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मंगलवार, 12 दिसंबर 2017

मन के हमदम बनिए!

        पाँच बजकर पच्चीस मिनट हो रहे थे जब मैं विस्तर से उठ बैठा। सोचा आज टहलने निकल ही लूँ। असल में इधर तीन दिनों से टहलना-घूमना बंद था, कारण इन तीन दिनों की दिनचर्या शांत नहीं थी। घरेलू कार्य से लेकर सरकारी कार्यों में उलझा रहा था। अब ऐसे में सुबह-सुबह उठने का मन नहीं करता आलस घेरे रहता है। तो, आज मैं थोड़ा रिलैक्स मूड में होने के कारण टहलने निकल लिया...स्टेडियम और आवास के बीच में था कि मित्र शुक्ला जा का फोन आया, उन्हें भी सुबह की सैर करनी होती है। हाँ, इनके बारे में बताएँ, इन जनाब को तो योग का टीचर होना चाहिए था। योग पर इनकी पर इनकी पकड़ देखते बनती है...योग और अन्य विषयों पर ये खूब अध्ययन करते हैं और योग के जबर्दस्त टिप्स कर लेते हैं, जो हम जैसे सामान्यों के लिए असंभव सा होता है। अकसर क्या होता है कि ये हमसे भी वैसे आसन कराने लगते हैं, मुझसे वैसा नहीं हो पाता, तो मैं इन्हें योग करते देखने लगता हूँ..खैर 

           मैं स्टेडियम पहुँच गया था, इसके दो चक्कर लगाया। तब तक शुक्ला जी मिल गए और अपने साथ हमें भी योग कराने लगे। दो -एक टिप्स के बाद जब मेरी हिम्मत जबाव दे गई तो मैं खड़े होकर इनके योगाभ्यास को देखने लगा। लौटते समय हममें योग को लेकर थोड़ी बहुत बातचीत भी हुई। मतलब योग केवल शारीरिक क्रिया भर नहीं यह मन से जुड़नी चाहिए, मतलब मानसिक योग के बिना शारीरिक योग भी सफल नहीं हो सकता। 

        हाँ, यह सब मैं अपने फोन पर जब लिख रहा हूँ तो साथ-साथ इसी फोन से गूगल म्यूजिक पर अपने पुराने पसंदीदा फिल्मी गीत भी सुनते जा रहा हूँ.."न तुम हमें जानों...न हम तुम्हें जाने, नजर लगता है कुछ ऐसा कि मेरा हम दम मुझे मिल गया" मतलब भाई, मन को वाह्य झंझावातों से मुक्त करने का प्रयास करते रहना चाहिए! चाहे जिस तरह से!! 

           आज का अखबार पढ़ रहा था तो एक हेडिंग पर ध्यान चला गया - "भीड़ में अकेले खड़े होने का साहस" तो भाई यह साहस ऐसे नहीं आता, अन्दर पढ़ा तो लिखा मिला "यदि आप दूसरों के कहने पर अपना जीवन जिएंगे, तो सफलता कैसे हासिल करेंगे? जीवन तो आपका है, तो फिर सुख और दुख सब कुछ अापके हिसाब से ही चलेंगे।...जैसे ही आप अपने विचारों और व्यवहारों के अनुरूप जीना शुरू कर देंगे, वैसे ही आप अपने सुख-दुख के मालिक स्वयं हो जाएंगे। आपका जीवन सहजता से आगे बढ़ेगा।" कुल मिलाकर मन के हमदम बनिए! 

          इन पंक्तियों को लिखते समय मेरा एक और पसंदीदा गाना बजने लगा है "ये मेरा दीवानापन है.." हाँ भाई, अपने मन को "दीवानेपन" के साथ पकड़िए!!! 

         चलते-चलते -

         आप वही करिए जो आपका मन कहता हो...मन के विरुद्ध किया गया काम अ-योग होता है! और मन कभी आपके विरुद्ध नहीं जाता.. बस मन को पहचानिए.! 

     #सुबहचर्या 

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