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सोमवार, 21 सितंबर 2015

राजनीति और कुछ नहीं केवल दूब रोपना है...

         
          बिना मन के भी...कुछ भी लिखने का मन कर रहा है...आज सबेरे से ही मैं दूब रोप रहा हूँ...एक बार सोचा इस पर कोई कविता लिख मारें...लेकिन आप जानते हैं...सायास कोई रचना नहीं बनती...वह तो खुद-ब-खुद बन जाती है....! लगे हाथ यह भी बताता चलूँ कि कविता में कोई न कोई बिम्ब तो होना ही चाहिए...लेकिन इतना सोचने के बाद भी कविता नहीं बन पाई...तुकबन्दी नहीं बनी तो नहीं बनी...! हाँ, इसमें एक बात यह भी है कि पेशेवर जो नहीं हूँ...यदि पेशेवर होता तो तुकबन्दी भी बैठा लेता....और...भला बिना तुकबन्दी के भी कोई कविता होगी...? फिर ध्यान आया राजनीति में भी कोई तुकबन्दी नहीं होती...तो चलिए राजनीति को अपने दूब रोपने से जोड़ देते हैं....

         अब इसी के साथ एक प्रश्न उठता है कि आखिर दूब रोपना है क्या..? तो भाई मेरे...पहले इस दूब को समझना होगा...यह बेचारा एक अदना सा नाचीज घास रूपी पौधा होता है....!! हाँ..जब बहुतायत में उगा हुआ दिखाई देता है तो बंजर जैसी जमीन में भी हरियाली सी छा जाती है...यहीं से इस नाचीज का काम शुरू हो जाता है... कहा जाता है कि नंगे पैरों से इसपर चलना स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होता है...फलतः स्वास्थ्य के शुभेच्छुओं द्वारा इसकी पैरों से रौंदाई शुरू हो जाती है...एक बात और है..! इसपर नंगे पैरों से चलने के पहले यह ध्यान रखना होता है कि केवल दूब ही हो...इसके लिए दूब रोपने के साथ ही साथ अन्य घास नुमा पौधों को स्थान नहीं दिया जाता..ऐसे पौधों को चुन-चुन कर हटाना पड़ता है...ऐसे पौधे कटाई से भी नहीं मानते...इनके नुकीले बन जाने और फिर इनसे कोमल पैरों में धसने का भय बनता है...और..बेचारे ये कोमल पैर घायल हो सकते हैं...इसलिए दूब के पौधों के बीच से इन्हें जड़ से खतम किया जाता है..! लेकिन दूब बेचारे में यह गुण नहीं होता वह तो जमीन पकड़ कर ही चलता है...पैरों से रगड़ खा यह कोमलता का ही अहसास देता है....एक बात है कुछ लोगों का यह भी मानना है कि सुबह-सुबह इन कोमल दूबों पर चलने से ब्लड-प्रेशर भी कम हो जाता है...अब यह हो या न हो लेकिन यह तो तय है कि इसकी हरियाली देख मन प्रसन्न हो उठता है...और...सबेरे-सबेरे इसपर ओस की बिराजती बूँदे भी बहुत खूबसूरत लगती हैं...तो...ब्लड-प्रेशर कम होने की सम्भावना तो बनती ही है...!!

           हाँ एक बात और है...इस दूब को बड़ा नहीं होने देना चाहिए..इसकी कटिंग करते रहना चाहिए...अन्यथा जब दूब  बढ़ जाएगा तो पैरों को भी अपने में उलझा सकता है...बस इतना ही खतरा हो सकता है इससे...! बेचारा यह दूब यहाँ भय का कारक भी बन जाता है...!!

          यह जो हमारी राजनीति है न वह भी दूब रोपाई का ही खेल है...ऊँचे मंच से इन्हें सब दूब ही नजर आते हैं...बढ़ने नहीं देंगे...बस भाई दूब बने रहो..राजनीतिकों को आपकी यह दूब जैसी हरियाली बहुत भाती है...आपकी जद्दोजहद देखकर इन राजनीतिकों को मजा आता है...नंगे पैरों से आपको रौंदने या आपके ऊपर चलने में शासक होने का जो मजा है वह भला इन्हें और कहाँ मिलेगा..! हाँ ये इस बात का ध्यान रखते हैं कि आपके बीच कोई नुकीला घास-नुमा पौधा न आ जाए...ये लोग बड़ी चालाकी से ऐसे पौधों की सफाई कर देते हैं...!! इन्हें तो रिरियाने वाले लोग ही पसंद होते हैं...जो जमीन न छोड़े केवल इसपर घिसट-घिसट कर ही चलना जानता हो....और दूब भाई में ये सारे गुण होते हैं....इसलिए दूब जैसा आपका रिरियाना भी इनके लिए बहुत खूबसूरत होता है, आपकी आँखों के आँसू दूब पर पड़ी ओस की बूँदों जैसा ही इनके लिए मनोहारी होते है...! ये सब इसे बनाए रखना चाहते हैं क्योंकि आँसू पोंछने का सुख भी इसी से मिलता है...और..वाहवाही अलग से...!! इनका ब्लड-प्रेशर इसीलिए हमेशा नार्मल बना रहता है क्योंकि आपकी दूब जैसी कोमलता इनके कोमल पैरों को बहुत मजे देती है..अब जिसको मजा आएगा उसके लिए हर प्रेशर नार्मल ही होगा...

        हाँ ये बेचारे तो दूब बनकर ही खुश हैं...राजनीतिकों का यश गाते हैं....इनका बटन दबाते हैं...और इनका काम है इस हरियाली को बनाए रखना...जमीन तैयार किये रहना...इन राजनीतिकों की तो यही खेती है..दूब रोपना...गरीबी का खेल खेलते रहना..! और आम आदमी को उसकी हद में रखना..!! इसके लिए दूब की कटिंग करते रहना...यही इनकी राजनीति है...गरीबी भी यहाँ खेती है राजनीतिक खेती...और यह खेती लहलहाती रहे....राजनीति के लिए यह दूब रोपते रहो...हरियाली बनी रहेगी...तो राजनीति भी चलती रहेगी...
         
         मेरे एक मित्र श्री राकेश मिश्र जी हैं उन्होंने मुझे फेसबुक पर याद दिलाया कि...
            
               “दधि दूर्वा लोचन फलफूला। नव तुलसी दल मंगल मूला।“                         

        
         वाह भाई मिश्रा जी आपने भी क्या खूब याद दिलाया....अब तो स्पष्ट ही हो गया कि इन राजनीतिज्ञों के चुनावी-यज्ञ के लिए इस दूब..! नहीं..नहीं..दूब जैसे लोगों का..,कितना महत्त्व होता है....!!
                                                           
                                     -----विनयावनत

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