कभी-कभी मन प्रेम के बारे में सोचने लगता
है...आखिर यह ‘प्रेम’ किस बला का नाम है..? आखिर यह मन की कौन सी अवस्था है जिसके
कारण इतिहास में उलटफेर के साथ व्यक्ति की मनोवृत्तियों को भी इस भावना ने प्रभावित
किया है...क्या प्रेम की भावना में अधिकार की भावना भी छिपी होती है...या...यह एक
ऐसी भावना है..जिसमें प्रबल सह-अस्तित्व की भावना होती है..? मूलतः प्रेम की जब भी
चर्चा होती है तो स्त्री-पुरुष के बीच के संबंधों को लेकर ही..
एक दिन
मैंने फटके से पूँछा, ‘क्यों फटके कभी किसी से प्रेम किया है..? पहले तो फटके हँसा
फिर बोला, “क्या साहब..! आपको भी मजाक करने का सहूर नैं है..? हाँ फटके जब हँसा था
तो आगे के टूटे दो दांत भी दिखाई दिए थे| “अरे फटके मैं मजाक थोड़ी न कर रहा
हूँ..बस पूँछ रहा हूँ..” मैंने हल्की सी मुस्कुराहट के साथ कहा| “तो साहब, का
हमहीं मिला रहे आपका की ऐसन सवाल करे बदे..?” अबकी बार फटके ने शांत भाव और नज़रों
को नीची रखते हुए बोला था..ऐसा जैसे मुझसे कुछ छिपा रहा हो...खैर...मैंने फिर कहा,
“क्यों तुमसे नहीं कर सकता..? क्या तुम इंसान नहीं हो..और तुम प्रेम नहीं कर
सकते...?” “अरे नहीं साहब..! ऊ बात नहीं...ई प्रेम-व्रेम सब बड़कवन क काम हवै...हमन
क त कुछ पते नें चला अबहूँ तक प्रेम का है...” इसे सुन मेरे मुस्कुराने की बारी
थी..मैं फटके में दिलचस्पी लेने लगा था... “अरे कभी किसी को देखा हो और उससे शादी
करने का मन हो गया हो, यही तो प्रेम है..!” मैंने हँसते हुए कहा..| “अरे साहब हम
ठहरे मजूर-मनई..हमसे का जमोगवावई चाहत हया...साहब वियाह त हमार पहिले होई ग रहा त
प्रेम कहाँ से होतई...अऊर साहब...एक बार मजूरी कर्ट रहे त..हाँ..तब..हमार वियाह
नाहीं भवा रहा...उहै चौदह-पंद्रह की उमर रही होए...ऊ मजूरिन क और हमार...” यह
बोलकर फटके न जाने क्यों चुप हो गया उसके चेहरे पर लाज की जैसे रेखाएं उभर आई.....उसकी
चुप्पी मुझे खली क्योंकि फटके की बातों में मुझे मजा आ रहा था...मैंने बेसब्री के
साथ पूँछा, “हाँ..हाँ..फटके...आगे क्या हुआ...बताओ भाई..!” “अरे साहब आप मजा ले
रहे हैं...” फटके ने लजाते हुए से कहा..| जब मैंने फटके को विश्वास दिलाया कि नहीं
ऐसा नहीं है यार..! तो वह फिर अपनी बात को आगे बढाते हुए बोला, “हाँ तो साहब हम
फरुहा से पलड़ा में मिटटी भरि कै ओकरे सिर पर धरि देत रहे...इहीं बीच हम अउर ऊ दूनौ
क निगाह एक-दूसरे से मिलि जाई...” हाँ, फटके लजाकर ही चुप हो गया था..मैंने फटके
को फिर कुरेदा, “तुम पूरी बात नहीं बता रहे हो फटके..!” “अरे नहीं साहब छिपावै बदे
कुछ नहीं है..हाँ साहब मुला ई बात हमका आजतक नाहीं भूलत..! फिर कभौं मुलाकातौ
नाहीं भा...” अब फटके चुप हो चुका था..
हमारे बीच के कुछ क्षणों की चुप्पी के
बाद फटके बोला, “अच्छा साहब, अब हम चलें..?” मैंने फटके के चेहरे पर नजर गड़ाते हुए
पूँछा, “तुम्हारे दांत कैसे टूट गए..? बाकी तो बढियाँ हैं...इनकी दूसरे लगवा
लो..जवान दिखोगे..पैसा न हो तो मैं तुम्हारी मदद कर दूँ!” अधेड़ावस्था के करीब
पहुँच रहा फटके मेरी बात सुन मुस्कुराया और कहा, “नहीं साहब..! बात पैसे की नहीं
है...” “फिर..?” मैंने उत्सुकता दर्शाते हुए पूंछा| “बात ये है साहब...पाहिले हम
बहुत शराब पियत रहे...हम अपनी घरवाली से जबरदस्ती पैसा माँग-माँग ठेका पर जाई के
पी आई...उहू क मजूरी छिनी कै..! फिर एक दिन हमार ऊ छोटा बचवा बहुत बीमार होई ग
रहा...लेकिन हम पीयै से बाज नाहीं आये...बचवा का दवाई लावै बदे घरवाली जवन रुपिया
दिये रही ओकर हम शराब पी के तीन घंटा बाद हम घरे पहुँचे..दवाई त लेहे नहीं रहे अउर
ऊपर से नशे में..बस हमार गिरेबान झकझोरी के घरवाली दवाई के बारे में पूँछेसि त हम
ओका ठेली दिहे..बस कुछ पूँछो न साहब..! बहुत जोर का मुक्का उसने मेरे मुँह पर मारा..!!
हमार दाँतेइ टूटी गवा..और खून निकलि आई..हम मुँह पकड़ कै बैठ गए हमार हाथ खून से
लाल..! हाँ साहब..ई देखि घरवाली घबडाई के परेशान...अउर रोवे...हमार नशा हिरन साहब..!
पासइ में हमार बचवा झिंगोले में बुखार से तप रहा था..! कुछ देर बाद जब हमरे मुँह
से खून बंद हुआ त उ दांत फेंकि के मुँह धोवा...तब तक घरवाली सुबकत रही...फिर हम
ओसे जाई के बोले, ‘तू नाहक परेशान हो..हमार ई दांत पाहिले से हीलत रहा अब अच्छा
हुआ..झंझट ख़तम....तब से साहब हम आजतक शराब नाहीं पिए..ई टूटा दांत सब याद दिला देत
है...घरवाली एकबार जबरदस्ती से आपन महीना भर की कमाई दांत लगावै के लिए दिहेसि..हम
ऊ पैसा ओकरे बेंक में जमा कई दिहे और ओसे बोले, ‘ई हमार-तोहार पियार आ..ई ऐसेइ
रहे..’ बस साहब अब हम चलत हई..नाहीं त देरी पर घरवाली बिगड़े...” एक ही साँस में
फटके ने सारी बात कह दिया था...अब वह जा चुका था...उससे मजा लेने के लिए मेरे पास
कोई प्रश्न भी नहीं बचा था...
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