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शनिवार, 14 नवंबर 2015

'पेनड्राइव' बना आदमी...

'पेनड्राइव' बना आदमी...
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          "मैं कुर्सी समेत हवा में उड़ रहा था...जब चाहता तो जमीन पर उतर आता और जब उड़ने की सोचता तो फिर हवा में उड़ने लगता...ऐसे ही उड़कर जब अपने लोगों के पास पहुँचा तो मुझे उड़ते देख वे आश्चर्य में पड़ गए...तब मैंने उन्हें बताया कि यह मेरी इच्छाशक्ति का परिणाम है...लेकिन कहीं यह मेरा स्वप्न तो नहीं...स्वप्न में ही सोचा...!!" आँख खुली तो मैंने पाया कि..अरे मैं तो स्वप्न देख रहा था..!

             सबेरे सुपुत्र महोदय से इसकी चर्चा की तो वे हालीवुड की कोई फिल्म शायद "लूसी" देख रहे थे.. फिल्म देखते-देखते ही उन्होंने बताया कि "आदमी एक समय में अपने दिमाग का मात्र दस प्रतिशत ही इस्तेमाल करता है..आइंस्टीन ने ही केवल बीस प्रतिशत का इस्तेमाल किया था...अगर आदमी अपने दिमाग का एक साथ सौ प्रतिशत इस्तेमाल कर ले तो कुछ भी संभव हो सकता है...अपने दिमाग की क्षमता का वह बारी-बारी ही प्रयोग कर पाता है...आपकी स्वप्न में उड़ने की बात भी सत्य में संभव हो सकता है..."

           मैंने देखा उस फिल्म की हिरोइन का दिमाग सौ प्रतिशत इस्तेमाल कर लेने के स्तर तक पहुँच गया...और तब  यकायक एक विस्फोट हुआ...फिर वह 'पेनड्राइव' में बदल गई....

           मैंने पुत्र महोदय से पूँछा, "यह क्या हुआ.." उन्होंने बताया अब यह 'डाटा' में बदल चुकी है...हालांकि मैं विशेष कुछ समझा नहीं...

           लेकिन मैंने सोचा दिमाग का सौ प्रतिशत एक साथ प्रयोग करना केवल ज्ञान में ही बदल जाना होता है...और ज्ञान में अनंत संभावनाएं होती है...!

           भगवान् न करे हम अपने दिमाग का सौ प्रतिशत प्रयोग एक साथ कर लें तब तो पता नहीं क्या होगा..? जब दस प्रतिशत की यह हालत आज है..कि हम अपनी सोच और कृत्य के पक्ष में सारे तर्क प्रस्तुत कर देते हैं...कि कौन गलत...कौन सही यह कुछ समझ में ही नहीं आता..! तब तो पता नहीं क्या होगा...तब तो अनंत बुद्धि का अनंत वितंडावाद खड़ा हो जाएगा...और तब आदमी पेनड्राइव बना इस सी.पी.यू. से उस सी.पी.यू. तक मारा मारा फिरेगा...!            

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