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रविवार, 2 फ़रवरी 2020

निर्णय लेने की क्षमता!

आज सुबह छह बजकर आठ मिनट हो रहा था जब मन हुआ कि बाहर टहला जाए। दरवाजा खोलकर जैसे ही बाहर आया, देखा, आसमान साफ था और निर्मल चाँदनी छिटकी हुई थी..इस मौसम में इतना साफ आसमान कुछ आश्चर्यजनक प्रतीत हुआ ! लेकिन मौसम है, पल-पल बदलता भी है।
     
        चलते-चलते दिमाग में आया आज पच्चीस दिसंबर है, प्रभु ईशु का जन्मदिन और इस उपलक्ष में छुट्टी भी है। कोई फील्ड पर तैनात सरकारी अधिकारी हो, उसके लिए छुट्टी !! ना बाबा ना, छुट्टी मनाने के लिए भी छुट्टी लेनी होती है जो हमारे वश में नहीं, हम तो सरकार के बंधक हैं! खैर सेत-मेत में बंधक भी नहीं बने हैं, इसकी पूरी कीमत वसूलते हैं।
     
        एक बात है, इस जहां में किसी व्यक्ति की कोई उपलब्धि नहीं होती, सिवाय उसके निर्णय लेने की क्षमता के ! वास्तव में व्यक्ति अपने लिए निर्णय ले सकने की परिस्थिति निर्मित करता है। इस क्षमता के अनुसार ही समाज में उसका पायदान और उसकी प्रकृति निर्धारित होती है। और वहीं, इस क्षमता में ह्रास के कारण लोग डिप्रेशन में भी आ जाते हैं।


        लौटते हुए बैलगाड़ी में जुते बैलों को देखा, गाड़ीवान इन्हें हाँके चला जा रहा था।
       
          चाय पीते हुए सुबहचर्या में आपसे हो रही मेरी गुफ्तगू पर ध्यान चला गया..सच तो यह है कि "भक्ति" से हमारे निर्णय लेने की क्षमता में ह्रास होता है..! तो लीजिए, इस गुफ्तगू का आठवां अंश...


          ..... हो सकता है इस्लाम में "समानता" का तत्व इसके अनुयायियों के बीच सहजता का कारण रहा हो, जो जाति-भेद और ऊँच-नीच में बटे शेष भारतीय समाज के लिए आकर्षक जान पड़ा हो। लेकिन हिंदू हों या मुस्लिम या फिर कोई अन्य मतावलंबी, "भक्ति" उनकी अतार्किक मान्यताओं को भी सहेजती आ रही है। इन धार्मिकों ने अपने धर्म की 'निगरानी' न कर स्वयं को 'धर्म' के हवाले कर दिया, अर्थात 'धर्म' ने व्यक्ति को नियंत्रित किया। कुछ लोग इसे 'धर्म' की उपलब्धि के रूप में देखते हैं, लेकिन इस उपलब्धि के चक्कर में व्यक्ति की स्वतंत्रता बाधित हुई। इस प्रवृत्ति के कारण जहाँ इस्लाम में उसकी "समानता" की देन खंडित हुई, तो वहीं हिंदू विचारधारा जाति-भेद और ऊँच-नीच के दंश से पीड़ित हुई।
           
          यहाँ "भक्ति" का आशय केवल 'उपासना पद्धतियों' से ही नहीं, बल्कि धर्म में निहित "नैतिक-चेतना" से इतर उन सभी विचारों, कार्य-व्यवहारों से है, जो धर्म के नाम पर व्यवहृत होते हैं और जिनका समाज के लिए कोई मूल्य नहीं होता।...




#चलते_चलते
       
      निर्णय लेने की क्षमता न होनेे से, इसका खामियाजा बैलगाड़ी के बैल की तरह भुगतना पड़ता है।


#सुबहचर्या
(25.12.18)

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