लोकप्रिय पोस्ट

सोमवार, 25 अप्रैल 2022

काहे रे नलिनी तू कुम्हलानी तेरे ही नाल सरोवर पानी!


      धरती के पास सब कुछ होते हुए भी यह धरती अब कुम्हलाने लगी है....सुहृद मित्रों! आज मेरा मन जंगल में एकांतवास करने का हो रहा था। संयोग से आज पंचायत दिवस भी मनाया जा रहा था, इसके लिए श्रावस्ती जनपद में सिरसिया ब्लाक की एक ग्राम पंचायत में भी जाना हुआ। तो आज एक पंथ दो काज हुआ, क्योंकि यहां श्रावस्ती में जो जंगल है अर्थात सुहेलवा रेंज, इसी विकास खंड के नेपाल बार्डर की सीमा पर अवस्थित है, मानिए कि यह जंगल ठीक हिमालय पर्वत श्रृंखला के शिवालिक पर्वत श्रेणी के पैर पर है, जो यहां से शुरू होकर नेपाल में पर्वत श्रृंखलाओं की ऊँचाइयों तक चला जाता है। जंगल के मामले में श्रावस्ती जनपद भी तराई के अन्य जनपदों की तरह ही महत्वपूर्ण है, लेकिन इसका प्रचार-प्रसार कम हुआ है। सुहेलवा जंगल के आसपास के गांवों में जंगल के बीच से बहकर आते नालों के कटान एक दर्शनीय स्थल का निर्माण करते हैं और जंगल के किनारे के गाँव भी दर्शनीय बन पड़ते हैं। हलांकि यह अप्रैल का महीना है, अभी पतझड़ का मौसम चल रहा था इसलिए यहां जंगल में हरीतिमा की कोंपल अभी बस फूटने ही वाली हैं, इसके बाद इस जंगल की हरियाली देखते ही बनेगी। 
         तो, आज मैंने तय किया था कि मुझे इस जंगल के उस भाग में जाना है, जहां दो पैरों वाले जीवों की आवाजाही कम होती हो, क्योंकि वही स्थान अपने मूल प्राकृतिक स्वरूप मे हो सकता है। सुहेलवा रेंज में एक रजिया ताल का नाम मैंने सुन रखा था, वहीं जाने का फैंसला किया। यहां लोगों की आवाजाही कम या लगभग नहीं के बराबर होती है। वैसे इसी क्षेत्र में सोनपथरी नामक एक दर्शनीय प्राकृतिक स्थल भी है लेकिन यहां एक धार्मिक आश्रम होने के कारण इसकी एकांतिकता भंग हुई सी रहती है। इसलिए मैंने आज रजिया ताल को चुना। यहां पहुंचने के लिए गाँव छोड़ने के बाद जंगल में छह-सात किमी अंदर कच्चे रास्ते पर चलना होता है। यह रास्ता एस‌एसबी जवानों के वाहनों एवं वन विभाग के वाहनों के आवाजाही और उन वाहनों के पहियों से निर्मित लीक से बना है, जिस पर बारिश के दिनों में नहीं चला जा सकता। खैर मौसम सूखा होने से हम लोग वहां आसानी से पहुंच ग‌ए। आगे जाकर यह रास्ता नेपाल की सीमा में प्रवेश कर जाता है, जहां से ऊँची पर्वत श्रृंखलाओं का प्रारंभ है।

           रजिया ताल पर पहुंचने पर मैंने देखा कि दो लोग इस ताल में मछली के कांटे लगाए बैठे थे, लेकिन हमें देखते ही डर के मारे खिसक लिए, वे इतना डरे थे कि अपना जूता भी नहीं पहन पाए। शायद वे पास में नेपाल के गांव से आए थे। यहां तालाब के किनारे चार-पांच सीमेंट के बेंच और तीन मंजिला एक वाच टावर बना है, बाकी जंगल के बीच यह ताल शांत सुरम्य वातावरण के बीच मानव हलचल से कोसों दूर पुराणों में वर्णित सरोवर जान पड़ा। कमल के पत्तों से भरे तालाब के किनारे रमण करते हुए मन यहां के प्राकृतिक सौंदर्य में खो जाना चाह रहा था! यहां बहुतायत में उड़ती हुई रंग-बिरंगी तितलियां यहां के प्राकृतिक सौन्दर्य को अद्भुत जीवंतता प्रदान करती हुई जान पड़ रही थी।

       लेकिन मन ही मन मैंने अपने इस मन को समझाया कि हम मानव इतने जंजाल पाले हुए हैं कि अब जंगली बन पाना असंभव है..!

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें