आज स्टेडियम की ओर जाते हुए सड़क के किनारे एक कुत्ते पर अचानक निगाह टिक गई थी..जो अपनी पिछली दो टाँगों और आगे की दोनों टाँगों के पंजों को जमीन पर टिकाए हुए अपनी आँखों को बंद किए हुए बैठा था..! सच में मैं देखता रहा गया था...एकदम से ध्यानमग्नावस्था में वह बैठा हुआ था...उस समय वहाँ दूर-दूर तक सन्नाटा पसरा हुआ था, हम जैसे सुबह-सुबह टहलने वाले बस इक्का-दुक्का लोग ही आ जा रहे थे..। उससे कुछ दूरी पर खम्भे पर जलते हुए एक लैम्प-पोस्ट की रोशनी जरूर आस-पास बिखर रही थी..इसी रोशनी में सड़क की ओर मुँह करके बैठने के उसके अंदाज से मैं उसकी ओर ध्यानाकर्षित हुआ था...। खैर...
स्टेडियम से वाकिंग कर वापस आया, चाय बनाने और पीने का कार्यक्रम चालू किया...इस बीच घर भी फोन लगाया...पूरी घंटी गई लेकिन फोन उठा नहीं..अपनी स्वयं की बनाई चाय मैं सुड़क रहा था कि घर से फोन आ गया...चाय सुड़कते हुए फोन पर बतियाने लगा...
मैंने पूँछा, "का हो..! का, हो रहा है..?"
"रोटी बना रही हूँ..." का हो की आवाज।
"इतनी सुबह-सुबह रोटी बन रही है...?" मैंने जिज्ञासावश इसलिए पूँछा कि असल में इस समय घर पर कोई इतना छोटा बच्चा नहीं है कि स्कूल ले जाने के लिए उसका टिफिन तैयार किया जा रहा हो..!
फिर उन्होंने बताया, "आज सुबह-सुबह जब गेट खोला तो कहीं से वह दौड़कर आ गया था...पहले उसे कुछ बिस्कुट दिए लेकिन उसे खाने के बाद भी वह वहीं बैठा रहा..फिर मजबूरन मुझे रोटी बनानी पड़ रही है..."
असल में यह पालतू नहीं है, बस उसका जन्म हमारी गली में दो वर्ष पूर्व हुआ था...और यहीं वह बड़ा भी हुआ है ..एक बार इसी फेसबुक पर एक पोस्ट पर मैंने इसके बड़े भाई की कहानी पोस्ट की थी..एक दुर्घटना में वह चल बसा था...उसके बाद इसका लगाव हमारे घर से हो गया...अकसर भूँखा होने पर यह घर के गेट के बाहर आकर बैठ जाता है...और जब कुछ खाने को मिल जाता है तो फिर वापस चला जाता है....या कभी जब इसे आराम करने का मन होता है तो गेट खुला मिलने पर यह बेधड़क अन्दर आकर किसी किनारे या कार के नीचे कुकुर-कुंडली अवस्था में बिना किसी की परवाह किए पसर जाता है...
इसी के बारे में एक दिन श्रीमती जी बता रहीं थी कि एक दिन गेट खोलने पर कहीं से जब यह दौड़ कर आया था...उस दिन उन्होंने इस पर ध्यान नहीं दिया तो कुछ देर तक यह आस-मंडरा कर ध्यानाकर्षित करने का प्रयास कर झिड़की खा फिर यह वापस चला गया था...लेकिन फिर बाद में गेट खोलते समय इसने इनपर ध्यान ही नहीं दिया...बल्कि देखकर भी पास न आकर अनजान बन दूसरी ओर चला गया था...श्रीमती जी ने बताया था, तब उन्हें यह एहसास हुआ कि अपनी उपेक्षा के कारण यह नाराज हुआ है...इसके बाद उन्होंने जबर्दस्ती इसे अपने पास बुलाया..और रोटी- बिस्किट देकर जब मनाया तब यह सामान्य हुआ और इनसे खेलने लगा था..जैसे इसे भी अपनी गलती का एहसास हुआ हो...
इस कुत्ते की इसी संवेदनशीलता को भाँपकर जब भी यह दिखाई पड़ता है इससे मुखातिब हो इसकी आवभगत करनी होती है...और सुबह या शाम गेट पर आने पर इसे रोटी देनी पड़ती है..किसी दिन यदि ऐसा न हो तो फिर स्वयं से यह दुबारा नहीं आता... इसकी इन भावनाओं का बहुत खयाल रखना पड़ता है....
शायद, इसी वजह से सुबह-सुबह श्रीमती जी इस कुत्ते के लिए रोटी बना रहीं थी।
भाई, लोग कुत्ते की इस कहानी को हँसी में मत टालिएगा...या इस पोस्ट को हँसी में मत लीजिएगा...हम ऐसा इसलिए कह रहे हैं कि जब हम बहुत छोटे थे तो ऐसे ही जाड़े में गाँव में अलाव तापते खूब कुत्ते-बिल्ली की कहानी सुना करते थे....हाँ, बल्कि जब हमारे कुछ रिश्तेदार घर आते तो कुत्ते-बिल्ली की इन कहानियों को सुन हमें गँवार ठहरा कर हमें चिढ़ाते भी थे... लेकिन हम कभी नहीं चिढ़े... यदि चिढ़े होते तो मैं यहाँ आपको भी आज की यह कहानी सुनाने न बैठ जाता...सच तो यह है इन कहानियों को सुन सुनकर ही यहाँ इस फेसबुक पर कुछ ऐसी ही कहानियाँ सुनाने लायक हुआ हूँ...!
आज के अखबार के अन्तिम पृष्ठ पर एक समाचार हेडिंग "इतिहास के सबसे खतरनाक मोड़ पर मानवता" में स्टीफन हाँकिंग के हवाले से लिखा था "मानव समुदाय भयानक पर्यावरण संबंधी चुनौतियों से जूझ रहा है।...मानवता अपने विकास क्रम में सबसे खतरनाक परिस्थितियों का सामना कर रहा है।" खैर...
हम यहाँ यही कहना चाहते हैं....
...हम अपने अहंकार में दूसरों की संवेदनाओं की पहचान नहीं कर पाते..संवेदनशील होने और इसकी पहचान होने की योग्यता के लिए निरहंकारी होना अनिवार्य है...
#दिनचर्या
--Vinay
5/12/16
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