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मंगलवार, 24 अक्टूबर 2023

वह मनभावन नोकझोंक

     अभी उस दिन की बात है, मैं लखनऊ से अपने गृह कस्बे मुंगराबादशाहपुर के रास्ते पर था। रायबरेली के आगे एक स्थान पर कार रोककर मुँह धोते हुए जब ड्राइवर ने कहा कि नींद आ रही थी तो मैंने अनुमान लगा लिया था कि रात की नींद पूरी नहीं हुई है। इसलिए मैंने उसे चाय पीने के लिए कहा। लेकिन चाय की दुकानें अभी या तो खुली नहीं थीं या या खुलने की तैयारी में थी। इधर समय पर घर भी पहुँचना था इस फेर में ड्राइवर से यह भी कह दिया था कि जहाँ चाय बनती दिखाई पड़े वहीं गाड़ी रोकना। इसके बाद वह काफी देर तक गाड़ी चलाता रहा। जब एक स्थान पर अचानक कार रोकते हुए उसने कहा कि चाय पी लें तो चलें तो मेरी नज़र सड़क के दाहिने पटरी की ओर ग‌ई। वहां चाय की एक दूकान थी जहां चार-पांच लोग थे। दुकानदार चाय छान रहा था। ड्राइवर ने इसी दूकान को देखकर गाड़ी रोका था। मैं गाड़ी में ही बैठा रहा क्योंकि चाय पीने का मेरा मन नहीं था। इस समय हम निहायत एक ग्रामीण क्षेत्र में थे। जहाँ एक पतली सड़क गाँवों से आकर हाईवे से जुड़ रही थी। 
          मैंने दुकान की ओर देखा कि ड्राइवर जल्दी चाय पीकर आए और हम चलें। दुकान के सामने खड़ा वह कुल्हड़ में चाय उड़ेले जाने का इंतजार कर रहा था। इसी समय किसी व्यक्ति की तेज आवाज सुनाई पड़ी। वह किसी से बिगड़ैल अंदाज में कह रहा था, 
         'एक घंटे से देख रहा हूँ अखबार लिए बैठे हो।'
       मैंने ध्यान दिया, यह आवाज एक लम्बी सफेद दाढ़ी वाले मुस्लिम व्यक्ति की थी जिसकी उम्र साठ-पैंसठ की रही होगी। ये महाशय एक आदमी के हाथ से अखबार खींचते दिखाई पड़े जो पचास-पचपन के वय का था। सफारी सूट वाला वह व्यक्ति कुर्सी पर बैठा अखबार पढ़ रहा था। हाथ से अखबार छीने जाने से ये महोदय भुनभुना लगे थे। दोनों के बीच नोक-झोंक शुरू हो गई। इसे सुनने के लिए मैं उत्सुक हो उठा। अखबार अब उन चाचा जी के कब्जे में था।
          "हाँ कब से मैं इंतजार में था कि अब खतम करो तब खतम करो, लेकिन जैसे पढ़ नहीं अख़बार को चाट रहे थे.." दाढ़ी वाले चचा की आवाज थी।
            "तो का इसका सूरत देखकर दे देते!" सफारी सूट वाले की आवाज थी।
             "नहीं तो क्या एक घंटा लगता है पढ़ने में? चचा फिर बोले थे।
             इसके बाद सफारी सूट वाला आदमी कुछ भुनभुनाया था लेकिन ठीक से सुनाई नहीं पड़ा।
            "इसे एक घंटा से पढ़ रहे हो। मैं अभी दस मिनट में पढ़कर रख देता हूँ!" चचा ने कुछ ताव में आकर कहा था।
              "हूँ..बड़े आए दस मिनट में पढ़ लेने वाले..ऐसे ही पढ़ना हो तो मैं पाँच ही मिनट में पढ़ डालूँ.." अबकी बार सफारी सूट वाले की आवाज कुछ तेज थी।
             "नहीं…परीक्षा पास करनी है कि रटने के लिए घंटा भर समय चाहिए।" यह बोलकर दाढ़ी वाले चचा अखबार लेकर बेंच पर पढ़ने बैठ ग‌ए थे।
              इसके बाद सफारी सूट वाला आदमी कुछ बड़बड़ा रहा था जो सुनाई नहीं पड़ा। मैंने देखा इन दोनों के इस नोक-झोंक को सुनकर दुकान पर बैठे बाकी सभी चुपचाप मुस्कुराए जा रहे थे। उस दुकान की एक बेंच पर एक और लम्बी दाढ़ी वाले बुजुर्ग बैठे थे, वे भी मुस्कुरा रहे थे, वहीं दूसरी ओर एक अन्य शख्स इन दोनों के नोक-झोंक पर हँसने लगा था। एक और व्यक्ति था जो इन दोनों को देखते हुए मुस्कुराए जा रहा था। इधर कार में बैठे-बैठे मुझे भी इस दृश्य को देखकर मजा आने लगा और मैं भी मुस्कुरा दिया। मैं दुकान के पास जाकर इस दृश्य को मोबाइल में कैद करना चाहा। लेकिन डर लगा कि मुझे फोटो खींचते देख कोई इस निर्दोष नोकझोंक की राजनीतिक व्याख्या न करने लगे। फिर तो यहाँ उपस्थित लोग दो मुस्लिम और तीन हिंदू में बंट जाएंगे। इसलिए कार में बैठे-बैठे चुपके से मैंने उस दुकान की एक तस्वीर अपने मोबाइल में कैद कर लिया। इसी समय मेरा ड्राईवर भी चाय पीकर वापस आ गया था। हम वहाँ से चल दिए थे। 

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