आज अखबार के किसी कोने पर मैंने किसी "मून एक्सप्रेस" के संस्थापक की बात पढ़ी कि चांद पर खरबों डॉलर का प्लेटिनम और हीलियम 3 मौजूद है। पढ़ते ही मेरा दिमाग सुन्न हो गया! सोचने लगा चन्द्रमा पर और कौन-कौन से तत्व होंगे? आखिर जब ये चीजें मिली तो क्या सोना-चांदी का भंडार नहीं होगा..? निश्चित होगा और वह भी खरबों डॉलर से कम का नहीं होगा। ऐसे ही अन्य तत्वों के भी छिटपुट भंडार होंगे और फिर तो पूरा मामला खरबों डालर का नहीं बल्कि शंख-पद्म डॉलर का बनता है..!
मैं तो कहता हूँ...अब तय करने का समय आ गया है कि पहले चन्द्रमा को खोद कर अरबों डॉलर बनाया जाए या फिर पृथ्वी की ही खुदाई चलती रहे? वैसे एक बात है...आज डॉलर के जमाने में सब चाँदी काटना चाहते हैं, इस चक्कर में पूत और पड़ोसी का भी मतलब नहीं रह जाता। ऐसे ही नहीं एक बार एक साहब ने मुझसे कहा था, "अरे! कुछ कमा-धमा लो नहीं तो कोई पूँछेगा नहीं!" मैंने तब यही सोचा था कि यह अपना उल्लू सीधा करने के चक्कर में मुझसे ऐसा बोल गया है और तब उसकी बात बुरी लगी थी। लेकिन, आज सोचता हूँ उन साहब की बात तो ठीक ही थी, अगर अंटी में माल है तो हजार गणेश-परिक्रमा करने वाले बैठे हैं! आखिर, अमेरिका का डालर चाँद पर भी ऐसे ही नहीं झलक गया।
वैसे पड़ोसियों के बीच आजकल कैसा रिश्ता है? भारत-पाकिस्तान को तो आप देख ही रहे हैं..बेचारे हमारे गृहमंत्री बिना खाए-पिए वहाँ से चले आए। मतलब साफ है, छोटे अकसर खुरपेंची होते हैं...माफ करिएगा हो सकता है कोई अपवाद भी मिल जाए..हाँ तो, चन्द्रमा भी तो पृथ्वी का पड़ोसी है और छोटा भी! क्या पता पृथ्वी से अपने टूटने की पूरी खुन्नस यह चांद पृथ्वी को कभी भी टक्कर मारकर पूरी कर ले..? वैसे भी फला धूमकेतु या फला चीज के टकराने का भय अकसर सुनाई ही देता रहता है..! और अगर कहीं चन्द्रमा ने अपनी खुन्नस निकाली तो हम पृथ्वीवासी भी गए काम से! ठीक है कि अभी चन्द्रमा हमारी पृथ्वी की गणेश परिक्रमा करता है, लेकिन यहाँ यह कोई मैटर नहीं है, मैटर तो खरबों डालर का है, बात गणेश-परिक्रमा से नहीं बनती..बात बनेगी तो खरबों डालर से, और चाँद पर चाँदी काटने से..! डालर के प्रताप से चांद जैसी गणेश-परिक्रमा करने वाले न जाने कितने उपग्रह से हम पृथ्वीवासी गगन पाट देंगे..चन्द्रमा की गणेश-परिक्रमा से पिघलने की जरूरत नहीं।
मेरे धरतीवासियों! चांद पर खरबों डॉलर के माल को लावारिस छोड़ना उचित नहीं है। तो, पृथ्वीवासियों! पृथ्वी की खुदाई छोड़कर चाँद की खुदाई में जुट जाओ, कहीं ऐसा न हो कि खरबों डालर के इस माल की चकाचौंध से प्रभावित कोई एलियन इसे न ले उड़े? वैसे भी एक दिन कहीं पढ़ा था कि ग्रहीय जीव के रूप में मानव का विकास अभी उतना नहीं हो पाया है जितना कि अन्तरिक्ष में अन्य ग्रहों पर हुआ होगा..! हाँ तो देर करने की अावश्यकता अब नहीं, डालर खोजो और अपना विकास करो...फिर तो...क्या चांद, क्या मंगल, और अगर इसके आगे कोशिश करोगे तो कहीं तुम्हें सोने, चांदी, प्लेटिनम के विशुद्ध ग्रह भी न मिल जाए...अनन्त की संख्या में डालर..! फिर तो डालर ही डालर !!
अब इतने डालरों का तुम करोगे क्या? अरे बुद्धू इंसानों इतनी भी बात नहीं समझते? इन डालरों से अपने लिए पृथ्वी से भी बड़ा एक डालर-ग्रह बना डालो वैसे भी तुम्हारी जनसंख्या बढ़ती जा रही है...और धरती पर का सारा माल भी खोदना है.. ऐसे में धरती पर रहते हुए यह पूरी तरह सम्भव नहीं हो पाएगा...! सीधी सी बात है, अपने नवीन डालर-ग्रह पर बैठ धरती को खोदो, और और डालर इकट्ठा करो...अपने डालर-ग्रह पर आराम से निवास करो!! ब्लैकहोल भी आप का कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा...आखिर यह भी आपके लिए डालर रखने के काम ही तो आएगा!!! अद्भुत सारा ब्रह्मांड डालरमय...
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