जम्मू में उस सरकारी खादी-भंडार के दुकानदार ने बताया कि जम्मू-कश्मीर का हैंडीक्राफ्ट्स जब देश के अन्य हिस्सों में बिकने जाता है तो उसपर टैक्स लगता है और वही माल देश के अन्य भागों में डेढ़ से दो गुने मँहगे दाम पर बिकता है। इस स्थिति में कश्मीर का व्यापार प्रभावित होता है। दुकानदार ने धारा तीन सौ सत्तर को इस टैक्स का कारण बताया। दुकानदार ने धारा तीन सौ सत्तर को कश्मीर का अन्य भारतीय राज्यों के साथ होने वाले व्यापार में बाधक के रूप में भी उल्लेख किया। वह भारतीय संविधान में प्राप्त कश्मीर के विशेष दर्जे को हटाए जाने के पक्ष में था। यहाँ एक बात और बताना चाहते हैं वैसे जो यहाँ की यात्रा कर चुके होंगे उन्हें पता ही होगा, वह यह कि यहाँ बीएसएनएल या अन्य कम्पनियों के प्रीपेड सिम रोमिंग पर भी काम नहीं करते, जबकि यही सिम भारत के किसी भी क्षेत्र में जाइए रोमिंग के साथ काम करते रहेंगे। एक तरह से यह हमें गलत प्रतीत हुआ था। कुछ लोगों ने इसके पीछे भी धारा तीन सौ सत्तर का कारण बताया।
ट्रेन में छह-सात कश्मीरियों का एक दल भी मिला, जो कश्मीर से कोलकाता जा रहा था। वैसे तो वे आपस में कश्मीरी में ही बात करते थे लेकिन अन्य लोगों से बातचीत में हिंदी का ही प्रयोग करते थे। एक बात है, वाकई! आज हिन्दी देश के आमजनों को जोड़ने वाली भाषा बन चुकी है। विशाखापट्टनम आन्ध्रप्रदेश का वह सैनिक भी हिन्दी में बखूबी बोल ले रहा था जो विशाखापट्टनम से जम्मू अपने तैनाती स्थल पर जा रहा था। पूँछने पर उसने बताया था कि पाँच वर्षों से वह यहाँ तैनात है तो हिन्दी सीखनी ही है। मतलब कोई चाहे या न चाहे हिन्दी सही मायने में राष्ट्रभाषा का स्थान लेती जा रही है। हाँ तो, उन कश्मीरियों ने भी जब अपने मोबाइल से गाना सुनने शुरू किए तो वह भी हिन्दी फिल्म का ही गीत था। बातों-बातों में उन कश्मीरियों ने बताया कि वे श्रीनगर के लाल चौक के निवासी हैं और व्यापार के सिलसिले में कोलकाता जा रहे हैं, जहाँ उन्हें लगभग छह माह तक रहना है। उनमें, कुछ के साथ उनका परिवार भी था। हालाँकि वे अपने खाने-पीने से लेकर बड़े मस्त अंदाज में अपनी इस यात्रा पर थे।
हमारी उनसे बातचीत बढ़ी। तो उन लोगों ने हमसे श्रीनगर जाने के बारे में पूँछा तो पत्नी ने आतंकवादियों का डर बताया। इसपर उन कश्मीरियों ने कहा ऐसी कोई बात नहीं है। हाँ, डलझील के हाउसबोट जरूर मँहगे हैं। फिर एक बुजुर्ग कश्मीरी ने पहलगाम और बाबा अमरनाथ की और मुबारक छड़ी की चर्चा श्रद्धा भाव से करते हुए मुझसे कहा वहाँ अवश्य जाना चाहिए। पत्नी के वहाँ के सेब के बागानों का जिक्र करने पर उनने हमें एक कश्मीरी सेब खाने के लिए दिया। उनके साथ एक अट्ठारह-बीस वर्ष के नौजवान को देखकर पत्नी ने उसकी पढ़ाई के बारे में पूँछा तो उन लोगों ने उसके हाईस्कूल पढ़े होने और बिजनेस सीखने के लिए साथ चलने की बात कही। हाँ, इन दिनों कश्मीर घाटी में हड़ताल होने के कारण स्कूल बंद होने की टीस बातों-बातों में दबे स्वर में भी उनसे व्यक्त हुआ। ट्रेन से उतरते समय उन लोगों ने बड़े जोशो-खरोश और आत्मीयता के साथ हमसे हाथ भी मिलाए थे।
मैं मानता हूँ, हमारे अपने देश में चाहे कोई किसी धर्म का माननेवाला क्यों न हो, जब हम कहीं आपस में मिलते हैं तो, किसी परिवार के सदस्यों की ही तरह आत्मीयता लिए हुए! देश के आम लोगों के बीच कहीं कोई कटुता नहीं है। मुझे आश्चर्य होता है कैसे कुछ लोग धर्म की आड़ लेकर दिलों में दरार डालने में कामयाब होते दिखाई देते हैं?
एक बात है, यदि इस देश में जीवन की सहजता बनाए रखने दिया जाए तो शायद साम्प्रदायिकता जैसी समस्याएं जन्म ही न लें। मैंने अनुभव किया है कि, यह दिखाने के लिए कि हम आपके साथ हैं किसी अल्पसंख्यक समुदाय को किसी अतिरिक्त सिम्पेथी की भी जरूरत नहीं है। यह दिखावे की प्रवृत्ति भी हम भारतीयों की सहज जीवनशैली को प्रभावित करती है तथा एक तरह की साम्प्रदायिकता को ही जन्म देती है। हम जहाँ मिले एक दूसरे का सम्मान करते हुए आत्मीयता के साथ। मेरा अपना अनुभव है कि, देश में आम लोग साम्प्रदायिक समस्या की चर्चा करने में भी शर्म महसूस करते हैं। वाकई! हमें इसकी चर्चा भी नहीं करनी चाहिए।हम जहाँ मिले एक दूसरे का सम्मान करते हुए आत्मीयता के साथ। समस्याएँ स्वत: हल हो जाएंगी। आखिर, ऐसे ही नहीं हम हजारों साल से साथ रहते आए हैं, हम एक-दूसरे के अंग ही हैं।
एक अन्तिम बात, पूरा भारत एक ही तरह का है, इसमें किसी को कोई सन्देह नहीं होना चाहिए। कोई विभिन्नता समझाए तो तत्काल समझ जाइए कि कोई नेता बनने की कोशिश में है।
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