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रविवार, 20 नवंबर 2016

दरकाए जाते पुल

            पुल का बहुत महत्व होता है। पुल जोड़ते हैं। एक दूसरे को समझने का अवसर देते हैं। लोगों के बीच के आपसी शक-शुबहा, भ्रम को ये पुल ही दूर करते हैं। किसी पुल से आर-पार जाकर हम तमाम विभाजक रेखाओं को धता बता सकते हैं। मैं तो यह भी मानता हूँ, पुल लोगों को ठगे जाने से भी बचाते हैं। पुल संभावनाओं के द्वार भी खोलते हैं। यही नहीं अपने होने के क्रम में यही पुल अपने सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक महत्व भी निभाते चलते हैं। इसीलिए पुल तोड़े नहीं जाते, बल्कि इन्हें विस्तार दे कर और सुगम भी बनाया जाता है, जिससे आसानी से लोग आर-पार हो सकें। ये पुल जब कभी छीज कर अदृश्य हो जाते हैं, तो धार्मिक मिथक बन जाते हैं। तब ऐसे ही किसी छीजे पुल को लोग, किसी रावण को मारने के लिए बना रामसेतु पुकारते हैं। शायद इन्हीं कारणों से सीधे-सादे लोगों को ये पुल रहस्यात्मक भी प्रतीत होते हैं। 
           बचपन में अकसर पुलों को लेकर रहस्यात्मक किवदंन्तियाँ भी सुनी है। पुलों पर पहलवान वीर बाबा या ब्रह्मवीर बाबा का वास बताया जाना देखा और सुना है। एकाध पुल की तो घंटे-घड़ियाल से पूजा होते हुए भी देखा है। मतलब ये पुल अदृश्य रूप से हमें लाभ या हानि भी पहुँचा सकते हैं। कभी- कभी बचपन में, किसी अज्ञात भय से, शाम के समय किसी पुल को तेजी से साइकिल चलाते हुए पार करते थे। मतलब बचपन में पुल से डर भी लगता था। 
            उस दिन पता चला कि वह पुल फिर टूट गया है। वाहनों का  उस पुल से गुजरना बंद है। यह पुल अकसर टूटता ही रहता है। मन में, इस पुल के टूटने को लेकर बहुत गुस्सा उठता है। पता नहीं हम कैसे पुल बनाते हैं, जो टूट जाते है।  लेकिन यह पुल किसी खास अवधि में ही टूटता दिखाई देता है। 
           एक बार, इस पुल से गुजरते हुए, मेरी गाड़ी में लिफ्ट लिए हुए एक सिपाही से मैंने पुल के टूटने की चर्चा की तो, उस सिपाही ने मुझे बताया था "यह पुल अपने आप नहीं टूटता इसे तोड़ा जाता है।" उस सिपाही की बात सुन मैं अचंभित हुआ था। उसने इस पुल के तोड़े जाने की आर्थिक व्याख्या भी की थी। 
             वाकई! पुल भी किसी बने रिश्ते सरीखे ही होते हैं। पुल और रिश्ते दोनों के बनने के पीछे ढेर सारे कारण होते होंगे। हालाँकि, इन पुलों के नींव में जब स्वार्थ छिपा हो तो किसी रिश्ते की ही भाँति ये भी कमजोर होते हैं, दरक जाते हैं। इन पुलों में मजबूती सीमेंट, बजरी और लोहे के मिल जाने से ही आती है, जैसे रिश्ते में, मजबूती वाले तत्व, त्याग और प्रेम, मिला होता है। स्वार्थ वाले रिश्ते तनाव नहीं झेल पाते और ये भी दरक जाते हैं। 
         
            इस पुल को मैंने विशेष स्थानों पर ही टूटते हुए देखा है, यह पुल अपने पायों से तो टूटता नहीं दिखाई पड़ता है, लेकिन पुल पर का रास्ता जरूर दरक जाता है और फिर इसपर आवाजाही बन्द। इस पुल को फिर से दरका जान सिपाही की बात पर ध्यान चला गया। उसने पुल तोड़ने की आर्थिक व्याख्या की थी। माल के ठेकेदार अपने डम्प माल को बेचने के लिए पुल तोड़ देते हैं। अपना माल बेंच दो..! क्यों..क्योंकि, तब अपनी-अपनी ओर वाले, अपनी-अपनी तरफ ही माल बेंच पाएँगे..! री होता है कि इसपर इतना बोझ लादा जाय कि यह दरक जाए..वाकई! सब की हर चीज सहने की सीमा होती है। पुल को दरकाकर, कुछ लोगों द्वारा चाँदी काटी जाती है। पुलों में दरार पैदा करने का काम ठेकेदार टाइप के लोग ही करते हैं। पुल इनकी आँख में खटकते हैं। 
            ये ठेकेदार बहुत चालू चीज होते हैं। वैसे तो इनका किसी पुल से कोई लेना-देना नहीं होता, लेकिन ये पुल की महत्ता को समझते हैं। किसी चीज की माँग और आपूर्ति पर विशेष रूप से नजरें गड़ाए रहते हैं। अगर किसी "चीज" की आपूर्ति बाधित कर दी जाए तो उसकी माँग बेतहाशा बढ़ जाती है, यह उस "चीज" का ठेकेदार बखूबी जानता है। भविष्य के फायदे की सोच कर वह मार्केट की ओर अपना माल डम्प करता रहता है। चूँकि पुल चालू रहने से दोनों ओर के माल बिकने की पूरी सम्भावना बनी रहती है इसलिए अपने डम्प माल को बिकवाने के लिए वह पुल को दरकाने की सोचने लगता है। 
             अब देखा जाय तो विचारों के ठेकेदार भी यही करते हैं। क्योंकि "विचार" भी "रा-मटेरियल" की तरह ही इस्तेमाल होते हैं। तो, "विचार" भी एक तरह का माल हुआ, जो किसी आदिम टाइप की किताब से निकाल-निकाल कर दूसरी ओर के लोगों के लिए डम्प किया जाता है। अब ऐसे "रा-मटेरियल" का ठेकेदार, अपने इन विचारों के समर्थन में कसीदे गढ़-गढ़ कर माल तैयार करता है। चूँकि ऐसे कई ठेकेदार होते हैं और सबके अपने-अपने डम्प माल होते हैं। लेकिन जनता के बीच पुल होता है, इस पुल के कारण ही ठेकेदारों की योजना सफल नहीं हो पाती और डम्प माल धरा का धरा रह जाता है। जनता के बीच के ये पुल जनता को एक दूसरे से मिलाकर ऐसे माल की असलियत से भी पहचान करा देते हैं।
          लेकिन जैसा कि, मैंने ऊपर ही कहा है कि ठेकेदार बहुत चालू चीज होते हैं! ये अपना तैयार डम्प माल जनता को लेने के लिए मजबूर कर देने की जुगत में पड़ जाते हैं और इनका खेल आरंभ होता है। तो ये, करते क्या हैं? ये पुल पर आवाजाही रोकना चाहते हैं। ये ठेकेदार लोग पुल तोड़ने की ठान लेते हैं। क्योंकि जब पुल टूटेगा तो मजबूरी में ही सही इनका माल चल निकलेगा! इनके माल लेने की मजबूरी हो जाएगी।
         हाँ तो,ये ठेकेदार अपने डम्प माल को एक ट्रक में ओवरलोड कर इस ट्रक को पुल के ऊपर ले जाकर खड़ा कर देते हैं। और फिर ट्रक की खराबी के बहाने से वहीं पुल पर ही ट्रक को जैक पर उठाकर छोड़ देते हैं। किसी को कानों-कान इस बात की भनक नहीं होती कि पुल तोड़ने की साजिश चल रही है। इधर लोगों को यह भ्रम रहता है कि एक खराब ट्रक पुल पर खड़ा है।
         अब आप ही बताइए! किसी ओवरलोडेड ट्रक का पूरा भार जब केवल एक छोटे से जैक पर टिकेगा तो पुल को दरकना ही है। आखिर किसी दो स्थानों को जोडते पुल की भी सहने की सीमा होती है; पुल को क्रेक हो ही जाना है। लोगों की अज्ञानता और नासमझी का फायदा उठाकर कर ओवरलोडेड यह ट्रक ठेकेदारों के हित में, पुल तोड़ते हुए इसे नुकसान पहुँचाकर गायब हो जाता है। कहने का आशय यही है कि, ऐसे ठेकेदारों का काम पुल तोड़ना ही है, यह उनके फायदे की चीज है। जिससे उस ओर का उसनका डम्प माल बिक जाए। ऐसा ही तमाम वैचारिक समूहों के ठेकेदार भी करते हैं। वे भी जनता के बीच के पुल को तोड़कर अपनी ओर आकर्षित करने में सफल होते रहते हैं। 
            अब पुल के दोनों ओर सुरक्षा की दृष्टि से "मरम्मत चालू आहे" का बोर्ड लगा कर प्रशासन अवरोध खड़ा कर देता है, मतलब मरम्मत होने तक पुल पर आवाजाही बन्द रहता है। ठेकेदार को इस टूटे पुल का लाभ मिल जाता है और उसका सारा डम्प माल बिक जाता है।..ठेकेदारों की चाँदी!! क्योकि, तब लोग मजबूरी में इन्हीं का माल लेने लगते हैं, पुल तोड़ने वाले ठेकेदारों की चल निकलती है।
          आप समझ लीजिए, जब कोई चीज ठेकेदार बेंचता है तो, कोई न कोई पुल टूटता ही है। बाजार में, किसी विशेष जगह का या कोई विशेष माल ज्यादा बिक रहा हो या किसी चीज की अचानक माँग बढ़ी हो तो, यह कहीं न कहीं किसी पुल को दरकाए जाने की निशानी है।
          हाँ.. उस दिन, उस सिपाही ने एक महत्वपूर्ण बात और बताई थी, यह कि पुल के मरम्मत करने वाले लोग भी, पुल को पुनः चालू करने के लिए ठेकेदारों से सौदेबाजी करने पर उतर आते हैं। ठेकेदार अपना काम निकाल, फिर से पुल पर आवाजाही शुरू करा देते हैं। यह चक्रानुक्रम क्रिया बेहद चालाकी के साथ चलती रहती है, ये आम जन को कुछ भी समझ में आने नहीं देते। मतलब, आज के जमाने में पुल अपने आप नहीं टूटता इन्हें तोड़ा जाता है। पुल को तोड़ने और मरम्मत का काम ऐसे ही चलता रहता है। किसी पुल का टूटना आर्थिक गतिविधि का एक हिस्सा होता है। 
         लेकिन, पुल तोड़ने के इस खेल में हानि आम आदमी का ही होता है। जैसे उस दिन चार घंटे की यात्रा दस घंटे में पूरी हुई थी, वह भी बढ़े हुए किराए के साथ।
         हाँ, पुलों के प्रति हमारी श्रद्धा होती है। रामसेतु की तरह पुल कल्याणकारी भी होते हैं, जो खूबसूरत सभ्यताओं को जन्म देकर किसी राष्ट्र की एकता में अतुलनीय योगदान देते हैं। तमाम तरह के रावणों का संहार पुलों के कारण ही संभव हो पाता है। लेकिन हमें इस तथ्य से सावधान रहना होगा कि जब हम "धार्मिक" होते दिखाई देते हैं तो "रा-मटेरियल" बन जाते हैं, तब कोई ठेकेदार हमें डम्प करने लगता है, फिर यही ठेकेदार किसी पुल को तोड़कर हमारा इस्तेमाल करा देता है।
                     

                                                 -Vinay

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