आज अलसुबह उठा, तो कानों में चिड़ियों की चहचहाहट गूँज रही थी। इस आवाज को सुनकर अच्छा लगता है, सुबह-सुबह आप भी यदि इन आवाजों को सुनेंगे तो, आप को भी अच्छा ही लगेगा। चिड़ियों की बात चली तो उस दिन पत्नी द्वारा बताई बात याद आ गई। उन्होंने बताया था कि एक दिन एक गौरैया उनसे खूब लड़ी थी। लेकिन गौरैया के लड़ने की बात मेरे समझ में नहीं आई। सोच रहा था कि भला एक गौरैया पक्षी कैसे और क्योंकर उनसे लड़ेगी?
असल में पूरी बात यह थी, पिछले वर्ष हमारे घर के पोर्टिको की छत में लगी सीलिंग फैन वाली डिब्बी के अधखुली दरारों में गौरैया ने कई बार घोंसले बनाये और अंडे भी दिए, लेकिन अकसर अंडे लुढ़ककर फर्श पर गिर पड़ते और नष्ट हो जाते। इसी तरह एकाध-बार अंडे से निकले नवजात बच्चे भी गिर कर मर गए थे। एक दिन गौरैया के दो बच्चे छत की उस डिब्बी से निकल कर गिर पड़़े तो पत्नी ने उन्हें तीन दिन तक सुरक्षित रखा था, और वे तीन दिन बाद उड़ने लायक हुए थे। इस दौरान गौरैया आकर उन बच्चों को लगातार चुगाती रही थी। होता यूँ था कि सुबह होते ही गौरैया के उन बच्चों को कमरे से बाहर लाकर बारामदे में रखा जाता और गौरैया आकर उन्हें चुगाने लगती। अगर गौरैया के बच्चों को बाहर रखने में देर होती तो, गौरैया चीं-चीं करते हुए आसमान सिर पर उठा लेती। यह क्रम लगाताय तीन दिन तक चला था, और फिर गौरैया के वे बच्चे उड़ गए थे।
इधर हुआ यूँ कि गौरैया के घोसला के लिए मुफीद जगह न मानकर पत्नी ने छत में सीलिंग फैन वाली डिब्बी को ढक्कन से बंद करा दिया। जिससे गौरैया उसमें घोंसला नहीं लगा पा रही थी और इधर-उधर उड़ते हुए बार-बार सीलिंग फैन वाली उन्हीं डिब्बियों के आसपास बैठकर घोंसला बनाने का स्थान खोजती रहती। पत्नी ने बताया कि संयोग से उस दिन सुबह ड्राइंगरुम में बैठकर वे अखबार पढ़ रहीं थीं और दरवाजा खुला हुआ था। अचानक एक गौरैया कमरे के अंदर आकर खुले दरवाजे के पल्ले पर बैठ गई थी और उनकी ओर मुखातिब होकर लगातार तीन-चार मिनट तक चीं-चीं करती रही..!!
पत्नी ने बताया कि, शायद गौरैया घोंसला न बना पाने से परेशान थी, और इस कारण उनसे झगड़ते हुए अपनी शिकायत दर्ज करा रही थी। पत्नी ने गौरैयों का घोंसला मंगवा कर वहीं टंगवाया। अभी पिछले दिन उन्होंने बताया कि उस घोंसले में गौरैया के बच्चे बड़े हो रहे हैं..वे खूब चीं-चीं करते हैं।
मैं पत्नी की संवेदनशीलता के बारे में समझता हूँ, जो गौरैया की भाषा को भी समझ लेती है। छोटे बच्चे उन्हें देखकर खिलखिला उठते हैं। उन दिनों गांव में छोटे बच्चे अकसर अपने नन्हें-नन्हें कदमों से चलकर उनके पास आते और उनके गले में बाहें डाल देते थे। एक दिन मैंने इसका कारण पूंछा, तो पत्नी ने कहा, बच्चे मन के सच्चे होते हैं और वे किसी के मन को पकड़ लेते हैं। सच में, मन की सच्चाई ही किसी को भी संवेदनशील बनाती है, अब वह चाहे छोटा बच्चा हो या फिर बड़ा..!
वाकई, सच्चे मन वाला ही संवेदनशील होता है, जो मन के सच्चे नहीं वे संवेदनशील भी नहीं।
मैं समझ गया था कि, उस दिन गौरैया नेे पत्नी से जरूर लड़ाई किया होगा।
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