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शुक्रवार, 23 सितंबर 2016

बतकही

            लंच के लिए आवास पर आया था। आते ही श्रीमती जी से यह कह विस्तर पर लेट गया कि आज कुछ ज्यादा ही थकान है। इस पर उन्होंने कहा कि खाना खाकर कुछ देर आराम करके तब जाना। खैर.. 

              मैं अभी खाना खाया ही था कि आफिस से फोन आ गया, अब मुझे तुरन्त जाना था। मैंने यह बात श्रीमती को बताई कि मुझे तुरन्त जाना है। वे कहने लगी,

    

             "थोड़ी देर आराम कर लो तब जाओ" इस पर मैंने काम की दुहाई दी और कहा, "नहीं, अभी जाना पडे़गा।" 

               अब वह बोल पड़ी, "देखिए..नौकरी कोई एक दिन की नहीं है..अभी बहुत दिन नौकरी करनी है...यह तो रोज-रोज का काम है..ऐसा तो लगा ही रहता है...आप बहुत जल्दी परेशान हो उठते हो।"

               पत्नी की इस बात पर मैं तुरन्त बोल पड़ा, "देखो..मुझे, नौकरी कैसे करनी है, यह मुझे, तुम नहीं बताओगी..और फिर मेरे सरकारी कार्य करने पर तुम नियंत्रण नहीं कर सकती.."

                मैं अभी यह कहते हुए चुप ही हुआ था कि श्रीमती जी तपाक से कह उठी, "सुनिए, मैं तुम्हारे सरकारी कार्य करने पर नहीं, तुम्हारे दिमाग पर नियंत्रण कर रही हूँ।" 

                मैं भौंचक सा उन्हें निहारने लगा...मेरी यह कहने की हिम्मत नहीं हुई कि कोई कैसे मेरे दिमाग को नियंत्रित कर सकता है... चुप्पी ओढ़ लिया...सोचा..इनसे पार पाना कठिन है...! 

                --Vinay 
                  15.6.16

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