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शनिवार, 23 जुलाई 2016

अपने देश का टूल-किट ही चोरी हो जाता

            उस दिन रात लगभग एक बजे कानपुर बस अड्डे पर पहुँचा तो मन ही मन यही सोच रहा था कि महोबा जाने वाली बस चली गई होगी क्योंकि इसे अकसर मैंने रात के साढ़े बारह बजे चलते देखा है। लेकिन उसी बस को अपने स्थान पर अब तक खड़े देख मन चहक उठा कि चलो अगली बस की प्रतीक्षा तो नहीं करनी पड़ेगी जो शायद दो ढाई बजे के आसपास जाती है। झटपट मैं बस पर चढ़ गया बस बेतरतीब से यात्रियों से लगभग भर चुकी थी। मैंने मरियल सी श्रमिक जैसी एक औरत को एक सीट पर बैठे देखा और उसके तीन बच्चे जो मुझे एक-डेढ़ साल के आसपास प्रतीत हुए उसी सीट पर बेतरतीब ढंग से लेटे हुए थे, इन बच्चों की उम्र से मैं मन ही मन इनके जुड़वा होने का अनुमान लगाने लगा और पता नहीं क्यों मुझे ये तीनों बच्चे उस औरत का दुर्भाग्य बन नजर आए! इसके बाद दूसरी सीट पर बैठे शख्स से उसके बगल की खाली सीट से मुतमईन हो उस पर अपनी अटैची रख बस के चलने में देरी का अहसान कर मैं नीचे उतर आया क्योंकि बाहर की हवा में गर्मी से कुछ राहत मिलती दिखी।
           बस के नीचे तीन-चार लोग इकट्ठे हो बतिया रहे थे उन्हीं में से एक की ओर मुखातिब होते हुए मैंने पूँछा, "भाई, बस कब चलेगी?" उसने उत्तर में कहा, "अरे, इसे तो एक घंटा पहले ही चले जाना चाहिए था लेकिन पंचर होने के कारण अभी चली नहीं.." यह सुन जैसे मुझे कोई फर्क ही न पड़ा हो और मैं वहीं पास में ही जाकर लैम्प-पोस्ट के चबूतरे के किनारे की धूल झाड़ते हुए उस पर बैठ गया। इस चबूतरे पर दो-तीन लोग पहले से ही सोए हुए थे। बैठने के कुछ क्षणों बाद ही हमें किसी के फोन की घंटी बजती सुनाई पड़ी पूरी काल आने के बाद रिंग टोन बंद हुई..।इसके बाद रह-रहकर उसकी रिंगटोन बजती रही.. रिंगटोन सुन कर मैं कुछ बेचैन हो उठा मुड़ कर देखा तो वह व्यक्ति बनियान और पैंट पहने चबूतरे के नंगे फर्श पर सुख की नींद में अभी भी खोया था और उसके पैंट की जेब से मोबाईल की स्क्रीन रोशनी फेंक रही थी। मैंने सोचा इसके घर वाले होंगे जो इतनी गई रात में फोन कर पूँछना चाहते होंगे कि पहुँचे या नहीं पहुँचे। लेकिन ये तो इस खुरदरे फर्श पर भी जैसे घोड़ा बेंच कर सो रहे थे! मैंने सोचा, घोड़ा और इसे खरीदने-बेचने वाले अब तो रहे नहीं लेकिन मुहावरा अभी भी चल रहा है और पता नहीं उस समय घोड़ा बेचने वाले को इतना सुकूँ क्यों मिल गया था कि घोड़ा बेचते ही वह सो गया था! मन में आया हो सकता है घोड़े को चना खिलाने से फुर्सत पाकर ही वह सोया रहा हो। खैर, घंटी उसकी बज रही थी और इधर बेचैनी मेरी बढ़ रही थी वह तो नहीं हाँ, मैं ही उठ गया और चार-पांच लोगों को किसी विचार-विमर्श में लगे देख अब तक बस का पहिया न बदले जाने का कारण पूँछने उनके पास पहुँचा, यहाँ पता चला कि पहिया बदलने के लिए बस-ड्राइवर के पास टूल-किट ही नहीं है! और वहाँ आसपास खड़ी तमाम बसों की ओर इशारा कर कोई बता रहा था कि "इनमें किसी के पास टूल-किट नहीं है, मैं सबसे पूँछ चुका हूँ" शायद यह हमारे बस का ड्राइवर था। तभी किसी के यह कहने पर कि "ड्राइवर साहब आपको टूल-किट रखना चाहिए" बस-ड्राइवर ने उत्तर में कहा, "का रखें टूल-किट! बस के टूल-बाक्स के ताले को तोड़कर लोग टूल-किट भी चुरा ले जाएंगे और फिर चलें अपने बेतन से भरपाई करें !
          कुछ यात्री हलके-फुलके आक्रोश में आ गए थे, किसी ने कहा कि पहिया पंचर होने पर बस को यहाँ नहीं लगाना चाहिए था, मैंने भी इस बात का समर्थन किया लेकिन सोचा बस को यहाँ लगाने या न लगाने से क्या फर्क पड़ता यात्रियों को तो बस का इन्तजार करना ही होता और वापस आ कर पुनः चबूतरे पर बैठ गया और उधर कुछ यात्री बस स्टेशन इंचार्ज से शिकायत या टूल-किट का प्रबंध करने की बात करने निकल गए। कुछ देर बाद ये लोग वापस आ गए और इनमें कोई एक को मैंने कहते सुना, "ये नेता-फेता, अफसर-फपसर बस फर्जी बातें ही करते हैं, किसी काम के नहीं होते, न टूल-किट का या न अन्य बस का प्रबंध ही कर पा रहे हैं" सुनकर मैंने दूसरी ओर मुँह फेर लिया था।
          खैर, अब बस-ड्राइवर कहीं फोन से बात कर रहा था, बात कर लेने के बाद बोला, "अभी पन्द्रह मिनट में हमारे डिपो की इतने बजे चलने वाली बस आ रही है उसके पास टूल-किट रहता है उसी से पहिया बदलेंगे तब तक आप सब इन्तजार करें" इसके बाद वह बस आई उसके टूल-किट से मेरे बस का पहिया बदला गया फिर अपना टूल-किट लेकर वह बस चली और इधर हमारी बस भी चली। इस पूरी प्रक्रिया में हमारी बस अपने चलने से ढाई घंटा लेट थी।
          बस में बैठे-बैठे यात्रियों और बस की दशा देखकर अपने देश के बेतरतीबीपने पर हमारा ध्यान चला गया। मुझे लगा ऐसा ही तो हमारा यह देश भी है जिसके पास अपना कोई टूल-किट ही नहीं है और यदि टूल-किट होता भी है तो वह चोरी चला जाता है, इस चक्कर में हमारा बेचारा यह देश अपने समय से काफी पीछे चल रहा है!!
                                                                                                              ---vinay

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