री लिखवाई कि जब उस सामग्री के मिलने की
कठिनाई बताई गई तो वह स्वयं सामग्री उपलब्ध कराकर अनुष्ठान पूर्ण करने पर सहमत हो
गया...और जानते हो वह बाबा पूजा की ऐसी सामग्री बताता जो लोगों को और कहीं न मिले
जिससे लोग विवश हो उसी से अनुष्ठान कराएं... फिर क्या हुआ..ठीक उसी समय श्यामलाल
की एक मरकही गाय खूँटे से तुड़ा कर बड़ी तेजी से बाबा की ओर भागी और बाबा को लगा की
कहीं वह इस गाय की चपेट में न आ जाए और इसी बचने में वे हड़बड़ा कर गिर पड़े...उनके
हाथ में लिया कमंडल छूट गया..उसी कमंडल में रखी कुछ कागज की पर्चियां छिटक कर जमीन
पर आ गिरी और श्यामलाल के एक पढ़े लिखे भतीजे के हाथ लग गई..उनके भतीजे ने पढ़ा तो
उसमें लिखा था... “श्यामलाल..दो लड़के बड़ा लड़का सरकारी विभाग में..छोटा कुछ-कुछ
अवारागर्दी करता है..श्यामलाल एक बार वीमार पड़े थे मरते-मरते बचे थे..आदि-आदि..” इसी
तरह से अन्य पर्चियों में भी गाँव के अन्य लोगों के बारे में जानकारी थी...फिर
क्या था श्यामलाल के घरवालों को समझते देर न लगी तब-तक गाँव के भी दो-चार लोग आ गए
थे...सबको माजरा समझते देर न लगी...और बाबा जी की जम कर धुनाई शुरू हो गयी..तब
बाबा जी ने अपने गैंग के बारे में बताया..उनके गैंग में कई लोग थे उन्हीं में चचा
के रिश्तेदार का वह नौजवान लड़का भी था जो परिवारों की रेकी करने में शामिल होता
था...और बाबा अपनी कमाई में सबको हिस्सा दिया करता था... चचा ने बताया कि खैर किसी
तरह रिश्तेदार ने भविष्य में ऐसी गलती न होने देने की शर्त पर अपने लड़के को पुलिस
के शिकंजे से बचाया था....!
मैंने
अपनी बात समाप्त कर दी थी और मित्र की प्रतिक्रिया का इन्तजार था...आचानक मित्र
महोदय के मुख से निकला.. “धत्त तेरे की..!”
और मेरी कहानी समाप्त थी...!
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