उसका वह बचपन ! खूब उछलता कूदता एकदम उन्मुक्त! किसी बंधन में रहना उसके लिए जैसे पिजड़े में फँसी चिड़िया के समान होता! उसे कोई न रोके और टोके! वाह, ऐसी चीजें ही तो सुंदर होती हैं!! जो जितना स्वतंत्र, वह उतना ही सुंदर और उसमें वैसे ही चमक लिए उन्मुक्तता की चाहत! लेकिन, नहीं-नहीं सुंदर चीजें धोखेबाज नहीं होती, बस पिंजड़े में जाकर असुंदर होने से बचना चाहती हैं| लोग न जाने क्यों खूबसूरत सी चीजों से खेलना चाहते हैं| सच बताएँ, खूबसूरत चीजों से खेलने वाले, होते हैं बहुत बदसूरत! खूबसूरत चीजों से खेलकर ये केवल अपनी कुंठा या भड़ास निकालते हैं| हाँ, सच तो यह है इन्हें परवाज की उड़ान से भी चिढ़ होती है! इनका वश चले तो परिंदे खुले आसमान में तैर ही न पाएँ!
यह ऊलजुलूल बात नहीं, बचपन में वह भी सुंदर सी चीजों के लिए बेचैन हो उठता था! उसकी निगाहें जैसे इसकी खोज में लगी रहती| एक बार मित्रों के साथ वह खेल रहा था| उसका खेलना भी क्या खेलना ! बस इधर-उधर निरुद्देश्य घूमना, लेकिन इसमें भी उसे खूब मज़ा आता| वह प्रत्येक चीज को जैसे निरखता हुआ चलता! हाँ उसने तो केवल निरखना ही सीखा है, इसीलिए मौन रहने की उसे आदत पड़ चुकी है!! उस दिन वह ऐसे ही घुमंतू बना हुआ मित्रों संग आवारगी कर रहा था, मौन आवारगी! यह उसकी आवारगी ही होती!! उसकी इस घुमंतू वाली खेल प्रवृत्ति के कारण उसे घर से डाट में उसे आवारा की उपाधि मिलती!
हाँ उस दिन खेलते-खेलते उसके दोस्त नाले के उस पार जा चुके थे| लेकिन वह नाले के उस मूक सौंदर्य में खो गया था!! उसके किनारे-किनारे दूर तक चली गई वृक्षावलियों की पंक्तियाँ और उन पर खिले रंग-बिरंगे और लाल-लाल टेसू जैसे फूल! उनकी झड़ती पंखुड़ियाँ..यह सब कितना खूबसूरत लग रहा था उसे!! जैसे हरे वस्त्र वाली धरती ने कोई माणिक्य-जड़ित सुंदर नीला हार धारण किया हो! हरियाले वृक्षों पर लदे फूलों की पंखुड़ियां झरती हुई कल-कल बहती इस नदी के नीले जल में प्रवाहमान थी| वह इस प्राकृतिक सौंदर्य को सब कुछ भूलकर मंत्रमुग्ध सा निहारने लगा था! इस सौंदर्य ने उसे अभिभूत कर दिया, मित्र कब दूर दूर निकल गए उसे इसका ध्यान ही न रहा|!
लेकिन इस सौंदर्य में खोया हुआ उसने देखा, इस छोटी सी नदी के नीले साफ जल में बही जा रही रंग-बिरंगे फूलों की पंखुड़ियों के बीच छोटी-छोटी मछलियाँ अठखेलियाँ करती हुई आड़े-तिरछे तैरती जा रही थीं| अचानक उसे एक बेहद खूबसूरत रंगीन साँप नदी की तलहटी में तैरता दिखाई दिया!! ईल मछली की तरह उसका तैरना देख वह आत्मविभोर हो चुका था| इस खूबसूरत साँप को पकड़ने की उसमें चाहत जाग उठी, लेकिन इसमें विष हो सकता है, एक पल के लिए वह डर सा गया था| लेकिन सुन्दर चीजें विषैली नहीं होती और यह सुंदर साँप विषैला नहीं है, सोचते हुए उसने पानी में तैरते उस खूबसूरत साँप को अपलक निहारने लगा था!!
तभी उस रंगीले साँप को पकड़ने के लिए उसने अपना हाथ पानी में बढ़ा दिया| लेकिन यह क्या !! वह साँप उछलकर पानी से बाहर नदी के किनारे सूखी जमीन पर आ गिरा!! वह उस ओर दौड़ा, उसे पकड़ना चाहा| लेकिन !!! लेकिन साँप अब एक रंग-बिरंगी खूबसूरत छोटी चिड़िया में बदल गया था !! एकदम सोन चिरैया की तरह!! वह उसे पकड़ पाता, तब तक चिड़िया बना वह साँप आकाश में फुर्र से उड़ चला! हाँ वह सोन चिड़िया उसके पकड़ में नहीं आई| काश ! वह उस साँप को पकड़ने की कोशिश ही न करता !!
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