लोकप्रिय पोस्ट

गुरुवार, 26 नवंबर 2015

भाई लोग थोड़ा बस में भी सफर कर लिया करिए...

       अभी मैं बस में सफर कर रहा था.. मन में तरह-तरह के खयाल आ रहे थे..एक तो यही कि अभी तक असहिष्णुता ही मन पर छाई हुई थी...आमिर जी की बातों पर टिप्पणी क्या कर दिया मन में वही बातें उमड़-घुमड़ रही थी कि नाहक ही इस पचड़े में कूद गया...क्या कहें गलती तो उन्होंने भी कर दी थी न देश छोड़कर जाने की बात कह कर..! उनकी देश छोड़कर जाने की धमकी से थोड़ी देर के लिए सही अकेलेपन का हमें भान होने लगा था...भावनाएँ नहीं सँभली और बात मुँह छोड़कर निकल गई.. आखिर आमिर से जो प्यार करते हैं न!

         बस चली जा रही थी.. इन्हीं बातों में खोए हुए से बस की सीटों पर बैठे लोगों पर नजर घुमा दी.. देखा झक सफेद डाढ़ी और गोल टोपी वाले चचाजान बगल में ही बैठे हुए पंडित जी जैसे शख्स से बतियाए जा रहे थे.. हाँ मैंने देखा इन पंडित जी की लम्बी चुनैया लहरा-लहरा जैसे चचाजान की टोपी से भरपूर गुफ्तगू कर लेना चाहती हो... और आगे अपने दाहिने वाली सीट पर नजर डाली तो देखा एक पगड़ीधारी नौजवान किसी बिन पगड़ी वाले नौजवान से कोई डिस्कशन करते चले जा रहा था.. उनके हाथों में पकड़ी पत्रिका देखकर लगा जैसे किसी प्रतियोगी परीक्षा के सम्बन्ध में चर्चा कर रहे हों और यह चर्चा बड़ी देर से चल रही थी... तभी किसी छोटे से कस्बे में बस रूकी एक-दो लोग बस से उतरे.. मैंने देखा यहाँ दो बुर्काधारी महिलाएं बस में चढीं.. और सीट तलाशते- तलाशते वे दोनों उस सीट पर जाकर बैठ गयीं जिसपर एक साड़ी वाली महिला पहले से बैठी थी, उसने भी उन दोनों के लिए थोड़ा खिसकते हुए जगह बनाया...इधर मैं अभी भी अपने असहिष्णुता सम्बन्धी विचारों के ही नशे में था और चलती बस में भी असहिष्णुता ही खोज रहा था लेकिन यहाँ इसे नहीं मिलना था तो नहीं मिलना था..!

         आखिरकार मैं मन मसोस अपना सा मुँह लेकर रह गया..और इसी बेचैनी में मोबाइल आन किया और वह भी फेसबुक पर चला गया.. घर में होता तो इस फेसबुक की दुनियाँ में झाँक ही न पाता.. कारण आप समझ ही गए होंगे कि ऐसा क्यों.. असल में फेसबुक की आभासी दुनियाँ में मुझे खोए देख घरवाले बर्दाश्त ही नहीं कर पाते और तत्काल वास्तविक दुनिया में लौटना पड़ जाता है..

         खैर अब फेसबुक की बात चली तो मुझे एक बात याद आ गई.. इसपर मैंने अपने मित्र सूची को कुछ-कुछ इसी बस के सफर जैसा बना रखा है.. मतलब ऐसे ही सभी तरह के विचारों वाले बस के सहयात्रियों जैसा..! हाँ यह एक लघु भारत जैसा बना रहे और सभी तरह के विचारों वाले व्यक्तियों को इस मित्र सूची में शामिल कर लेने के प्रयास में रहता हूँ..!

        किसी का विचार पसंद आए या न आए लाइक मारें या न मारें लेकिन न जाने क्यों साथ में रहना पसंद आता है.. जब किसी मित्र के नापसंदगी वाले विचार को कई दिन देखे हो जाता है तो मन ही मन में यकायक डर जाता हूँ कि कहीं भाई ने मेरी किसी बात पर नाराज होकर मुझे अनफ्रेंड तो नहीं कर दिया..? फिर उन्हें अपनी मित्र सूची में खोज कर तसल्ली करना पड़ता है कि नहीं अभी वे मेरी मित्र सूची में हैं..यहाँ एक बात और है.. प्रतिदिन आभासी ही सही फेसबुक पर उनके विचारों से रूबरू होते-होते उनके प्रति भी एक आकर्षण सा या कहें कि आभासी ही सही इन मित्रों के प्रति एक लगाव सा जन्म ले लेता है.. यही साथ रहने का प्रेम आभासी मित्रों के साथ मुझे बाँधे भी रहता है..

         एक बात और... यदि किसी का कोई विचार मुझे पसंद नहीं भी आया तो भी मैं उस मित्र के मन को टटोलने एवं उनके ऐसे विचारों की उत्पत्ति के पीछे के कारण को समझने का प्रयास करने लगता हूँ...

         खैर.. मैंने कहा न कि इस बस में मुझे असहिष्णुता नजर नहीं आई.. लेकिन फेसबुक पर तमाम लोगों के स्टेटस खँगालते-खँगालते कई तरह की बातें दिखाई दी.. जो असहिष्णुता मुझे खोजे नहीं मिली वह सब कुछ मुझे इन फेसबुक स्टेटस में मिल गयी.. कहीं कोई महासभा किसी को फतवा जारी करते हुए दिखाई दिया तो कोई किसी का बाहर जाने का टिकटई बुक कराए दे रहा था.. तो कोई अपने ही स्टेटस पर गाली खाता दिखाई दिया.. हाँ वे महोदय भी कम नहीं...वे किसी को तीव्र व्यंग्यात्मक लहजे में उसे ऐसे "भक्त-भक्त" कहे जा रहे थे कि कोई इसे सुन गाली से कम न माने... खैर थोड़ी ही देर में इस आभासी दुनियाँ में मुझे आभास हुआ कि कम से कम यहाँ कोई किसी को समझने को तैयार नहीं है.. सभी एक दूसरे पर पिले पड़े हैं..!

       और पूरी की पूरी असहिष्णुता यहाँ आकर मुझे मिल गई.. आखिर यह मिले क्यों न..यहाँ किसी को कोई रोक-टोक तो है नहीं..किसी के प्रति कोई जिम्मेदारी का भाव भी नहीं बस..! है तो सब आभासी ही..! यहाँ कौन असलियत लेकर बैठा है.. दबा छुपा मन का भड़ास निकालने का अच्छा मौका मिल जाता है..

        अब भाई असली बात पर आते हैं.. मेरी तो साढ़े चार सौ की ही मित्र सूची है तब ये हाल है..कि..असहिष्णुता से नमूदार होने में मुझे देर नहीं लगा.. लेकिन आमिर भाई के तो लाखों मित्र और फॉलोअर होंगे और यदि वे अपना फेसबुक स्टेटस खँगालते होंगे तो उन्हें मारे क (ढेर सारी) असहिष्णुता मिल जाती होगी.. शायद इसी से घबराकर उन्होंने देश में असहिष्णुता बढ़ने की बात कह दी होगी.. अब वे हमारी तरह बस में सफर तो करते नहीं होंगे नहीं तो ऐसा न कहते क्योंकि वहाँ उन्हें यह असहिष्णुता मिलती ही न..!

         एक बात और है हम छोटे-मोटे लोग किसी को अनफ्रेंड करके ही इस असहिष्णुता से मुक्त हो लेते हैं और केवल अपने पसंदीदा विचारवानों को ही चुनते हैं तथा अपना-अपना गोला ले अपने-अपने विचारों की मौज मनाते हैं.. लेकिन इतने बड़े महानायक कितनों को अनफ्रेंड करते? सो उन्होंने देश ही छोड़ने की बात कह दी..!

        भाई आमिर खान जी..! अब मैं आप की पीड़ा समझ गया.. नाहक ही हम आप पर गुस्सा हुए! आप हमारे प्रिय हो चाहे खूब इन असहिष्णुओं को गाली दीजिए लेकिन देश छोड़कर जाने की बात मत करिए फिर तो हम अकेले हो जाएंगे..!

         हाँ एक बात वह जो धीरे से आपके कान में कहना चाहता हूँ वह यह कि छोड़ना हो तो फेसबुक जैसे सोशल मीडिया को ही छोड़ दीजिए या फिर हमारी तरह थोड़ा बस में भी सफर कर लिया करिए फिर तो आपको यह असहिष्णुता कहीं पानी भरते हुए मिलेगी..
       
         आखिर यह भारत.. भारत ऐसे ही नहीं है हम अपनी लाख कमियों के बाद भी आमिर, शाहरूख, सलमान जैसे ऐक्टर पैदा करने का माद्दा रखते हैं..! और यह किसी का किसी पर एहसान भी नहीं..


              मेरा भी बस-अड्डा आ गया और मैं अब बस से उतर गया था...
                                                               -विनय 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें