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शनिवार, 11 अगस्त 2012

नीम का दरख्त


           क्या नियमों एवं आदर्शों को व्यवहृत किया जा सकता है ! उसे इन सारे प्रश्नों का उत्तर पाना है--] इसके लिए वह क्या करे-----क्या अपना स्वयं का विश्लेषण कर डाले------! लेकिन उसका जीवन अति साधारण----! क्या इससे जीवन में उठने वाले बड़े प्रश्नों का उत्तर मिल सकता है----! हाँ अब तक उसने जिन परिस्थितियों का सामना किया है वे साधारण ही तो रही हैं---हाँ तो क्या इनमें उसके मन में उठने वाले प्रश्नों का उत्तर खोजा जा सकता है------कहीं यह हास्य का विषय तो नहीं होगा-------!

          लेकिन इस जीवन में क्या तुच्छ से तुच्छ वस्तु का मूल्य नहीं है---! शायद है-----तभी तो तुच्छ से तुच्छ बातें भी होती हैं------या फिर कोई बात तुच्छ ही नहीं होती-----सब मन का भ्रम है----!

           उसके दादा जिन्हें वह बाबू कह कर सम्बोधित करता था उसके लिए एक ऐसे विशाल दरख्त के समान थे जिसकी घनी छाया में उसका बचपन निर्द्वन्द्व और निश्चिंत होकर बीता थाA हाँ-------उसी उसी विशाल नीम के दरख्त के समान जो उसके पुराने कच्चे घर के सामने दाहिनी ओर थाA वह पुरानी पुस्तैनी बखरी अब तो नहीं रही लेकिन वह नीम का दरख्त अपना वजूद बचाए हुए है हालाँकि उसकी कई विशाल डालें अपने आप गिरी और कुछ छोटी&मोटी डालों को लोगों ने काटा भीA एक बार जब उसके पक्के घर का निर्माण हो रहा था तो उसने उस घर के नक्शे में हेर&फेर करा दिया था और वह इसलिए कि नीम कि डालों को कटने से बचाया जा सकेA हाँ-------] घर के लोगों को इसका अहसास नहीं होने दिया था कि वह नीम की डालों को बचाने के लिए ऐसा कर रहा है------] शायद तब सफल न होताA

         हाँ-----]वही विशाल नीम का पेड़-----उसकी बड़ी&बड़ी डालें----टहनियाँ-----उसकी पत्तियां] उस पर----चुट-----चुट-------और दौड़ती गिलहरियां-----उसी की छाया में बीता उसका बचपन---! वह विशाल पेड़ उसके लिए कौतुहल का विषय भी थाA तभी तो छुटपन में एक बार बड़े भोलेपन से उसने अपने बाबू से उसके बारे में पूंछा था&

         ^^बाबू इ नीम क पेड़ तू लगाए रहा^^

         ^^नाहीं नन्ह्कवा इ हम नाहीं लगाए रहे^^] बाबू ने कहाA

         ^^त फिर तोहार बाबू लगाए रहा होंहि\^^ उसने फिर पूँछाA

         ^^नाहीं हमार ददा एका नाहीं लगाए रहेन^^] बाबू ने कहाA बाबू शायद अपने पिता को ^ददा^ कह कर संबोधित करते थे----A उसके बालमन की जिज्ञासा अभी शान्त नही हुई थीA उसने फिर पूँछा&

         ^^बाबू-----तू अपने दादा जी से एह नीमी क पेडे+ के बारे म फिर नाहीं पूंछाA^^ अब बाबू थोड़ा झल्लाते हुए बोले] इ बात पूंछे अउर बाते क जड़ पूंछे!^^ बाबू ने शायद ऐसा इसलिए कहा कि उनसे वह अकसर अपने बालमन की तमाम जिज्ञासाओं को शांत करने के लिए ऐसे ही प्रश्न दर प्रश्न किया करता था और कभी कभी इस प्रश्नोत्तरी के दौरान जब वह थोड़ा अन्यमनस्क होते तो उससे कहते] ^^का हरदम भुकवावत रहत ह।^^ लेकिन ऐसा कहने में उसके द्वारा पूँछे प्रश्नों के प्रति उनमें उपेक्षा का भाव नहीं होता था क्योंकि अगले पल ही वह उसके प्रश्नों का उत्तर देना प्रारम्भ कर देते थे। हाँ------ बाबू तो उसके लिए प्राथमिक पाठशाला थे---- और वह इस बात को समझते थे। उस दिन बाबू नीम के बारे में उसकी जिज्ञासाओं को पुन% शांत करना शुरू कर दिए] ^^ल बतावत हई--- हाँ--- हमार आजऊ ई नीमी क पेड़ नाहीं लगाए रहेन--- अऊर ओनहूँ नाइ जानत रहेन कि एका के लगाए रहा--।^^ फिर बोले] हाँ--- त---ई--- पेड़ अढाई तीन सउ साल पुरान जरुर होए---।^^ इतना कह वह थोड़ी देर चुप रहे] फिर एक गहरी साँस लेते हुए उस नीम के तने जैसे उसके एक बहुत पुरान्रे टूटे डाल की ओर इशारा किया] और कहने लगे&

           ^^वह देखा---- जवने में खोडर बा--- अरे--- उंहीं में----- जेहमें उल्लुआ झाँकत बा----उहई---] अरे---! उ--- बहुत मोटी डाल रही--- एह पेडे क समझा आधा उहई रहा---] हमरे बहुत लरिकाई में गिरा रहा---^^ इतना कह चुप हो गए। वह उन्हें अब बहुत उत्सुकता से सुनने लगा था] और पूँछा]

         ^^बाबू--- एतनी बड़ी डाल जब गिरा रहा त केऊ दबान नाहीं रहा---।^^

          ^^नाहीं----बेटवा---केऊ दबान नाहीं रहा---!^^ बाबू की चुप्पी टूटी।

          ^^अरे भईया---] कईसे केऊ दबातइ---एह पेड़े मं देबी क बास रहथ न---^^ उसने दृष्टि घुमाई तो देखा पंडित बबा बाबू से यह कह रहे थे] जो बाबू और उसके बीच चल रहे वार्तालाप को सुन रहे थे।

          हाँ पंडित बबा उसके दादा यानि बाबू के छोटे भाई थे] उन्हें घर और गाँव के लोग ^पंडित के नाम से पुकारते थे। उनका यह नाम क्यों पड़ा बाबू ने उसकी इस जिज्ञासा को इस प्रकार शांत किया था]

          ^^पंडित इसकूल में पढ़े रहेन इही से गाँव वालेन इनका पंडित कहै लागेन।^^ उसकी जानकारी के लिए आगे उनहोंने और जोड़ा] ^^अरे--- ये ठीक से पढ़े रहेन होतेन त आज कतऊं संसकिरत क मास्टर होतेन--।^^ उसनें पूँछा] ^^काहे ठीक से नाहीं पढ़ेन---\^^ बाबू ने बड़े आत्मीयतापूर्ण लहजे में बताया] अरे--- ये ठीक से कईसे पढ़तेन----] पढाई क नाम से त इसकूल जाईं---- और उहाँ से चला जाईं ससुरारी---^^ 
             पंडित बबा ने फिर अपनी बात पूरी करनी शुरू की] ^^केतनी बार एह नीमी क डार गिरी भईया----! आखिर कोनौ खतरा भवा----नाहीं न----^^ फिर उसकी ओर मुखातिब हुए] ^^अरे---बचवा--- बताए न---एहमें देबी माँ क निवास अहै ^^ उस विशाल वृक्ष के चारों ओर बने चबूतरे की ओर इशारा करते हुए बोले] ^^इ देबी माँ क चौरा हमहीं बनवाए रहे-^^ वह नीम की डाली पर बंधी घंटियों को दिखाते हुए पूँछा] ^^बबा घंटी काहे बांधी बा^^ पंडित बबा उत्तर दिए] ^^देबी माँ से मनौती माना रहा जेकर मनौती पूरा भ उहई बांधेस-^
            ^^पंडित---तनी----सुरती बनावा---मैदान होई आई----।^^ उसके दादा पंडित बबा के इन बातों से ऊबते हुए से बोले। पंडित बबा सुरती मलते हुए दो तीन बार उसे हथेलियों के बीच थप थप करते हुए चूने की धूल को उड़ाया। इससे उसे दो तीन जोरदार छींकें आई। यह देख पंडित बबा मुसकराते हुए बोले] ^^देखअ---भईया-----! इ---सुरती---! बहुत तेज बा----!^^ ^^हाँ हो---कहाँ से लेहे रहाअ-----।^^ बाबू ने कहा। ^^अरे--- उंहीं से-----जहाँ से तू लेथअ----सेठ एका कोने वाले डब्बावा में रख्खथेंन----।^^ पंडित बबा अपनी सुरती की तेजी पर गर्व से बोले।^^
              छींकों के बाद उसने अपना चेहरा दूसरी ओर घुमाया] अकस्मात् उसकी नजर पुनः नीम के उस कोटर की ओर गई। उसने देखा] उल्लू की दो बड़ी बड़ी आँखें कोटर में से झांक रही थी----और एक ^किलाहटी^ कोटर के पास मंडरा रही थी] दूसरी डाल के टूटे भाग पर बैठ ची&ची कर रही थी। उसे ऐसा प्रतीत हुआ जैसे वे उल्लू को कोटर से निकालना चाहती हों----। इतने में कुछ चिड़िया शायद वे चर्खी थी वहाँ आ गई और समवेत स्वर में सभी ने ची&ची करना प्रारम्भ कर दिया----। उन सब का शोर इतना अधिक था कि पंडित बबा बोल उठे] ^^एनहूँ ससुरन क----पता नाहीं कउन हिस्सा बाँट क झगड़ा बा----कि मनईयउन----से बढ़ी गयेंन-----।^^ इतना कहते बाबू की ओर सुरती वाला हाँथ बढ़ा दिए। चुटकी में सुरती लेते हुए बाबू ने अनुभवी अन्दाज में कहा] ^^नाहीं पंडित----अब संझा होत बा न----रात में एंह कोटरे में रहई क बारी किलहटीयन क अहई----एही से एन्ह्न उल्लुआ के निकालइ बदे हल्ला मचाए अहै-----।^^ पंडित बबा मुसकुराते हुए बोले] ^^तउ---तउ---।^^ बाबू एक हाँथ में लोटा और दुसरे में सोंटा ले वन की ओर चल दिए-----।