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शनिवार, 28 मई 2022

किसी को जिंदा कर देना

           सच तो यह है, मैं यह बातें लिखने के मूड में नहीं था। लेकिन हमारे जिले के जिला अस्पताल के डिप्टी सीएमओ श्री मातनहेलिया जी ने मुझसे कहा आपको यह बात अधिक से अधिक लोगों को अवश्य बताना चाहिए। लोगों के लिए यह प्रेरणादायी है इससे समाज को लाभ मिल सकता है। तो, इस बात को लिखना या इस घटना को सब के बीच में ले आना स्वयं के लिए वाहवाही कराना या आत्मप्रचार का हिस्सा नहीं है। बल्कि जो कर पाया, उसे करने की जानकारी किसी का लिखा पढ़कर ही हुई थी। अचानक किसी की कुछ पलों के अंदर हुई मौत और वह भी एक अच्छे-भले स्वस्थ इंसान का, बहुत झकझोरने वाली होती है क्योंकि मेरा मानना है जीवन इतना अनिश्चित भी नहीं होता। प्रकृति ने किसी भी जीव के शरीर को इस तरह नहीं गढ़ा है कि उसके जीवन धारण की क्षमता अनिश्चित हो! यदि जीवन ऐसा ही होता तो सदियों से मानव सभ्यता अपने भविष्य की चिन्ता करते हुए दिखाई न देती! प्रकृति की चीजों में देखिए तो इसमें एक अद्भुत सिमेट्री दिखाई पड़ती है!! माने यह सृष्टि में व्याप्त एक निश्चित नियम की ही ओर इशारा है। तो फिर ऐसी मौतों के पीछे कौन से कारण हैं और क्या ऐसे व्यक्ति को नहीं बचाया जा सकता? यह प्रश्न मन को बेचैन करता है। इसके लिए इस विषय पर सोशल मीडिया या इंटरनेट आदि पर यदि  कोई लेख मिलता है तो उसे मैं जरूर पढ़ता हूँ।
        
        ऐसे ही फेसबुक पर एक प्रसिद्ध पत्रकार संजय सिन्हा जी हैं, एक बार उन्होंने अपने भाई की अचानक हुई ऐसी ही मृत्यु की कहानी लिखी थी। उन्होंने लिखा था, काश! मेरे भाई के पास उस समय कोई होता तो वह आज जिंदा होता। खैर, मैं आज बताता हूं कि उन्होंने अपनी उस कहानी में क्या लिखा था, और कैसे उनके भाई की जान बचती।
       
          उस दिन मेरे ड्राइवर की तबियत थोड़ी सी नासाज थी। एक तो वह बहुत संवेदनशील है, दूसरे समस्याओं को लेकर गहरी चिंता कर बैठता है। सुबह इग्यारह बजे के आसपास मुझसे अपनी तबियत खराब बताकर वह जिला चिकित्सालय  दवाई लेने गया था। वहां से वापस आकर उसने मुझे दवा लेने के बारे में बताया भी। मैंने सोचा शायद बहुत अधिक चिंता करने आदि के कारण इसकी तबियत खराब हुई होगी। उसे देखने से मुझे ऐसा प्रतीत नहीं हुआ कि आज इसके जीवन पर कोई गंभीर संकट मँडरा रहा है। इस समय दोपहर बाद के ढाई बज रहे होंगे, मेरे आफिस के ज्यादातर लोग लंच पर चले ग‌ए थे। मैं विकास भवन की पहली मंजिल पर अपने कक्ष में बैठा अपने कार्यालय सहायक के साथ किसी बात पर विमर्श कर रहा था।
         
          अचानक मेरे कक्ष के सामने की गैलरी में किसी भारी चीज के गिरने जैसी धम्म की जोर की आवाज सुनाई पड़ी! हम दोनों चौंक ग‌ए थे। मुझे लगा जैसे किसी ने भरा बोरा फर्श पर पटक दिया हो। अपनी कुर्सी पर बैठे हुए मैंने उस गैलरी की ओर खुल रहे अपने कक्ष के दरवाजे की ओर देखा। दरवाजे के आधे भाग तक पर्दा फैला था। मैंने फर्श पर मोजा देखा, बावजूद इसके मुझे एक क्षण तक कुछ समझ में नहीं आया यह पैर में पहना हुआ मोजा है क्योंकि उसके  शरीर का बाकी भाग पर्दे और दीवाल की ओट में था!! अब तक धम्म की आवाज आए छह-सात सेकेंड भी हो चुका था। मैंने अपने कार्यालय सहायक से बाहर चलकर देखने के लिए कहा। हम दोनों जैसे ही अपने कक्ष से निकले, बाहर का दृश्य देखकर हम आवाक थे! अरे!! यह तो मेरा वही ड्राइवर था जो कुछ देर पहले अस्पताल से दवा लेकर आया था! वह  फर्श पर चित पड़ा था!! तो इसी के गिरने की आवाज आई थी। मेरे समझ में यह बात आ गई। हम झपटकर उसके पास पहुंचे। उसके चेहरे को देखा, उसकी दोनों आँखें खुली हुई और पुतलियां ठस स्थिर एकटक शून्य की ओर निहारती प्रतीत हुई। उसके चेहरे पर पानी की छींटें मारी गई, लेकिन इसका कोई असर होता नहीं दिखाई पड़ा। मैंने उसका सिर अपनी बाहों में लेकर उसे उठाने का प्रयास किया। लेकिन उसका शरीर एकदम से झूल रहा था। मैंने ध्यान दिया, उसकी सांसें थम चुकी थी और उसके हृदय की धड़कन बंद थी! मुझे उसके 'डेडबाडी' हो जाने का अहसास हुआ। यही वह क्षण था जब मुझे संजय सिन्हा की पढ़ी उनके भाई की कहानी याद आई। उनका भाई अपने ऐसे ही दुखद क्षण में अकेला था, लेकिन यहां मैं अपने ड्राइवर के साथ था।
         
        मैं समझ गया था, मेरे ड्राइवर को सडेन कार्डियक अरेस्ट हुआ है, और इनका हार्ट फेल हो गया है अर्थात हृदय ने काम करना बंद कर दिया है। मैं जानता था कि हार्ट अटैक में मरीज को बचने की उम्मीद अधिक रहती है लेकिन कार्डियक अरेस्ट में यदि तत्काल उपचार न मिले तो मरीजों की जान चली जाती है। ऐसी स्थितियों में मरीजों को सीपीआर (Cardiopulmonary Resuscitation) देकर बचाया जा सकता है। सोचा, अब तो जो होना था हो चुका है, एक आखिरी प्रयास मैं सी पी आर दे कर लेता हूं, शायद हृदय फिर से धड़कना शुरू कर दें! हालांकि सी पी आर के बारे में मैं पूरी तरह भिज्ञ नहीं था मुझे बस इतना ही पता था कि इसमें हथेलियों से मरीज की छाती को दबाया जाता है और दबाने की गति एक मिनट में कम से कम सौ बार की होनी चाहिए। और ऐसे मामले में इसे दो मिनट के अंदर शुरू कर देना चाहिए!  अब बिना समय गंवाए मैंने सी पी आर देना शुरू कर दिया था। 
       
          हथेलियों से ड्राइवर के सीने को बिना रुके लगातार पंच करते हुए सात-आठ मिनट हुए होंगे, जब मैंने उसके बाएं हाथ की दो अंगुलियों में तनिक सी हरकत देखी! इसे देखकर सोचा  शायद इसके पीछे सी पी आर देते समय शरीर का हिलना कारण हो, लेकिन दूसरे ही क्षण मुझे आभास हुआ, नहीं  शायद यह जीवन लौटने का लक्षण है! मैंने वैसे ही उसके हृदय को पंच दिए जा रहा था। मुझे उसके हाथ में बल आता जान पड़ा। मैं सी पी आर दिए जा रहा था। अचानक मुझे उसकी खुली ठस आंखों की पलकों में थोड़ी सी हलचल होती जान पड़ी! लगा जैसे उसकी पलकें झपकाने की कोशिश में हों! मुझे उसका जीवन लौटता जान पड़ा! अभी भी मेरी हथेलियां उसके सीने को पंच कर रही थी। मुझे लगा जैसे वह अपना हाथ मोड़ना चाहता हो! ठीक यही क्षण था जब उसके मुंह से आवाज भी आई! इसके बाद भी मैं पंच देता रहा, अब हर पंच के साथ उसके मुंह से यह आवाज आने लगी थी! और मुझे उसकी चेतना भी लौटती जान पड़ी। उसका जीवन लौट आया, मुझे यह विश्वास हो गया! अब तक मेरे हाथ भी बेतरह थक चुके थे, मैं पसीने से तरबतर लगभग निढाल पड़ चुका था! लेकिन उसे पूरी तरह होश में लाने तक मैं सी पी आर देते रहना चहता था। मैंने किसी दूसरे से पंच देने के लिए कहा। अभी उसने कुछ पंच दिए ही थे कि मैंने ड्राइवर को कुछ इशारा करते हुए देखा न। अब मैंने सी पी आर की प्रक्रिया को रोकने के लिए कहा। मेरे ड्राइवर का जीवन लौट आया था, किसी फिल्म की कहानी जैसे!! और मेरे लिए यह वैसे ही था जैसे मृत्यु के बाद किसी का जिंदा हो जाना!!
      
       ईश्वर से हम सब प्रार्थना करें कि मेरे ड्राइवर को शीघ्र स्वस्थ कर दें, हां  जीवन इतना अनिश्चित भी नहीं होता। ऐसी स्थिति आए तो हम अवश्य किसी का जीवन बचा सकते हैं!!!