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शनिवार, 23 जुलाई 2016

"बाबू जी, बताने पर मुझे क्या मिलेगा?"

          फेसबुक, ट्विटर जैसे तमाम सोशल मीडिया और ऊपर से इस पर सक्रियता की चाहत एकदम चौबीस घंटे चलने वाले किसी समाचार चैनल की तरह! अब भाई, मन भी तो दगा दे जाता है, वह यह कि, कोई फड़कता हुआ नया विचार हर समय तो मन में आता नहीं कि ब्रेकिंग न्यूज की तरह फेसबुक या सोशल मीडिया पर झट से पोस्ट कर दें। इसीलिए फेसबुक के टाइमलाईन पर लिखा "आपके मन में क्या है" जैसे मन को चिढ़ाता हुआ दिखाई देता है। खैर... मन तो मन...फेसबुक पर भी कुछ न कुछ पोस्ट करते ही रहना है सो मैंने अपने मन से शिकायत के लहजे में कहा, "क्यों बे! तुझे क्या हो गया है? एक वे समाचार चैनल हैं जो चौबीसों घंटे चलते रहते हैं और एक तू है कि चौबीस घंटे में कोई ढंग की बात भी नहीं सोच पाता..! मेरी फेसबुक की टाइमलाईन खाली की खाली निकल जाती है? पता नहीं तू कैसे अपने को सबसे तेज समझता है? जरूर युधिष्ठिर ने यक्ष को धता बताया होगा !"
           मन को मेरा हड़काना था कि यह मन भी मेरे साथ चिबिल्लई पर उतर आया और जैसे मुझसे कह उठा हो, "तुम तो यहाँ इस मँहगे ए सी अस्पताल में अपना दाँत दिखाने आए हो, जरा उस अादमी से जाकर पूँछ लो जिसके तो दाँत ही नहीं बचे हैं और जो बेचारा इस चिलचिलाती गर्मी में सड़क पर खड़ा न जाने क्या तलाश रहा है? जाओ उससे पूँछ-ताछ करो खाली-पीली तुम्हारी फेसबुक टाइमलाईन के लिए कुछ न कुछ मिल जाएगा..!"
          मैंने अस्पताल के शीशे के पार झाँका, वाकई! एक व्यक्ति इस चिलचिलाती गर्मी में खड़े-खड़े न जाने कहाँ खोया था। मन की बात सुन मैं झटपट उसके पास पहुँच गया अपने फेसबुक टाइमलाईन पर ब्रेकिंग न्यूज देने। मैं उससे कुछ बोलूँ कि इसके पहले ही मुझे देखते ही वह बोल उठा, "हाँ.. बाबू जी कहाँ चलना है..वैसे बहुत देर हो चुका है यहाँ खड़े-खड़े, और हाँ जो आप उचित समझें दे दीजिएगा..." एक क्षण मेरा सिर चकरा गया लेकिन फिर अगले पल संयत होते हुए बोला, "नहीं मुझे तुमसे कोई काम नहीं कराना है, मैं तो ऐसे ही तुमसे बात करने अा गया...कि...यहाँ खड़े-खड़े पसीने से तर-बतर होने पर तुम्हें कैसा प्रतीत हो रहा है.. आज काम नहीं मिला तो क्या करोगे? और हाँ..तुम्हारे ये जो दाँत टूटे हुए हैं इसे सामने इस अस्पताल में जा ठीक नहीं करा पा रहे हो..? इन बातों को सोच कर कैसा फील हो रहा है.. जरा मुझे बताओ" 
             "बाबू जी, बताने पर मुझे क्या मिलेगा?" एक मझी सी आवाज में वह आदमी बोला। इसपर मैंने जेब से मोबाईल निकाला और उसके फोटो लेने का अन्दाज बनाते हुए कहा, "देखो! तुम्हारी इस फोटो के साथ तुम्हारी बात अपने फेसबुक पर छापेंगे.." मेरी बात सुन वह आदमी बिना देरी किए बोल उठा, "वाह बाबूजी वाह! लेकिन अबकी बार मैं धोखा नहीं खाऊँगा.. आप जैसे NGO वाले होते बहुत चालाक हो..ऐसे ही पिछली बार मेरे गाँव में ये NGO वाले आए थे और खूब हमारी फोटो खींची... कहे थे कि टी वी पर आएगा.. सरकार डर कर घर-दुवार तो बनवा ही देगी..गरीबी दूर हो जाएगी..और हाँ, बाबूजी टी वी पर हमरे गाँव का नाम तो खूब हुआ! लेकिन हमें का मिला? हाँ गाँव के चौधरी के यहाँ फरचूनर जरूर खड़ी हो गई.. अऊर ऊ.. NGO वाले, फिर वहीं चौधरी के यहाँ हमका सब को भूलि के रसगुल्ला मलाई छानै लाग रहे..का समझे? हाँ, बाबूजी.. अब पहले दिनभर की मजूरी हमको दै दो फिर हमार इंटरभिउ लेउ..." 

           अभी इस आदमी की बात पूरी ही हुई थी कि मुझे लगा मेरा नम्बर आ गया होगा और मैं भागकर फिर से अस्पताल के अन्दर चला गया। वहाँ सोफे पर बैठते हुए मैं मन ही मन अपने मन को डाँटा, "क्यों बे मन, तू मुझे इतना बेवकूफ बनाता है? अभी तो गए थे मेरे तीन सौ रूपए!" तभी मन ने जैसे मुझसे कहा हो, "तो का समझते हो, ये समाचार चैनल चौबीस घंटे मुफ्त में चलते हैं..?" मन की डाट सुनकर फेसबुक पर छाने का मेरा भूत शान्त हो गया था और मन हुआ कि इस पाक महीने में ढाका में हुई धर्म-क्रान्ति पर ही कुछ लिख दूँ.. लेकिन मारे सेकुलरों के डर के कुछ लिख नहीं पाया..! मैं फेसबुक पर अपने खाली टाइमलाईन को देखे जा रहा था.. हाँ..अब जाकर मेरा नाम पुकारा गया था। 

                                                                                                                               ----मैं यानी विनय।
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