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रविवार, 3 जून 2018

फिटनेस का स्लोगन ; सुबहचर्या

        बहुत दिनों बाद आज अपने उसी पुराने टाइम पर टहलने निकला था। यानि लगभग पौने पाँच बजे सुबह..वैसे सप्ताह में औसतन तीन दिन सुबह का टहलना हो जाता है, लेकिन अपने आवास के लान में ही। क्योंकि इधर स्टेडियम जाना अब कम हो गया है। बहुत दिनों बाद वही पुराना ग्रुप टहलते हुए मिला। उनके आपस की चर्चा में एक व्यक्ति सत्ताधारी के पक्ष में बोल रहा था, तो दूसरा विरोध में। उनकी बातों को सुनते हुए मैं आगे बढ़ गया था। हाँ, स्टेडियम के मैदान में, खुले आकाश में चाँद बहुत सुन्दर दिखायी दिया और कुछ क्षणों तक अपलक मैं उसे निहारता रह गया था। खैर..

            स्टेडियम में टहलने वालों की संख्या से मैंने अनुमान लगाया कि धीरे-धीरे अपने फिटनेस के प्रति लोग सजग हो रहे हैं। वहाँ के कंक्रीट-पथ पर चलते हुए ही ध्यान आया कि आजकल "आप फिट तो इंडिया फिट" टाइप श्लोगन चल रहा है..हाँ, इधर यह नया श्लोगन ईजाद किया गया है..वैसे तो, कहते हैं कि यह देश गाँवों में निवास करने वाले गरीब, मजदूर और किसानों का देश है, तो क्या इनके लिए भी इस श्लोगन का कोई महत्व है..? नहीं है..! सच तो यह है कि फिटनेस का मंत्र उनके लिए है जो देश के संसाधनों पर अवैध कब्जा किए हुए बैठे हैं या कर रहे हैं और वही अपने "फिटनेस" को लेकर सबसे ज्यादा चिन्तित भी होते हैं...आखिर क्या इस फिटनेस के मंत्र में उपभोगवादी मानसिकता छिपी दिखायी नहीं देती..? यही सोचते-सोचते मैंने स्टेडियम का एक चक्कर लगा लिया था।

             मैंने देखा.. मेरे सामने एक व्यक्ति अपने हाथों को झटकता हुआ सा तेज गति में चला जा रहा था...वह अपने फिटनेस को लेकर काफी सजग दिखायी दिया...मेरी भी सजगता बढ़ी और मैं भी उसके पीछे-पीछे उसके अनुसरण की कोशिश करने लगा था...लेकिन मेरा मन कुछ और ही सोच रहा था, मैं उस श्लोगन का श्रोत ढूँढ़ने लगा...निश्चित ही ऐसे नारे आम आदमी की ओर से नहीं उछाले जाते। न जाने क्यों मुझे मोहन राकेश के नाटक "अषाढ़ का एक दिन" में आए दन्तुल और कालिदास के बीच के वार्तालाप का वह प्रसंग ध्यान में आ गया :

         दन्तुल किसी राज्य का सैनिक है, उसके बाण से घायल एक मृगशावक को कालिदास बचाने का प्रयास करता है, और दन्तुल उस घायल मृगशावक को सौंपने के लिए कहता है, अन्यथा दंडित करने की धमकी देता है। लेकिन कालिदास, दन्तुल को उस घायल मृगशावक का अपराधी ठहराते हुए सौंपने से इनकार कर देता है।इसके बाद का वार्तालाप इस प्रकार है -

      "दन्तुल : तो राजपुरुष के अपराध का निर्णय ग्रामवासी करेंगे! ग्रामीण युवक, अपराध और न्याय का शब्दार्थ भी जानते हो! 

     

      कालिदास: शब्द और अर्थ राजपुरुषों की सम्पत्ति है, जानकर आश्चर्य हुआ।" 

      तो वाकई! इसीतरह शायद "फिटनेस" का वह मंत्र भी "राजपुरुषों" की ही देन है और वही इसका अर्थ भी तय करते हैं... इसी के साथ अभी-अभी आसमान में निहारे चमकते चाँद पर एक बार पुनः ध्यान चला गया..इस नाटक में एक जगह मल्लिका कह रही है -

         "एक दोष गुणों में उसी तरह छिप जाता है जैसे चाँद की किरणों में कलंक ; परन्तु दारिद्र्य नहीं छिपता।" 

            बात वही है, यहाँ फिटनेस से ज्यादा महत्वपूर्ण है दारिद्र्य से निपटने की जद्दोजहद..! लेकिन इधर लोगों को व्यर्थ के नारों में उलझाये रखने का चलन बढ़ चला है और अपारदर्शिता के लिए ही पारदर्शिता का खेल खेला जाने लगा हैं। यह अतिशयोक्ति नहीं कि "संविधान" का प्रभाव राजधानियों से आगे बढ़ ही नहीं पाता जबकि सत्ताजनित "राजपुरुषों" का प्रभाव ही सर्वत्र है। हो सकता है, "फिटनेस" की बात इन्हीं पर लागू होती हो..! खैर, दूर-दराज की रियाया टाइप की जनता सदैव से फिट रही है...!! 

           अब तक मैं स्टेडियम का दूसरा चक्कर पूरा कर लिया लेकिन न जाने क्यों सुबह-सुबह मेरा मूड भी खराब हो चुका था। वापस मैं अपने आवास पर पहुँचा, वहाँ लान की हरी-हरी दूब को देखकर "अषाढ़ का एक दिन" नाटक की वह एक पंक्ति मुझे फिर याद आ गई - 

     

        "जीवन एक भावना है! कोमल भावना!  बहुत-बहुत कोमल भावना!!" 

     

          मैं तो समझता हूँ, जो इसे समझता है उसे ही फिटनेस का राज भी पता है। बाकी सब ऐसेइ है... 

       #चलते-चलते 

       फिटनेस का राज हमारी कोमलता में छिपा होता है, और हम जितने असंवेदनशील होंगे उतने ही अनफिट होंगे।

     #सुबहचर्या 

      1.06.18