लोकप्रिय पोस्ट

मंगलवार, 24 अक्टूबर 2023

अम्मा

      "अम्मा! पहचानूं हम‌इ?" 
       "अरे बिटिया भला तोह‌इं न पहिचानब!" यह कहकर उन्होंने नाम लेकर बताया कि वह कौन है। 
       पिचासी वर्ष से कुछ अधिक ही आयु होगी उन वृद्धा की, जो अभी-अभी व्हील चेयर से यहाँ आई हैं। आज उनके पौत्र का व्रतबंध संस्कार का कार्यक्रम है। उनके चेहरे पर की झुर्रियां और उनके सिर के सफेद बाल उनकी गरिमा को बढ़ाता हुआ प्रतीत हो रहा था। वे अम्मा क‌ई साल बाद देख रहीं थी। कुछ साल पहले बाबूजी अर्थात अम्मा के पति का देहांत हो गया था। उनके पति कोई सरकारी मुलाजिम थे और रिटायर होने के बाद पेंशन मिल रहा था उन्हें। बाबूजी के जाने के बाद अम्मा भी बीच में गंभीर रूप से बीमार पड़ी थीं। इसीलिए आज जब अम्मा को उन्होंने देखा तो वे काफी कमजोर दिखाई पड़ीं थी। उम्र और बीमारी का प्रभाव उनके शरीर पर साफ दिखाई पड़ रहा था। अभी वे अम्मा को ध्यान से देख ही रहीं थी कि अचानक अम्मा बोलीं, "बिटिया हमार चोटी थोड़ा गुहि द्यौ।" अम्मा ने उनसे चोटी बनाने के लिए कहा था। 
        वे अम्मा की चोटी ठीक करने लगी थीं। इसे ठीक कर वे अम्मा से बोली, "ल्यौ अम्मा तोहार चोटी ठीक हुइ ग्यौ।" 
       "अरे वाह बिटिया बहुत बढ़िया!" अम्मा ने पीछे चोटी पर हाथ फिराते हुए कहा। 
     इसके बाद अम्मा ने वहीं पास में एक साड़ी के पैकेट को दिखाते हुए कहा, देखो बिटिया, एह साड़ी में फाल-वाल लगा है कि नहीं। वे उस पैकेट को खोलकर देखने लगी। उसमें साड़ी, पेटीकोट और ब्लाउज सभी तहियाया हुआ रखा था। साड़ी को देखकर अम्मा को बताया कि इसमें फाल लगा है। इसके बाद अम्मा की निगाह इस कमरे में महिलाओं पर चली गई। यहाँ अम्मा की बहुओं के अलावा नाते- रिस्तेदार से आई महिलाएं जुटी पड़ी थीं। अम्मा एक एक कर सबको ध्यान से देख रहीं थी, जैसे वह चाह रहीं थी कि इनमें से कोई आकर उन्हें साड़ी पहना दें। लेकिन यहां महिलाएं ज्यादातर अपनी तैयारी या सँजने-सँवरने में व्यस्त दिखाई पड़ी। और अम्मा भी चाहकर भी किसी से कुछ नहीं बोल पा रहीं थीं।
      इसी समय उनके बड़े बेटे इस कमरे में किसी काम से आए। इनके बेटे अर्थात अम्मा के पोते का यह ब्रतबंध कार्यक्रम था। अपने बेटे को देखते ही अम्मा बोली, "अरे बेटवा, ज‌उन सड़िया लियाइ रह्यो हमका द‌इ द्यौ.. ओका हमहूँ पहिन लेई!" बेटे से पहनने के लिए उन्होंने साड़ी मांगा था। यह कहते हुए उनकी यह भी इच्छा थी कि बेटा किसी से कहकर उन्हें साड़ी पहनवा दे।
       बेटे ने अम्मा और साड़ी वाले थैले की ओर देखा। इधर पूजा कार्यक्रम में भी विलंब हो रहा था। उन्हें तुरंत ही मंडप में जाना था। कमरे में भीड़ और यहाँ सबको तैयारियों में व्यस्त देखकर उनके बेटे ने अम्मा से कहा, "अरे अम्मा! तू वैसे ही ठीक लागत ह‌ऊ, ई साड़ी पहनै का तोहका कौन‌ऊ जरूरत नाहीं है, अम्मा अब पूजा में देर हो रही है।" इस बीच मंडप से बेटे को बुलावा भी आ गया था।
      बेटे के जाते ही अम्मा बोली, "देखत अहू बिटिया.. कौन‌उ हमको ई साड़ी नहीं पहिना रहा !" साड़ी के थैले की ओर टकटकी लगाए हुए अम्मा बोली थी।
       इधर कमरे से अब सभी औरतें मंडप में जाने की तैयारी में लगी थीं। कोई किसी पर ध्यान नहीं दे रहा था । अम्मा की ओर एक भरपूर निगाह डालकर वे सोचने लगीं थीं कि अम्मा यह साड़ी कैसे पहनेंगी, उम्र के इस पड़ाव में अम्मा झुककर छोटी भी हो गई हैं, यह नई साड़ी उनसे ठीक से पहना भी नहीं जाएगा, और तो और पहनकर इसे संभाल भी नहीं पाएंगी। इसे पहनने से उनकी परेशानी ही बढ़ेगी! इससे अच्छा है कि अम्मा यह साड़ी न पहनें। इसीलिए अम्मा की ओर देखकर उनसे बोलीं, "नाहीं अम्मा, तू जो साड़ी पहनी हो, उसमें एकदम फिट हो अच्छी लागत हो।" यह सुनते ही अम्मा ने भी कह दिया, "अच्छा ठीक है बिटिया हम अब न‌ई साड़ी न पहनब।" 
      पूजा का कार्यक्रम शुरू हो गया था। इसी समय मँझली बहू अम्मा के पास आई और अम्मा से बोली, "अम्मा पूजा शुरू हो गया है, पूजा में अपनी ओर से कुछ चढ़ावै के द‌इ द्यौ।"
       अम्मा ने बहू की ओर देखा फिर अपने थैले में से पाँच-पाँच सौ के दो नोट निकालकर बहू को देते हुए कहा, "ई ल्यौ, हमरी ओर से चढ़ाई दो जाकर।" बहू ने उन नोटों को अपने हाथ में लिया और मुस्कुराकर अम्मा से फिर बोली, "अम्मा कुछ हमहूँ के लिए चढ़ावै बदे द‌इ द्यौ।" मतलब हमें भी तो पूजा में चढ़ाने के लिए कुछ दे दो।
         अम्मा ने बहू के चेहरे की ओर देखा, फिर अपने उसी थैले में से एक सौ रूपए का नोट निकाल कर बहू को दे दिया। अम्मा के हाथ से उसे लेते हुए बहू बोलीं, "अरे ई का अम्मा! बस इह‌ई सौ रूपया हम चढ़ाइब! अरे कम से कम पाँच सौ रुपए होई के चाही।!" बहू ने पूजा में चढ़ाने के लिए अम्मा से पाँच सौ रूपए मांगा‌।
     अम्मा भी बहू से बोली, "बहू..ई सौ रूपया बहुत है पूजा में चढ़ावै के लिए तोहका,बस..!" इसके साथ ही अम्मा ने यह भी कहा कि इधर बहुत खर्च हो रहा है अब और हम नहीं देंगे।
       अम्मा की बात सुनकर बहू ने भी थोड़ा नाटकीय अंदाज में जैसे मायूस होकर कहा, "अच्छा अम्मा, इसे ही चढ़ा देंगे।" और वहाँ से जाने को हुई थीं। इसी समय अम्मा ने अचानक अपने थैले में फिर हाथ डाल दिया था और थैले में से पांच सौ का एक नोट निकाल कर बहू को देते हुए कहा कि अच्छा जाओ खुश रहो, इसे चढ़ा दो। बहू हँसते हुए पूजा मंडप की ओर चली गई थी।
       बहू के जाते ही अम्मा एक बार फिर उनकी ओर फिर मुखातिब हुई। वे बोली थी। देख्यौ बिटिया! तोहरे बाबू के जाने के बाद ई पैंतीस हजार पेंशन हमका मिलत है, तोहार बाबू बहुत पुण्यात्मा थे बहुत अच्छा काम किए थे, हमारे लिए बहुत कुछ करके ग‌ए हैं, अऊर एक बात है बिटिया..आखिर हम क‌उन बहुत काम किहे हैं..सरकार बेचारी जैसे ई मुफ्त में हमको पेंशन देत है, हम भी इसको ऐसेई खर्च क‌इ देइत है!" इस समय अम्मा के चेहरे पर एक गंभीर प्रकृति वाला संतोष का भाव था। वे देश दुनियां से बेपरवाह जैसे अपनी इस अवस्था को क्षण-क्षण जी लेना चाहती थीं। अम्मा को देखकर वे बहुत देर तक यही सोचती रहीं कि इस अवस्था में इनके मन की यह निर्लिप्त चाह कितनी प्यारी और प्राणवान है!
                            *******

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें