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मंगलवार, 21 अक्टूबर 2014

मेरे और मेरी पत्नी के बीच का संवाद.....


“हलो..हलो...हलो...”

“हाँ...हाँ...बोल तो रही हूँ...बोलो क्या बात है...?”

“अरे..! तुम तो करवां-चौथ नहीं रहती हो...?”

“कहाँ से यह ध्यान आ गया कि मैं करवां-चौथ नहीं रहती हूँ...! क्या कोई नई बात है क्या..?”

“नहीं मैं इसलिए पूँछ रहा था कि आज करवां-चौथ के ब्रत की बड़ी चर्चा हो रही है...! और...अखबारों, टी.वी. और..और..मेरा मतलब..हर जगह करवां-चौथ मनाती सजे-धजे वस्त्रों में लोगों की तस्वीरें दिखाई दे रही है...!”

“अच्छा तो ये बात है...! फिर ये बताओ इस ब्रत को रहने के लिए गहनों की तो बात छोडिए कम से कम एक नई साड़ी की आवश्यकता पड़ेगी...क्योंकि नई साड़ी पहन कर ही छलनी से तुम्हें देखूंगी....मतलब चाँद को भी..! और..हर साल यह ब्रत रहूंगी तो हर साल एक नई साड़ी लानी पड़ेगी...! फिर, एक बात और है...तुम अपने काम में इतना व्यस्त रहते हो कि तुम्हें इस दिन भी छुट्टी नहीं मिलेगी जबकि..पति ही पानी पिला कर ब्रत समाप्त कराता है..!”

“इसका मतलब तुमको पति से प्रेम नहीं साड़ी से ही प्रेम है...सज-धज कर ही ब्रत रहोगी तो रहोगी नहीं तो नही...?”

“सुनो..! हमको ज्यादा प्रेम-व्रेम न सिखाओ..! याद है...! कुछ याद है कि...हमारी शादी कब हुई थी...? मैं चौदह वर्ष की रही होउंगी...हाँ...तब मेरा गौना भी नहीं आया था..और..मैंने तुमको देखा भी नहीं था..! हाँ.., तब से मैं तीज का ब्रत रहती आई हूँ...और आज भी रहती हूँ...! वह भी तो पति के लिए ही रहा जाता है...!”

“हाँ हम लोगों की तरफ तीज ही रहा जाता है...लेकिन..यार ये बताओ इस ब्रत में नयी साड़ी नहीं पहना जाता क्या..?”

“क्यों नहीं पहना जाता..?”

“लेकिन मुझे ध्यान आता है..कभी मैं ब्रत के लिए तुम्हें साड़ी नहीं ले आया..!”
“अरे..! तुम साड़ी लाओ तभी मैं ब्रत रहूँगी...? भईया आते-जाते नयी साड़ी दिए रहते है...तीज ब्रत में वही साड़ी पहन लेती हूँ...वैसे तुम तो जानते ही हो मेरी साड़ियों में रूचि नहीं रहती..!”

“लेकिन यार मुझे तो पता ही नहीं चलता...”
“तो क्या यह बताने की चीज है..? या..कि कोई प्रदर्शन करना है...?”
 
 करवां-चौथ के दिन का यह संवाद मेरे और मेरी पत्नी के बीच का है...!
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