आजकल शहरों में ई-रिक्शा खूब चलने लगे हैं। उस ई-रिक्शा पर कोई सवारी नहीं बैठी थी, उसे चलाने वाला लड़का यही कोई बीसेक साल का रहा होगा। रिक्शे पर बैठते ही मैंने उसे रिक्शा चलाने के लिए कहा। लड़के ने "बस दादा एक मिनट में चलते हैं" कह कर बगल में गुमटी-दुकानदार की ओर हाथ बढ़ा दिया। गुटखा लेते देख मैंने उससे "दिनभर में कितने का गुटका खा लेते हो" की बात पूँछी तो गुमटी वाला दुकानदार कहने लगा "नहीं ज्यादा नहीं बेंच पाता"। इस बीच लड़के ने गुटखे का एक पाउच मेरी ओर बढ़ाते हुए पूँछा, "दादा आप खाएंगे?" मैंने उसे अपने गुटखा न खाने की बात बताई।
लड़के ने ई-रिक्शा चालू किया और मुझसे बोला, "दादा, यह दो-ढाई सौ रूपये का गुटका रोज बेच लेता है...अभी यहाँ यह नया है..ऊधार-वुधार देता नहीं..इसलिए इसका गुटखा कम बिकता है जबकि इसके पीछे वाले उधार भी दे देते हैं।" मैं समझ गया कि गुमटी वाले के साथ ही लड़के ने भी मेरी पूरी बात नहीं सुनी।
मेरा ध्यान लड़के द्वारा बार-बार मुझे "दादा" कहने पर चला गया। मैंने सोचा यह मेरे सफेद बालों का प्रभाव होगा। हाँ याद आया अभी कल ही एक और ने मुझे "दादा" कह कर संबोधित किया था, जबकि उसकी उम्र मेरी उम्र के आसपास ही रही होगी, हाँ बाल उसने काले कर रखे थे। खैर, मैं मन ही मन मुस्कुरा उठा था।
बात करने की इच्छा से मैंने ई-रिक्शे वाले लड़के से पूँछा-
"एक बार चार्जिंग के बाद तुम्हारा रिक्शा कितना चलता है"
लड़के ने कहा-
"सुबह छ: बजे निकालते हैं और दस बजे खड़ी करते हैं...फिर वही दो-ढाई बजे से छह-सात बजे तक चलाते हैं।"
"मतलब दस बजे से ढाई बजे के बीच इसे चार्ज भी करते होगे?" मैंने पूँछा।
उसने कहा, "हाँ अंकल" मैंने मन ही मन हिसाब लगाया कि ई-रिक्शे को चार्ज करने में उसे चार घंटे लगते होंगे। फिर मैंने लड़के से कहा-
"चलो, ई-रिक्शा बढ़िया होता है... इसमें गैस-वैस का खर्च नहीं पड़ता!..बचत ही होती है।"
अरे नहीं अंकल! छह महीने में बैटरी बदलवानी पड़ती है.. पैंतीस हजार रूपए का खर्चा पड़ता है.. और सवारी भी उतनी नहीं मिल पाती..चार सवारी या फिर आगे एक बैठा लें तो कभी-कभी पांच सवारी ही हो पाते हैं...नहीं तो चार से ज्यादा नहीं होते.. अंकल अभी देखिए..इस समय आप अकेले सवारी हो।" लड़के ने कहा।
"लेकिन गैस वाले आटो को तो गैस का खर्च पड़ता होगा।" मैंने उसकी बातों में रुचि दिखाते हुए कहा।
"अंकल, वे ढाई सौ का गैस रोज जरूर भराते हैं लेकिन छह सवारी भी बैठा लेते हैं.. अगर एक ट्रिप में हम पचास कमाते हैं तो वे साठ।"
लड़के के ई-रिक्शे पर मैं सवारी के रूप में अकेला था। सवारी के चक्कर में सड़क पर किसी को देख लेता तो वह उसे सवारी समझ रिक्शे की गति धीमी कर लेता। अभी हम बात कर ही रहे थे कि पैदल चलते एक ऊम्रदराज मोटे व्यक्ति को देखकर लड़के ने रिक्शा धीमा किया और उनसे चलने की बावत पूँछने लगा। जब वे सज्जन कुछ नहीं बोले तो, रिक्शे की गति बढ़ाते हुए लड़के ने मुझसे कहा-
"अंकल, इन्हें कुछ तो बोलना चाहिए था..."नहीं" ही कह देते"।
मैंने कहा, "वे क्या कहते, उनको कहीं जाना नहीं होगा..सड़क पर केवल टहलने निकले होंगे।"
हाँ, अंकल सही कहा आपने! हो सकता है इनको शुगर-उगर हुआ हो।"
ई-रिक्शा वाला लड़का फिर बोला-
"अंकल, मेरे दोस्त के एक पापा थे..अभी कुछ दिन पहले शुगर से ही वो मर गए।"
मैं उसकी बात ध्यान से सुन रहा था। लड़के ने कहा -
"अंकल शुगर मोटे लोगों को ही होता है.. इसमें जागिंग-वोगिंग खूब करना चाहिए।"
मैंने कहा-
"हाँ इसमें खूब पैदल-वैदल टहलना चाहिए।"
"अंकल यही तो मैं अपने दोस्त के पापा से कहता था..उनसे कहता..आलू-फालू मत खाया करो..हरी सब्जी खाया करो..तो, अंकल, वो मुझसे कहते कि तुम डाक्टर हो? मैं कहता, डाक्टर तो नहीं हूँ...पर इतना तो जानता हूँ..लेकिन अंकल, तब मेरे दोस्त के वो पापा कहते, मुझसे यह सब नहीं हो पाएगा।"
इधर मैं ध्यान दे रहा था, ई-रिक्शे वाला लड़का अब अपने प्रत्येक संबोधन में मुझे "अंकल" कह रहा था। ई-रिक्शे पर लड़का मुझे अकेला ही लिए चला जा रहा था और ई-रिक्शा चलाते समय मुझसे बतियाए भी जा रहा था। उससे बात करना मुझे भी अच्छा लग रहा था। वह बोला-
"अंकल..एक बात है.. मेरे दोस्त के पापा तो बहुत दुबले-पतले थे.. ऐसे कि हवा में उड़ जाएं..फिर भी पता नहीं कैसे उनको शुगर...?" "देखो, यह रोग टेंशन-वेंशन से भी हो जाता है" मैंने कहा।
"हाँ अंकल यह बात तो है, मेरे दोस्त के पापा वैसे तो अपने घर के मुखिया थे...लेकिन उनको घर में कोई पूँछता-ऊँछता नहीं था..अंकल, जैसे अब आप बड़े हैं तो अपने घर के मुखिया भी होंगे..अगर तिसपर आपको कोई न पूँछे आपको कुछ न समझे तो..!!"
मैं कुछ कहने ही जा रहा था, लेकिन पता नहीं क्या कहता, कि उसी समय लड़के ने ई-रिक्शा रोक सवारी बैठायी। अब हमारे बीच का वार्तालाप टूट चुका था।
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