घसीटू को थाने पर आए हुए दो घंटे से अधिक हो गया है, वह तहरीर ले कर
आया है लेकिन उसकी ‘रिपोरट’ थाने के रजिस्टर पर अभी तक दर्ज नहीं हुई है| इस बीच
थाना के मुंशी को वह दो बार दही-जलेबी खिला चुका है...अब तो उसके जेब में पैसे भी नहीं
बचे..! सौ रूपए का इंतजाम कर वह घर से चला था इसमें से पचास रूपया तो थाने के लिए
तहरीर लिखने वाले ने ही ले लिया|
घसीटू थाने के फर्श
पर ही ऊँकडू-मुकडू बैठा सोच रहा है...“उफरि परै ई दही-जलेबी वाला दुकानदार...! इसको
यहीं थाने के मुहाने पर दूकान खोलै के रहा..” उसे डर है कि कहीं थाना का मुंशी फिर
से दही-जलेबी लाने के लिए न कह दे...! हालाँकि, गलती इसमें कुछ-कुछ घसीटू की भी है
क्योंकि जब पहली बार मुंशी ने उसे जलेबी-दही लाने के लिए कहा तो साथ में यह भी कहा
था, “पैसे लेते जाओ” लेकिन तब घसीटू ने ही पैसे लेने से मना कर दिया था क्योंकि उसे
थाने में ‘रिपोरट’ जो लिखानी थी..! कुछ यही सोचते हुए कि ‘दही-जलेबी खाकर मुंशी जी
खुश हो जायेंगे और रिपोरट लिख लेंगे’ दौड़ कर दही-जलेबी लाया था| लेकिन उसका यह उत्साह
कुछ क्षणों बाद काफूर हो गया जब लगभग डरते हुए मुंशी से रिपोर्ट लिखने के लिए उसने
कहा तो मुंशी ने उससे कहा, “अरे, अभी बैठ..एक तो खूंटे से ठीक से उसे बाँधता नहीं
ऊपर से रिपोर्ट लिखाने चला आया..जैसे बाप का ही थाना हो...अब यही हमन को काम रह
गया है...भो..के..! पहले बड़े साहब को आने दे..|” यह सुन घसीटू सहम गया..! इसके आगे
कुछ पूँछने की उसकी हिम्मत नहीं पड़ी कि ‘बड़े साहब’ कितने देर में आएंगे ? बड़े साहब
माने उस थाने के इंचार्ज|
मुंशी ने दूसरी बार
घसीटू से दही-जलेबी तब मँगवाया था जब एक ‘साहब’ आ गए थे..! उत्सुकता से घसीटू उन
साहब को देख रहा था कि थाने के मुंशी ने उससे कहा था, ‘अरे ये छोटे साहब हैं..! जा
दही-जलेबी ला...” हाँ, मुंशी ने तो इस बार उससे “पैसे तो लेते जाओ” कहा ही नहीं था..!
ये ‘छोटे साहब’ उस थाने के छोटे दारोगा जी थे| घसीटू दूसरी बार भी दही-जलेबी लाकर चुपचाप
वैसे ही ऊँकडू-मुकडू अपने स्थान पर बैठ गया था, लेकिन इस दही-जलेबी के चक्कर में उसके
पास बचा पचास रूपया भी खर्च हो गया और अब स्वयं मुंशी से गाली खाने की बात भूल वह
बैठे-बैठे उस दुकानदार को मन ही मन ‘सराप’ रहा था|
बात यह थी कि घसीटू ने
एक नई भैंस ली थी...! “इसके लिए उसने बहुत भाग-दौड़ की...उसके पास इस भैंस को
खरीदने के लिए पैसे तो थे नहीं..! वह तो ‘निहलवा’ था जो ‘बिलाक’ से मिलि के करजा
वाला फारम भराई दिहे रहा..हाँ सौ-दुई सौ रुपिया त ऊ अपने खर्च के नाम ले लिये रहा,
अऊर..अब त ऊ निहलवा से भी ओकर बिगार हुई गा...! बैंक में निहलवा कहत रहा कि भैंस खरीदे क जरुरत
नाहीं...भैस क अगर कुछ होई जाए त करजा होई...! चाहो त पैसा लई लो...कुछ साहब लोगन
के भी काम हो जाई..!”
लेकिन वह तो घसीटू
ही था...कि..उसकी उनींदी सी आँखों में भी कुछ सपने बन-बिगड़ जाते थे, उसने सोचा
था...! वह भैस लेगा उसकी खूब सेवा करेगा..यह भैस दूध भी खूब देगी और दूध बेंचकर
कुछ कमा लेगा...घर का खर्च निकाल बैंक का करजा भी उतार देगा..! हाँ कुछ यही सोचकर
वह निहलवा के झाँसे में नहीं आया था...लेकिन उसके सपनों पर तो जैसे पानी फिर
गया...! आज सुबह सुबह जब वह सोकर उठा तो उसकी भैंस खूँटे पर नहीं मिली..पगहे के
साथ उसकी भैंस गायब थी..! बड़े शौक से इस भैंस के लिए घंटियों वाला पगहा भी बाजार
से खरीद कर लाया था...गाँव में जहाँ-तहाँ भैंस खोजते हुए यही सब बाते वह गाँव वालों
को बताता भी जा रहा था...रूवाँसा हो जैसे प्रलाप करने लगा हो..! अंत में इस
खोज-खोजाई से वह थक-हार गया था...तब किसी गाँववासी ने उसे थाने पर ‘रिपोरट’ लिखाने
का सलाह दिया..इसीलिए वह आज थाने आया था...!
छोटे दारोगा उसका लाया दही-जलेबी
खा चुके थे..और अब वे घसीटू को लगातार देखे जा रहे थे, फिर उन्होंने मुंशी से
घसीटू की ओर इशारा करते हुए पूँछा, “ये यहाँ क्यों बैठा है..?” “इसकी भैंस गायब हो
गयी है...रिपोर्ट लिखाने आया है..” मुंशी के इस जवाब के बाद छोटे दारोगा घसीटू को
घूरते हुए बोले, “क्यों रे..! अब तुम लोगों की हगनी-मुतनी उठाने के लिए ही हम लोग
रह गए हैं क्या..? कभी इन सा...लों की मेहरिया गायब होती है तो कभी लड़की और अब इसकी
भैस गायब हो गई...जब ठीक से इनकी रखवाली नहीं कर सकता तो इन्हें रखता ही क्यों है...?”
घसीटू सिर झुकाए दीवाल
की टेक लिए वैसे ही फर्श पर बैठा सुनता रहा, कुछ बोला नहीं..बोलता भी क्या...! ऐसी
बातें सुनना और अपमानित होंना तो जैसे उसकी आदत हो चुकी है...| उसका बेटा गाँव में
यही सब तो नहीं सुन पाया था...लोगों की गाली-गलौज..! और इस तरह आए दिन गाँव के बड़े
और दबंग लोगों द्वारा आत्म-सम्मान पर चोट पहुँचाया जाना वह बर्दाश्त नहीं कर पाया...अंत
में एक दिन घसीटू से यह कहते हुए, “बापू..! आपकी दी हुई यह गरीबी तो सह
लेंगे...लेकिन ई बड़कन की बेमतलब की धौंस और अपमान नहीं सह सकते...यहाँ मेहनत करो
तबो गाली खाओ...” शहर चला गया था...! सबेरे से ही भूँखे-प्यासे थाने में बैठे घसीटू
के मन में ये ‘पुलिसवालन’ और गाँव के वे ‘दबंगन’ दोनों गड्डमड्ड हो चुके थे..|
ठीक इसी समय छोटे दरोगा के मोबाइल पर कोई
रिंगटोन बजा..मुंशी बोला, “देखिये साहब किसी का फोन है...” “अरे इंचार्ज साहब का
फोन है...!” कहते हुए छोटा दरोगा अपने थानेदार से बात करने लगा, “यस
सर...हाँ..हाँ...नहीं..नहीं..सर..! वह तो बुलडाग था..क्या कहा..जर्मन शेफर्ड..! अरे
नहीं साहब..अच्छा...जी..जी..उसका पिल्ला गायब हुआ है...! अल्टीमेटम...? ठीक सर..यस
सर..हाँ..हाँ..मैं उधर ही जाता..हूँ..” इस वार्तालाप के समाप्त होने के बाद छोटा दरोगा
मुंशी से बोला, ‘क्या कहें..! हमको भी खोजने जाना पड़ेगा..इंचार्ज साहब को
अल्टीमेटम मिल गया है...यदि चौबीस घंटे के अन्दर वह कुत्ते का पिल्ला नहीं मिल
जाता तो अपना बोरिया-बिस्तर बाँध लें...यह ससुरा पिल्ले की चोरी भी हाईप्रोफाइल
मामला बन चुका है ” और कुर्सी से उठ पड़ा..! घसीटू कुछ समझ पाता तब तक ये साहब जा
चुके थे, उधर पता नहीं क्यों थाने का मुंशी घसीटू को देख मुस्कराए जा रहा है..!
मुंशी को अपनी ओर मुस्कुराते हुए देख घसीटू
को वहाँ का माहौल कुछ सहज होता प्रतीत हुआ और वह दो बार मुंशी को दही-जलेबी भी खिला
चुका था, अतः मुंशी से गाली खाने के बाद भी प्रश्न पूँछने की उसमें हिम्मत आ
गयी..! डरते-डरते उसने मुंशी से पूँछा, “साहब का बात है..? छोटे साहब भी चले गए..!
अउर बड़े साहब कित्ते देर में आयेगे..? ऊ..ऊ..साहब..! हमार रिपोरट..लि..ई..खे..के
?” मुंशी की निगाहें कुछ क्षणों तक घसीटू के चेहरे पर स्थिर होती है, फिर उससे
बोला, “तुम्हें कुछ मालुम है..अरे अपने क्षेत्र के ओ....हां..उन्हीं के कुत्ते का
पिल्ला चोरी हो गया है..! इसी हाईप्रोफाइल मामले की जाँच करने बड़े साहब सबेरे से
निकले है ऊँचे से मोनिटरिंग हो रही है..अरे तुम नहीं समझोगे..!!” और अचानक चुप हो
गया..|
मुंशी से बात कर लेने
से घसीटू में कुछ आत्मविश्वास जाग गया..! फिर भी दीवाल की टेक ले फर्श पर बैठे
बैठे ठिठकते हुए उसने मुंशी से कहा, “साहब ऊ तो हाँ..साहब हमार तो भैंसिया...दूध
देती..कुत्ते का पिलउवा की चोरी से बड़ा हाइफ़ोइल है...” पहले तो घसीटू की “हाइफ़ोइल”
वाली बात थाना का वह मुंशी नहीं समझ पाया..लेकिन अगले ही पल हँसते हुए उसने घसीटू
से कहा, “हाँ..हाँ..तुम्हारा भी मामला हाईप्रोफाइल है..लेकिन अब बहुत हो गया..! अच्छा
चल, उठ यहाँ से..कल सुबह आ..साहब लोग आज बहुत बिज़ी हैं...” इसे सुन घसीटू सहमकर उठते
हुए धीरे-धीरे थाने से बाहर चला गया...
हाँ, आज दूसरा दिन था...! खोई भैंस की चिंता
में कुछ खाए-पिए बिना ही घसीटू आज भी थाने पर ‘रिपोरट’ लिखाने पहुँच गया था...थाने
के मुख्य द्वार पर खड़ा संतरी अन्दर जाते हुए घसीटू से पूँछा, “क्यों बे..? कहाँ
चला जा रहा है..?” “अरे साहब ऊ..हाइफ़ोइल की रिपोरट जो लिखानी है..!” घसीटू की बात
संतरी नहीं समझ सका..और बोला, “अच्छा जा”|
घसीटू सीधे थाने के मुंशी के ही पास पहुँचा, उसे
देखते ही मुंशी ने बाहर लॉन में बैठे दारोगा की ओर इशारा करते हुए कहा, “वहाँ
जा..साहब लोग वहाँ बैठे हैं..पहले उनको तहरीर दिखा..” घसीटू ने देखा..! थाने के
बड़े साहब लॉन में बने चबूतरे पर गोल छतरी के नीचे बैठे हैं और वहीँ पर छोटा दरोगा
भी बैठा है, उनके सामने की मेज के आस-पास दो-चार कुर्सियाँ पड़ी हैं, एक कुर्सी पर
सफ़ेद शर्ट और पायजामे सा पैंट तथा सफ़ेद ही जूता पहने हुए लम्बा-चौड़ा एक व्यक्ति
बैठा भी है...! थाने के अहाते में ही दो बड़ी-बड़ी फार्चुनर कार के आस-पास कुछ लोग
हथियार लिए खड़े हैं, तो कुछ गोल छतरी वाले उस चबूतरे के आस-पास छितराए हुए खड़े
दिखे| दरोगा के सामने पड़े मेज पर एक झबरे बालों वाला कोई जानवर बैठा है, जिसके सिर
को बड़े प्यार से दरोगा साहब सहला रहे हैं..! कुछ पुलिसवाले ‘बिसकुट’ जैसी कोई चीज
हाथ में ले उस जानवर को खिलाने का प्रयास कर रहे हैं तो एक सिपाही हाथ में कटोरी
ले उस ‘विचित्तर’ से जानवर को कुछ पिलाने का भी प्रयास कर रहा है.....और
हाँ..घसीटू ने यह भी देखा कि उन पुलिसवालों में इस काम के लिए होड़ सी मची हुई
है..! तथा कुछ अन्य व्यक्ति भी वहीँ मेज के पास खड़े हैं...
घसीटू
इस नज़ारे को देख सहमा हुआ सा उस चबूतरे से थोड़ा पहले ही अपने काँपते हाथों में
तहरीर का कागज लिए जाकर खड़ा हो गया| चबूतरे पर चढ़ने की उसकी हिम्मत नहीं हुई, वहीँ
से वह चबूतरे की ओर लगातार देखता जा रहा था...वास्तव में एक गरीब और निर्बल
व्यक्ति बहुत ताम-झाम और सामंतीय पृष्ठभूमि जैसे स्थल से एक मनोवैज्ञानिक दूरी बना
लेता है|
अब-तक वहाँ कुछ
पत्रकार भी पहुँच चुके थे तथा कुछ कैमरे भी चमक पड़े, उन्हीं में से किसी ने दारोगा
जी से उनके इस महत्वपूर्ण ‘वर्कआउट’ के खुलासे की माँग कर बैठा, इस पर बड़े दरोगा “यह
एक शातिर चोर की करतूत थी और वह इस ‘डॉगी’ को शहर में बेंचने जा रहा था” कहते हुए छोटे
दारोगा की ओर देखने लगे...! इस माँग पर बड़े दरोगा का छोटे की ओर देखने का कारण
शायद यही रहा होगा कि ‘हाईप्रोफाइल’ व्यक्ति का उच्च प्रजाति का गायब हुआ पिल्ला
बहुत खोजने के बाद भी जब इनको नहीं मिला तो दोनों ने उसी प्रजाति के एक पिल्ले को
दूर शहर से खरीद कर इसे ही खोये पिल्ले की ‘बरामदगी’ के रूप में दिखाने का निश्चय
किया था| क्योंकि सड़क से पकड़कर लाने की बात पर श्रेय भी नहीं मिलता तथा
उच्चाधिकारियों को यह एक ‘गुडवर्क’ के रूप में भी स्वीकार्य न होता..! हाँ, इसके
‘बरामदगी’ के तरीके पर छोटे दरोगा ने कहा था “छोडिये सर...! चलकर थाने पर इस विषय पर
सोचा जाएगा” और दोनों देर रात पिल्ले को ले थाने पर लौट आए थे...
“तो भाई साहब..! उस
शातिर चोर को आपने गिरफ्तार किया या नहीं...” इस प्रश्न के साथ ही किसी ने माइक को
भी दारोगा के सामने मेंज पर सजा दिया| थाना का इंचार्ज इस प्रश्न से हकबका गया लेकिन
अगले ही पल अपने को सँभालते हुए वह उस पत्रकार से बोला, “अरे...यार..! पहले इस
अवसर पर अपना मुँह तो मीठा करो...फिर बातें होंगी” और पास में खड़े एक सिपाही को
कुछ निर्देश दिया, वह मिठाई लाने चला गया...! अब फिर इंचार्ज साहब छोटे दारोगा की
ओर देखने लगे जैसे उनसे कुछ कहना चाह रहें हों और छोटे दरोगा भी अपने दायें-बाएं
देख कर यह मुतमईन होना चाह रहे हों कि कोई उनकी बातें न सुन पाए लेकिन उसी समय उनकी
निगाह चबूतरे से थोड़ी दूर धूप में ही खड़े घसीटू पर टिक गयीं..! उनकी आँखों में
जैसे चमक आ गयी...वह तत्काल अपनी कुर्सी से उठते हुए तेज़ क़दमों के साथ घसीटू के
एकदम पास चले गए..|
घसीटू की बाँह
पकड़ते हुए छोटा दरोगा बोला, “क्यों बे...भो..ड़ी..के..अबे..सा..ले....तू यहाँ कहाँ
आ गया..?” और लगभग घसीटते हुए उसे मुंशी के कमरे की ओर ले गया| घसीटू के ऊपर जैसे
कोई अप्रत्यासित हमला हुआ हो, बस वह इतना कह पाया, ‘नाहीं साहब हमारउ हाइफ़ोइल चोरी
है..” तब तक घसीटू को मुंशी के कक्ष में फर्श पर ही बैठाकर छोटा दारोगा बोला, “अबे
सा...ले...पहले यहाँ बैठ...कोई चूँ-चपड़ मत करना नहीं तो तुम्हारे भैंस की चोरी को हम
हाइफ़ोइल नहीं मानेंगे...समझे..!” घसीटू ने जैसे सिर हिलाया हो..लेकिन अगले ही पल
उसपर बेहोशी छाने लगी...छोटा दरोगा वापस चबूतरे पर आया और आते ही बड़े साहब तथा वहाँ
लोगों को सुनाते हुए बोला, “पिल्ला-चोर पर माल बरामदगी के समय थोडा थर्ड डिग्री का
प्रयोग करना पड़ गया था इसलिए उसे वहाँ बैठाया गया है, ये पत्रकार लोग चाहें तो
वहीँ चलकर बाईट ले सकते हैं....!” बड़े दरोगा मुस्कुराने लगे, यही नहीं उस चबूतरे
पर गोल छतरी के नीचे बैठा सफेदपोश ‘हाईप्रोफाइल’ भी पता नहीं क्यों मुस्कुराने लगा
और मेज पर ही बैठे उस पिल्ले को देखता जा रहा था..| शायद यही सोच रहा था “चलो...! पहले
वाले से ऊँची प्रजाति का यह पिल्ला मिला है..|”
अब तक कुछ पत्रकारों के साथ दोनों दरोगा मुंशी
के कमरे की ओर जा चुके थे, घसीटू वहाँ फर्श पर ही दीवाल के सहारे पीठ के बल अधलेटा
सा पड़ा था...किसी ने उसके चेहरे को काले कपडे से भी ढक दिया था..उसकी तस्वीरें
खींची जा रही थीं...उसके कानों में ‘यही चोर है...पिल्ला-चोर’ जैसी आवाजें पड़ रही
थी, कोई उसे ‘शातिर चोर’ भी कह रहा था..! अर्द्ध-मूर्छा की अवस्था में रह-रह कर वह
बड़बड़ा उठता, “हमार चोरी...भी हाइफ़ोइल...” किसी ने इन शब्दों को उसकी अपराध की
स्वीकारोक्ति से जोड़ दिया था...
एक ‘हाईप्रोफाइल’ घटना का सफल ‘वर्कआउट’ हो चुका
था..! छतरी के नीचे गोल चबूतरे पर बैठे छोटे और बड़े साहब में वार्ता चल रही
थी...बड़े ने छोटे से कहा “इसका क्या किया जाए..? चालान करना तो उचित नहीं
होगा..कहीं मर-मरा गया तो अलग मुसीबत खड़ी हो जाएगी...!” तथा “इस रात में वह घर
पहुँच जाएगा कि नहीं..?” छोटे ने कहा, “सर ये सब बहुत चालाक होते है..बेहोशी का
नाटक कर रहा था...दो चार धौल जमाने पर सही हो गया है...अच्छा देखते हैं..!”
इधर सुबह का सूरज तो
निकला हुआ था...लेकिन अचानक बिस्तर से उठते ही घसीटू बोला, “नहीं..नहीं...मेरा
हाइफ़ोइल मामला नहीं है, मैं थाने नहीं आऊँगा...छोड़ दो मुझे...” उसे बुखार था..उसकी
पत्नी ने उसे फिर बिस्तर पर लिटा दिया था...
(यह केवल कहानी भर
है...! इस कहानी का वास्तविकता से दूर-दूर तक कोई नाता नहीं है...)
----विनय
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