यही गर्मी की भरी
दुपहरी रही होगी, हम अपने पति और छोटे पुत्र के साथ कार से कहीं जा रहे थे| पति
महोदय कार चला रहे थे| मैंने देखा कि गर्मी की भरी दोपहरी में एक बूढ़ी औरत एक छोटी
लड़की का हाथ पकड़े हुए दोनों नंगे पाँव ही पक्की सड़क पर चले जा रहे थे| मैं उस कड़ी
धूप, तपती हुई पक्की सड़क और उस पर उनके नंगे पांवों को देख सिहर सी गई| मैं अभी यह
देख पति से अपनी प्रतिक्रिया जाहिर करती कि मेरी कार उनसे आगे निकल गयी, एक बार
मैंने सोचा पति से कार रोकने के लिए कहूँ, और हमारे पास जो एक जोड़ी अतिरिक्त चप्पल
था पहनने के लिए उन्हें दे दूँ! लेकिन ऐसा नहीं कर पाई और हम आगे चले गए| मैं
सोचती रह गयी कि अभी भी हमारे देश में ऐसे लोग हैं जो एक जोड़ी चप्पल के लिए तरस
रहें हैं|
इधर हम लोग दो-तीन
घंटे बाद पुनः उसी रास्ते से वापस लौट रहे थे| लौटते हुए मैंने देखा वही बूढी औरत
और साथ की वह बच्ची सड़क के किनारे के एक घनी छाया वाले पेड़ के नीचे बैठे सुस्ता
रहे थे इस बीच ऐसे ही नंगे पावों से वे पाँच-छह किमी की दुरी तय कर लिए थे| मैं
उन्हें सुस्ताते हुए देख रही थी और हमारी कार आगे निकल गयी थी...पता नहीं यह सब
मेरे पति ने देखा था या नहीं!
एक दिन हम अपने पति और
छोटे पुत्र के साथ ऐसे ही बैठे गप्पें लड़ा रहे थे की मुझे यह घटना ध्यान में आई और
इसका जिक्र मैंने अपने पति से किया, पति के मुँह से सहसा निकला, “अरे! हमको उसी
समय बताती, मैं उनकी एक तस्वीर ले लेता..और..उन्हें फेसबुक पर पोस्ट कर देता..|”
मुझे पति की ये बातें बहुत ही नागवार गुजरी लेकिन मेरे समझ में कुछ नहीं आया कि इस
पर इन्हें मैं क्या कहूँ, लेकिन तभी मैंने अपने छोटे पुत्र को पति महोदय से कहते
हुए सुना, “हुँह..हूँ..ऊँ..! आप फेसबुकिए जैसे लोगों को बस यही एक बीमारी है, किसी
की पीड़ा भी आपके फेसबुकवाल पर फैशन-शो जैसा इश्तेमाल होता है..|” पुत्र ने अपने
पिता को ऐसा जबाव दिया कि मैं मन ही मन प्रसन्न हो गई और उधर पति महोदय पुत्र को
आँखें फाड़कर देखे जा रहे थे लेकिन उनके मुँह से कुछ भी नहीं निकल पाया|
-प्रतिमा
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