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शनिवार, 13 अक्टूबर 2018

लकीर के लिए टेंशन न लें

          आज तो सुबह सात बजे मैंने बिस्तर छोड़ा..!असल में क्या है कि रात में सोने के ठीक पहले तक यदि आप गंभीर वैचारिक चिंन्तन में उलझे होते हैं, तो निश्चित ही आपकी रात की नींद, कुछ न कुछ खराब तो होगी ही!  तो मैं भी बीती रात सोने के पहले थोड़ा ही सही, कुछ वैचारिक चिंतन में उलझ गया था..इसीलिए, नींद तो आई, लेकिन सोते में अचानक मस्तिष्क में कुछ चुभने जैसा अहसास होता और नींद टूट जाती..! खैर, नींद में आई इसी कमी को पूरा करने के लिए टहलने की कौन कहे, सुबह सात बजे तक मैं बिस्तर नहीं छोड़ा था...!!
       .... हाँ, एक बात है, रात में सोने के कम से कम एक घंटा पहले मन-मस्तिष्क को रिलैक्स कर लेना चाहिए। जिनको सोने के पहले कुछ पढ़ने की आदत है उन्हें चाहिए कि गंभीर विषयों का पाठन नहीं करना चाहिए, बल्कि पाठन के विषय मनोरंजन पूर्ण और हल्के-फुल्के ही होने चाहिए... और एक बात अतिमहत्वपूर्ण कहना तो छूटा ही जा रहा था, वह यह कि आजकल सोशल-मीडिया का जमाना है...इसपर तर्क-वितर्क में मत उलझिए..क्योंकि यहाँ सभी के अपने-अपने पूर्वाग्रह होते हैं..ऐसे में ये तर्क-वितर्क सृष्टि के अंत तक चलते रहेंगे और आपकी रात की नींद नाहक ही खराब होगी..! खैर.. 
        जब तक उठा तब तक लड़का भी आ गया था.. उसने चाय बनायी और हमने पी। चाय पीते हुए अखबार उठाया तो कल के सुप्रीम कोर्ट के कुछ फैसलों पर निगाह पड़ी..इन्हें पढ़ते हुए मन ही मन मुस्कराया..एक फैसला तो मानवीय रिश्तों में आपसी विश्वास बहाली या यों कहें विश्वास की विश्वसनीयता बनाए रखने के लिए प्रोत्साहित करता प्रतीत हुआ... वाकई!  मानव निर्मित संबंधों में आपसी विश्वास से बढ़कर कुछ नहीं होता...कानून-फानून तो बनते बिगड़ते रहते हैं...
      ....इस फैसले को पढ़कर मुझे बचपन (कक्षा पाँच-छह के आसपास) में श्रीमद्भागवत, कल्याण और सुखसागर में पढ़ी वैदिक कहानियाँ याद हो आयी...एक व्यक्ति एक स्त्री से उसके पति के सामने ही काम-याचना करता है..स्त्री अपने पति की ओर इशारा करते हुए स्वयं को विवाहित बता कर उस प्रस्ताव को अस्वीकार कर देती है..और व्यक्ति उस स्त्री को उसका प्रस्ताव न मानने के कारण श्राप देने के लिए उद्धत हो जाता है....एक अन्य कथा में पत्नी स्वयं अपने कंधों पर बैठाकर पति को गणिका के पास ले जाती थी...लेकिन उक्त कथानकों में कहीं भी इन बातों को अनैतिकता की श्रेणी में नहीं माना गया...बल्कि इन कहानियों से पति-पत्नी के बीच आपसी संबंधों तथा एक दूसरे के प्रति कर्तव्यों और उनके बीच आपसी विश्वास की व्याख्या होती है।...उन्हीं दिनों मैं अपने बाबू (दादा जी) के मुख से अकसर किसी की पोंगापंथी पर उसे "लकीर का फकीर होना" जुमले से नवाजते सुना करता। 
         ...एक बात और.. हमने ओखली (संविधान अंगीकरण) में सिर दे दिया है, तो मूसलों (संवैधानिक व्यवस्थाओं के निर्णयों) से क्या डरना..! हाँ, भूसे को निकालने के लिए कुटाई भी जरूरी है...खैर,
            मेरी सुबहचर्या पढ़कर आप "टफनेस" जैसी स्थिति में आएं, इसके पहले ही मैं बताना चाहता हूँ कि इधर कई दिनों से मैं अपने पड़ोसी के साथ चाय नहीं पी पाया था और मुझे पड़ोसी के साथ चाय पीने की इच्छा हो आयी थी... मैं पड़ोसी का इन्तजार करने लगा...और..वे दिखाई भी पड़ गए..! मेरे चाय का आफर उन्होंने स्वीकार किया और हम दोनों गप्प लड़ाते हुए साथ-साथ बैठकर चाय पीने लगे...चाय पीकर सूकूँन मिला..
          सुबहचर्या 
           (28.9.18)
             श्रावस्ती 

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