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गुरुवार, 4 दिसंबर 2014

उस दिन....!

            उस दिन..! मैं शहर से गाँव जा रहा था..माँ को उनके घुटनों के आपरेशन के बाद गाँव छोड़ना था..कार की पिछली सीट पर पत्नी और अगली सीट पर इंटर प्रथम में पढ़ रहे पुत्र श्रेयांश के साथ मैं स्वयं कार ड्राइव कर रहा था...करीब आधे घंटे की ड्राइव फोर-लेन पर मैं कर चुका था...मेरे आगे-आगे एक ट्रक मेरे बाईं लेन पर चला जा रहा था...मेरी गति स्वाभाविक रूप से ट्रक से अधिक थी लगभग 80 किमी/घंटे.. मुझे उससे पास लेकर आगे बढ़ना था..मैंने सड़क के दाएँ लेन से यानि अपनी साइड से ट्रक से आगे निकलने का प्रयास किया..इस प्रयास में मैं ट्रक से कुछ ही मीटर की दूरी पर था कि अकस्मात् ट्रक ड्राइवर ने अपने ट्रक को दाएँ लेन की ओर यानि मेरे लेन पर मोड़ दिया...टक्कर की आशंका से मैं भयभीत हुआ लेकिन बिना समय गँवाए मेरे पैर ने ब्रेक को दबा दिया सड़क पर कार के पहियों के घिसटने की तेज आवाज हुई..मेरी कार कुछ मीटर घिसटने के बाद ट्रक से कुछ ही इंच की दूरी पर रुक गयी मैं ट्रक ड्राइवर से कोई प्रतिक्रिया करता तब तक ट्रक सड़क के डिवाइडर के कट से दूसरी ओर निकल चुकी थी..ट्रक-ड्राइवर के प्रति मन में गुस्सा था..लेकिन मैं भी समय बरबाद न करने की गरज से कार को आगे बढ़ा दिया..पुत्र श्रेयांश ने मुझसे कहा कि गाड़ी रोककर ट्रक ड्राइवर से उसकी गलती के लिए उसे डाट खिलानी चाहिए थी..खैर मैं कुछ बोला नहीं..फिर श्रेयांश बोले “मैंने तो सोच लिया था कि कम से कम कार में डेंट तो पड़ ही जाएगा...” मैं कुछ बोलता तब तक श्रीमती जी मेरी आलोचना करते हुए बोल उठी, “अरे..ये ऐसे ही चलाते हैं...” इस पर मेरे सुपुत्र जी ने कहा, “नहीं इसमें पापा की गलती नहीं है...” अब मैंने अपनी प्रतिक्रिया दी, “वैसे भाई जब मैं गाड़ी चलता हूँ तो अपनी गति के तुलनात्मक इस बात का ध्यान रखता हूँ कि यदि कोई आकस्मात सामने आ जाए तो अपनी गाड़ी को नियंत्रित कर सकूँ..” अब मेरी माँ बोली “कम से कम ड्राइवर को डाँटना चाहिए था...” मैं भी यही सोचने लगा |
         अब मैं लगभग पंद्रह मिनट की ड्राइविंग और कर चुका था सब कुछ सामान्य था पिछली घटना का कोई तनाव नहीं था...एक पुल से मैं गुजर रहा था..पुल को पार करते समय मेरी निगाह हाईवे के विपरीत ओर सड़क निर्माण संबंधी किसी हलचल पर पड़ी मैं उस ओर देखने लगा जैसे मैं भूल गया कि मैं गाड़ी चला रहा था आकस्मात श्रेयांश की आवाज मेरे कानों में पड़ी, “अरे..अरे..हाँ..हाँ..” मेरी तन्द्रा भंग हुई..सामने देखा...! अरे बाप रे...! ठीक सामने एक इनोवा कार मेरी ओर बढ़ी आ रही थी..दिन में ही उसकी जलती हेड लाइटें आँखों को चौंधिया रही थी ! एक दम सीधी टक्कर की संभावना से मैं सिहर सा गया.. प्रत्युत्पन्नमति वश स्टेयरिंग एक ओर घूम गई पलक झपकते इनोवा मेरे बगल से निकल चुकी थी...! आगे मेरी नजर डाइवर्जन पर पड़ी...गाड़ियों को पुल पर चल रहे कार्य की वजह से विपरीत लेन से निकाला जा रहा था इसी क्रम में वह इनोवा भी मेरे सामने से आ रही थी...मेरे पुत्र ने कहा, “आखें बंद कर गाड़ी क्यों चला रहे हो मैं टक्कर को अवश्यम्भावी समझ तनाव में आ गया..” मैंने अपने पुत्र की ओर देखा..कुछ बोल नहीं पाया...बस इतना ही बोला, “हाँ मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई थी...” बेटे ने कहा, “इस बार आपकी पूरी गलती थी...भले ही इनोवा हमारे लेन पर थी लेकिन यह डाइवर्जन के कारण था उसका कोई दोष नहीं माना जाता..” मैंने सहमति से सिर हिलाई..तभी माँ बोल पड़ी, “अरे..तू अईसे हईयाई हया एक ड्राइवर तो राखि नाहीं सकता..” मैं कुछ नहीं बोला अपनी गलतियों पर ही मनन करता रहा...
       कुछ देर मौन ही गाड़ी चलता रहा...मैंने बेटे से कहा, “ईश्वर ने हम लोगों को बचा दिया...” वह इतना बोला “आँख खोल कर चलाया करिए..” मैंने कहा “इस तरह की यह पहली गलती थी..शायद ईश्वर ने इसी कारण बचा दिया...” मैंने ईश्वर को धन्यवाद दिया...! एक बात है...कोई ईश्वर को माने या न माने यह एक निजी व्यक्तिगत मामला हो सकता है लेकिन एक नैतिक सत्ता अवश्य है जिससे यह सारा ब्रह्माण्ड परिचालित है..वह “ऋत” नामक नैतिक सत्ता इस ब्रह्माण्ड में व्याप्त होकर इसे परिचालित करती है..कहने का आशय यह भी हैं कि यदि हम दुर्घटनाग्रस्त हुए होते तो ईश्वर या ऋत नामक सत्ता न होती ऐसा नहीं....वह तब भी होती...क्योंकि मैंने अपने बेटे से कहा कि हम यदि बार-बार ऐसी गलती करेंगे तो नहीं बच पाएँगे..खैर जो भी हो...!
     
       कुछ देर और कार-ड्राइव करने के बाद मैंने कार को ग्रामीण इलाके में सड़क के किनारे की एक साफ़-सुथरी चाय की दुकान पर रोकी चायवाले को बढ़िया चाय बनाने के लिए कह दिया और उसकी चाय बनने का इन्तजार करने लगा...मैंने देखा उसी समय तीन-चार लोग किसी गाड़ी से उतरकर चायवाले की दुकान पर आये चायवाले के यहाँ का लड़का तीन-चार कुर्सियाँ खींच कर उन लोगों के लिए लगा दिया वे सभी उस पर बैठ चुके थे...इस बीच दो-चार लोग और उनको घेर कर खड़े हो चुके थे...हम लोग कार पर अपनी-अपनी सीटों पर बैठे हुए ही चाय का इन्तजार कर रहे थे...तभी मेरा ध्यान उन नेता टाइप व्यक्ति के साथ आये एक लड़के पर पड़ी...सत्रह-अट्ठारह साल का वह लड़का हाथ में एक गन नुमा बंदूक लिए हुए था...मैंने उसकी उम्र और उसके हाथ के गन पर गौर किया...मैंने बेटे श्रेयांश से कहा, “इसको देखो..” उसकी ओर देखते हुए बेटे ने हँसते हुए कहा, “अरे इसमें कौन सी नई बात है आजकल यह ट्रेंड आम हैं...ऐसे लोग सत्रह-अट्ठारह वर्ष के लड़कों के हाथ में गन देकर उसे आपने साथ ले चलते हैं...और स्वयं सफ़ेद शर्ट और पायजामें में नेता जैसे दिखाई देने का प्रयास करते है..हाँ इस तरह के लोग चेहरे से अनपढ़ जैसे लगते है...ये लोग पुराने हो चुके स्कोर्पियो या फिर टाटा सफारी जैसे वाहन से चलते है...उस पर किसी पार्टी का झंडा भी लगा होता है..इस तरह ये लोग भौकाल मारते है...” सुनकर मैंने पीछे मुड़कर उनकी गाड़ी को देखा वास्तव में वह एक पुरानी स्कार्पियो थी...और किसी पार्टी का उस पर झंडा भी लगा था..बेटे के इस ज्ञान पर मैं मुस्कुराने लगा...
      ...फिर मैंने बेटे से उसके गन के बारे में चर्चा शुरू कर दी..मैंने पूँछा, “यह गन कैसी है...” बेटे ने कहा, “ऐसी गनें सत्रहवीं-अट्ठारवीं शताब्दी में अमेरिका में प्रचलित थी..वहाँ के लोग ऐसी गन से स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ते थे...” मुझे बेटे से हो रही इस वार्ता में आनंद आ रहा था...मैंने पूँछा, “पता नहीं यह लड़का इसे चला पायेगा या नहीं..” बेटे ने कहा “यह केवल भौकाल के लिए है इस गन को लोड करने में ही इसे एक घंटे लग जायेंगे...और इसका चलना भी मुश्किल होगा..शायद चल ही न पाए..” मैं समझ गया सुपुत्र महोदय के ज्ञान का श्रोत हिस्ट्री चैनल, डिस्कवरी चैनल और उनका कम्प्यूटर गेम के प्रति रुझान था...हालाँकि नेताओं के ट्रेंड के बारे में बेटे का अनुभव मुझे मौलिक लगा...खैर अब तक हम लोग चाय पी चुके थे...जैसे ही मैंने गाड़ी स्टार्ट किया बेटे ने कहा, “आँखे खोल कर गाड़ी चलाइयेगा...” मैंने उनकी ओर देखा और बोला “वहाँ भी ट्रक से पास लेते समय भले ही वह अपनी लेन में उस समय था और मैं अपनी लेन में..! फिर भी मुझे हार्न बजाना चाहिए था...” यह सोचकर मौन हो गया कि अब ऐसी गलती नहीं होने दूँगा...
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